किस तरह सक्रांति पर सूर्य और शनि को करे प्रसन्न?

ज्योति दाधीच
स्कंदपुराण के काशीखंड में प्रचलित एक कथा के अनुसार – राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेव के साथ हुआ था। भगवान सूर्यदेव का तेज बहुत अधिक था जिसे लेकर संज्ञा सदैव परेशान रहती थी।
सूर्य देव और संज्ञा की तीन संतान वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना तीन संतान हुईं। लेकिन संज्ञा अब भी सूर्यदेव के तेज से घबराती थी। सूर्यदेव के तेज को कम करने के लिए उनकी पत्नी संज्ञा ने अपनी हमशक्ल संवर्णा को पैदा किया और बच्‍चों की देखरेख का जिम्‍मेदारी उसको सौंपकर खुद अपने पिता के घर चली गई।
दूसरी ओर संज्ञा के पिता ने उसका साथ नहीं दिया तो वह वन में एक घोड़ी का रूप धारण कर तपस्या में लीन हो गई। दूसरी ओर संज्ञा का छाया रूप होने की वजह से संवर्णा को सूर्यदेव के तेज से भी कोई परेशानी नहीं हुई। सूर्य देव और संवर्णा की तीन संताने हुईं – मनु, शनिदेव और भद्रा।

पिता विरोधी क्यों हैं शनि
एक अन्य कथा के अनुसार कर्मफलदाता शनिदेव का जन्म महर्षि कश्यप के यज्ञ से हुआ था। जब शनिदेव संवर्णा के गर्भ में थे तो संवर्णा ने भगवान शिव की इतनी कठोर तपस्या की जिससे उन्हे खाने-पीने तक की सुध न रही। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव संवर्णा के गर्भ में पल रहे शनि पर भी पड़ा और उनका रंग काला हो गया।

जब शनिदेव का जन्म हुआ तो उनके रंग को देखकर सूर्यदेव ने संवर्णा पर संदेह किया और उन्हें अपमानित करते हुए यह कह दिया कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। मां के तप की शक्ति बालक शनि में भी आ गई थी और उन्होनें क्रोधित होकर अपने ही पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव बिल्कुल काले हो गए।

जिसके बाद परेशान सूर्यदेव को भगवान शिव की शरण लेनी पड़ी और भगवान शिव ने उनको उनकी गलती का अहसास करवाया। भगवान सूर्य ने उनसे हुई भूल के लिए क्षमा याचना की जिसके बाद उनका रूप पहले जैसा हो गया। लेकिन पिता-पुत्र का रिश्ता जो एक बार बिगड़ा वह फिर कभी नहीं सुधरा। आज वर्तमान समय में भी शनि को अपने पिता सूर्य का विरोधी माना जाता है।

मकर संक्रांति का ज्योतिष से संबंध:💐💐💐💐💐
– सूर्य और शनि का संबंध इस पर्व से जुड़ा है इसीलिए ज्योतिष में इस पर्व का महत्व बढ़ जाता है।
– सूर्य इस दिन अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं। इसे पिता के पुत्र के घर आने के रूप में देखा जाता है। दोनों का आपस में रिश्ता कटु है फिर भी इस दिन सूर्य शनि के घर आते हैं इसीलिए इसकी महत्ता है।
– आमतौर पर शुक्र का उदय भी लगभग इसी समय होता है इसलिए यहां से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। वहीं इसी दिन से उत्तरायण भी होता है तो इस दिन का काफी महत्व है।
– माना जाता है कि अगर कुंडली में सूर्य या शनि की स्थिति ख़राब हो तो इस पर्व पर विशेष तरह की पूजा से उसे ठीक किया जा सकता है।
– कहते हैं कि जिस परिवार में रोग-कलह तथा अशांति हो वहां पर रसोई घर में ग्रहों के विशेष नवान्न से पूजा करके लाभ लिया जा सकता है।
जानें शुभ फलों के लिए मकर संक्रांति को क्या कुछ किया जाए …
– इस दिन पहली होरा में स्नान करें, सूर्य को अर्घ्य दें।
– श्रीमदभागवत के एक अध्याय का पाठ करें या गीता का पाठ करें
– नए अन्न, कम्बल और घी का दान करें।
– इस दिन भोजन में नए अन्न की खिचड़ी बनायें।
– भोजन भगवान को समर्पित करके प्रसाद रूप से ग्रहण करें।
जानें आखिर इस दिन सूर्य से लाभ पाने के लिए क्या करें …
– शुभ फल पाने के लिए लाल फूल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें
– मंत्र होगा – “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः”
– लाल वस्त्र, तांबे के बर्तन तथा गेंहू का दान करें।
– इस दिन संध्याकाल में अन्न का सेवन न करें।
जानें शनि से लाभ पाने के लिए क्या करें …
– तिल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें।
शनि देव के मन्त्र ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनये नमः का जप करे पीपल का पूजन करे।
गुड़ और काले तिल जल में जरूर प्रवाह करे इससे सूर्य शनि दोनों शुभ रहते ह।
सक्रांति पर गुड़ और तील जरूर खाये ज्योतिषीय लाभ के साथ आरोग्य लाभ मिलता ह।
काले तिल जल में मिला कर सूर्य देव को नित्य अर्ध्य मीन सक्रांति देवे। इससे धन समृद्धि बढ़ती ह।
घी कम्बल लोह दान करे

सक्रांति पर खिचड़ी का महत्व :- सक्रांति पर घी मिला कर खिचड़ी जरूर खाये।ज्‍योतिषशास्‍त्र के मुताबिक खिचड़ी का मुख्‍य तत्‍व चावल और जल चंद्रमा के प्रभाव में होता है। इस दिन खिचड़ी में डाली जाने वाली उड़द की दाल का संबंध शनि देव से माना गया है। वहीं हल्‍दी का संबंध गुरु ग्रह से और हरी सब्जियों का संबंध बुध से माना जाता है। वहीं खिचड़ी में पड़ने वाले घी का संबंध सूर्य देव से होता है। इसके अलावा घी से शुक्र और मंगल भी प्रभावित होते हैं। यही वजह है कि मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने से आरोग्‍य में वृद्धि होती है।

जय माताजी की🙏
ऐस्ट्रो ज्योति दाधीच,तीर्थ राज पुष्कर राजस्थान।

error: Content is protected !!