“गांधी जिंदा है” ने बहुत कुछ फिर से जिंदा कर दिया

जब आप नाटक विधा में कुछ लिखते हैं और उसी शिद्दत से मंचन उसका हो जाता है, तब लगता है कि शब्दों को संस्कार देकर कला के दूसरे पक्ष ने रचना को रचना होने के मायने दे दिए हैं। यही सब लगा जब भीतर की अनुभति से जन्मे नाटक “गांधी जिंदा है” को कला अंकुर संस्थान के अपेक्षाकृत कम अनुभवी रंगकर्मियों ने अपने अपने शशक्त अभिनय, निर्देशन एवम परिश्रम से असली जामा पहनाया।
सूचना केंद्र सभागार में सुधि दर्शकों के बीच लगभग 50 मिनट की अवधि का यह नाटक पूरे वातावरण को ग़ांधीमय बनाने में कामयाब रहा। दर्शकों की प्रतिक्रियाएं इस बात का प्रमाण रही कि समय की मांग ने कलम से कुछ सार्थक करवा लिया है। यह भी उल्लेखनीय रहा कि नगर के गणमान्य उपस्थिति के बीच शुभारंभ हेतु दीप प्रज्ज्वलन सभागार के केअर टेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी रामस्वरूप एवम सघन संवेदनाओं के कथाकार गोपाल माथुर के हाथों सम्पन्न हुआ।
“दी लिटररी सोसाइटी ऑफ इंडिया” के गठन में समाज को बेहतर देने का संकल्प निहित था।’ अजमेर लिटरेचर फेस्टिवल’, अंध कवियों के लिए “नयन “कवि सम्मेलन, आदि सरोकारो की दिशा में बढ़ा हुआ एक और कदम था।
समस्त उपस्थित दर्शकों का आभार,,। जो नहीं आ पाए, उनके लिए अन्यत्र व्यवस्था करने का मन रहेगा। वैसे कुछ समय बाद हमारे यु ट्यूब चैनल”इंडियन लिट्” पर यह आप सबके लिए उपलब्ध होगा ही। तदनुरुप यहाँ लिंक प्रेषित कर दिया जाएगा।
एक बार पुनः संतोष और सार्थकता के साथ नाटक “गांधी जिंदा है “ने हमें फिर से जिंदा कर दिया या कहूँ जिंदा होने के मायने मिल सके। मौका मिले तो एक बार इस नाटक के दरवाजे पर दस्तक जरूर देना। यह एक जरुरी दस्तक है। आस पास पड़े मृत संवेदनाओं के ढेरो में अपने आप को पहचानने की पहल है।
फिलहाल आपकी शुभकामानाएं मेरे सृजन पथ को सुचिता प्रदान करेंगी।

रास बिहारी गौड़

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