घुड़लो घूमे ला जी, घुमेला ,अच्छे घर और वर की चाहत में पूजी जाती है गणगौर

चंदन सिंह भाटी
जैसलमेर माट में माटोळी घूमे, कोठी में ज्वारा रे…. गणणौर के ये गीत अब जैसलमेर बाडमेर की गलियों में सुनाई दे रहे हैं। लड़कियों और महिलाओं का इस त्योहार के प्रति आकर्षण देखते ही बन रहा है। घुड़ले के तहत शाम के समय लड़कियां एकत्रित होकर सिर पर छिद्र किया हुआ घड़ा लेकर, जिसमें दीपक जला सिर पर धारण कर समूह में घूमती है और गवर के गीत गाती है। इस त्योहार के प्रति बालिकाओं में ज्यादा उत्साह रहता है। बालिकाएं १५-२० की संख्या में झुंड में गली-गली में घुड़ले के गीत गाती है।
होलिका दहन के दूसरे दिन से शुरू हुए गणगौर त्योहार में कुंवारी कन्याएं और विवाहिताएं पूजन इत्यादि में जुट गई है। गणगौर का पर्व शुरू होने के साथ ही कुंवारी कन्याएं और महिलाएं सुबह-सुबह फूल चुनने के बाद गड़सीसर तालाब का पवित्र जल कलश में भर कर ला रही है। प्रति दिन ईसर और गणगौर की पूजा हो रही है। सुबह-सुबह महिलाएं बगीचे में जाती है और दूब एकत्रित करती है। इस दौरान वे गीत गाती है-बाड़ी वाला बाड़ी खोल, म्हैं आया थारी दोब ने…। बाद में महिलाएं निश्चित स्थान पर एकत्रित होकर दो-दो का जोड़ा बनाकर गणगौर की पूजा करती है।

अच्छे घर और वर की चाहत में पूजी जाती है गणगौर
कुंवारी कन्याएं अच्छे घर और वर की चाह में गणगौर का त्योहार मनाती है। गणगौर का त्योहार पूरी तरह से कुंवारी कन्याओं और महिलाओं का होता है। गणगौर मनाने के प्रति कुंवारी कन्याओं की यह धारणा है कि उसे अच्छा पति मिले और अच्छा घराना मिले।

महिलाओं का उत्साह उमड़ा
गणगौर के त्योहार में महिलाएं जुट गई है। सुबह-शाम महिलाओं की सार्वजनिक स्थानों, मंदिरों, छायादार व पुराने पेड़ों के नीचे भीड़ लगी रहती है। सजी-धजी महिलाएं गणगौर की आरती और पूजा में संलग्न देखी जा रही है।

गली-मोहल्ले में गणगौर की धूम
होलिका दहन के दूसरे दिन से शुरू होने वाली गणगौर पूजा 15 दिन तक चलती है। इसमें कुंवारियां व नवविवाहिताएं बढ़-चढ़कर भाग ले रही है। इन दिनों चल रही गणगौर पूजा की धूम स्वर्णनगरी के प्रत्येक मोहल्ले में देखने को मिल रही है। सुबह-सुबह हाथ में कलश लिए कन्याएं गणगौर पूजन स्थल पर पहुंचती है और विधिवत ईसर-गणगौर की पूजा करती दिखाई दे रही है।

शाम के समय सुनाई पड़ते हैं पारंपरिक गीत
गणगौर उत्सव शुरू होते हैं शहर में पारंपरिक गीतों की गूंज सुनाई देने लगी है। शाम के समय किसी भी गली-मोहल्ले से निकलने पर गणगौर के गीत ही सुनाई पड़ते हैं। सुबह की पूजा के बाद कन्याएं एवं महिलाएं शाम को एक बार एकत्र होकर पूजा-अर्चना करती है और गणगौर के पारंपरिक गीत गाती है।

रखा जाता है उपवास
इन दिनों कई लड़कियों द्वारा गणगौर माता का उपवास भी रखा जाता है। जो महिलाएं और लड़कियां परंपरागत ढंग से उपवास रखती आ रही हैं। उन्होंने तो इस बाद उपवास रखा ही साथ ही कई नई लड़कियों ने भी इस पूजा में अपना सहयोग दिया। हाल ही में जिनकी शादी हुई उन महिलाओं ने अपनी पहली गणगौर अपने मायके में मनाई। साथ ही गली-गली में गूंजने वाले लोक गीतों में अपनी सहभागिता निभाई। शहर के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी गणगौर की धूम देखी जा सकती है

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