इंसान का इंसान से हो- भाईचारा, बस यही है पैगाम हमारा

बी एल सामरा “नीलम “
शीशे के घर पर पत्थर ना उछालो लोगों !
बड़े नादान हो पर ,
जरा खुद को तो संभालो लोगों !
अंधेरा बहुत है राह में ,
चलना है मुश्किल ।
कुछ ना हो एक दिया तो जला लो लोगों !
चल रही है एक अजब सी हवा , यहां जहां रहे हैं ,
गांव गांव और नगर नगर ।
अंजली से ही सही कुछ जल तो ,
उस पर डालो लोगों !
खड़ा है जमाना मैदान-ए-जंग में हरदम ,
जितना भी बने इस जंग को टालो लोगों ! कहां फर्क है ,
राम रहीम में मेरे दोस्तों !
खुदा तो एक है ,
कहीं भी
शीश नवा लो लोगों !

*बी एल सामरा ‘नीलम’*
पूर्व प्रबन्ध सम्पादक
कल्पतरू हिन्दी साप्ताहिक एवं मगरे की आवाज पाक्षिक पत्र

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