*प्रिय !रूठो ना*

नटवर विद्यार्थी
बात-बात में, प्रिय! रूठो ना ,
अभी खड़ा बाहर कोरोना ।

तुम्हें चाहिए सुंदर गहने ,
वो भी मैं लाकर दे दूँगा ।
जन्मदिवस की सुंदर साड़ी ,
एक नहीं कमरा भर दूँगा ।

सभी दुकानें बंद पड़ी है ,
भरा पुलिस से कोना-कोना ।
बात-बात में, प्रिय! रूठो ना ,
अभी खड़ा बाहर कोरोना ।

आलू टिक्की , च्याउमीन भी ,
तुमको जल्दी लाकर दूँगा ।
पानी पुचके, बर्गर, पिज्ज़ा
सबके सब हाज़िर कर दूँगा ।

फ़ास्ट फ़ूड की बात छोड़ प्रिय ,
सुलभ नहीं है खाली दोना ।
बात- बात में, प्रिय!रूठो ना ,
अभी खड़ा बाहर कोरोना ।

आज हक़ीक़त बड़ी यही है ,
सारे के सारे घबराए ।
बंद सभी घर के दरवाज़े ,
मास्क लगाकर बाहर जाएं ।

समझ गया मैं सारी बातें ,
है मज़ाक , हँसकर बोलो ना।
बात- बात में, प्रिय!रूठो ना ,
अभी खड़ा बाहर कोरोना ।

– *नटवर पारीक*, डीडवाना

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