हास्य-व्यंग्य
इधर फ्रांस के वैज्ञानिकों ने अपनी प्रयोगशाला में अनुसंधान करके यह पता लगाया कि कोरोना वायरस मादा ही है, नर नही है और उधर कर्नाटक के बल्लारी जिले के कुडिगी तालुका के हुलीकेरी गांव के पास वाले गांव में कोरोनाम्मा माता प्रकट होगई. वर्षों पहले जब चेचक बीमारी फैली थी तो उत्तर भारत में शीतला माता और दक्षिण में मराम्मा अवतरित हुई थी. प्लेग फैला तो प्लेगम्मा ने अवतार लिया और चिकनगुनिया का प्रकोप हुआ तो कुंटाम्मा का जंम हुआ. कर्नाटक में यह खूबी है कि अवतार लेते ही देवी का पुतला बनाते है और फिर उसे सजाकर तथा विधि विधान से पूजा पाठ कर उसे पास के गांव में छोड आते है. वह लोग पूजा करके उसे अगले गांव में भेज देते है यानि ठीक वैसे ही जैसे रिले रेस में खिलाडी बैटन पासऑन करते है.
इस खुलासे से दुनियां भर में जो असमन्जस की स्थिति बनी हुई थी वह अब दूर होगई है. अपने देश में तो कुछ क्षेत्रों में इस खुलासे का इंतजार ही किया जा रहा था कि कोरोना देव है या कोई देवी ? अगर इसका पता लग जाये तो उसी अनुसार आगे की कार्ऱवाही मसलन माता का मंदिर बनाना, उनका पूजा-पाठ, अखंड कीर्तन करना आदि 2 शुरू किया जा सके. कुछ लोग हनुमान चालीसा की तर्ज पर कोरोना चालीसा छपवाने की भी फिराक में है.
एक जानकार भक्त ने बताया कि कई वर्षों पूर्व जब अजनाब खंड यानि भारतवर्ष में संतोषी माता ने अवतार लिया था तब माता के अवतार लेने की खबर लगते ही पंडों, पुजारियों, कथा वाचकों सहित उनके भक्तों की बाढ आगई थी. जगह जगह संतोषी माता की पूजा-पाठ, भजन कीर्तन होने लगे. कइयों ने उस सुनहरी मौके पर बहती गंगा में हाथ धोते हुए स्थान 2 पर यहां तक कि फुटपाथ- चौराहों तक पर जगह घेर कर उनके मंदिर बना दिए जैसे पिछले कुछ वर्षों में देश के कई नेताओं के मंदिर बनाये गए है और उनका गुणगान किया जा रहा है.
उन्ही संतोषी माता के भक्तों में से कुछ लोगों ने आगे बढ कर सप्ताह का एक दिन यानि शुक्रवार संतोषी माता के नाम तय कर दिया. जैसे मंगलवार को हनुमानजी महाराज के लिए माना जाता है ठीक उसी तरह शुक्रवार को संतोषी माता का व्रत करते हुए उनके प्रशाद के रूप में गुड-चने का सेवन करना पुन्य का काम बताया. ठीक वही तैयारिया कोरोना माता के लिए भी होने वाली है.
शिव शंकर गोयल