क्या कांग्रेस के रणनीतिकारों की जल्दीबाजी में लिए गए निर्णयों के कारण उलझी कांग्रेस की सियासत

रजनीश रोहिल्ला।
अब सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या अशोक गहलोत सरकार के रणनीतिकारों की जल्दबाजी के कारण सियासी संकट के समय पूरी तरह उलझ गई। क्या भले ही गहलोत संख्या बल के हिसाब से मजबूत हैं लेकिन रणनीति के तौर पर पायलट ज्यादा मजबूत साबित हो रहे हैं।
इसे समझना बहुत जरूरी है, कि घटनाक्रम की शुरूआत में हुआ क्या जिसके कारण यह सियासी घमासान 17 दिन चल गया और अभी कितने दिन चलेगा, कुछ कह नहीं सकते। लेकिन एक बात तो साफ हो चुकी है कि गहलोत सरकार के वो सारे दाव जो बहुत मजबूत नजर आ रहे थे, एक के बाद एक कमजोर पड़ते गए।
जिस रोज पायलट खेमा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को चुनौती देकर मानेसर पहुंचा। उसी दिन से मीडिया बयानबाजी के अलावा ऐसा कुछ नहीं हुआ कि पायलट से मिलकर उस पर विस्तृत चर्चा की जाए। असल में गहलोत के पा सरकार के बहुमत का नंबर गेम पूरा है। इसलिए कांग्रेस के राष्टीय नेताओं में एक आम राय बन गई कि पायलट यहां राजस्थान में मध्य प्रदेश की तर्ज पर सरकार नहीं गिरा सकते हैं। यही कारण रहा कि कांग्रेस नेताओं ने सारा ध्यान सरकार के समर्थन कर रहे विधायकों को एकजुट रखने पर दिया।

रजनीश रोहिल्ला
फिर पार्टी ने विधायक दल की एक बैठक बुलाकर व्हिप जारी कर दिया। उसके बाद एक बैठक और बुला ली गई। दो बैठक बुलाने के बाद पार्टी ने स्पीकर के यहां याचिका लगाकर पायलट सहित 18 विधायकों को नोटिस जारी करा दिए।
यहां बड़ा कानूनी पेच फस गया। नोटिस की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए पायलट खेमा हाईकोर्ट पहुंच गया। नोटिस की टाइमिंग और स्पीकर के क्षेत्राधिकार को लेकर कई तरह के सवाल कोर्ट के सामने आए। इन सभी पर हाईकोर्ट की डिविजन बैंच ने तीन दिन तक चर्चा करके निर्णय को 24 जुलाई तक के लिए सुरक्षित रख लिया। हाईकोर्ट ने कहा कि निर्णय आने तक स्पीकर 19 विधायकों को लेकर कोई कार्रवाई नहीं करें।
यहां एक बार फिर से कांग्रेस के रणनीतिकारो से भरी चूक हो गई। स्पीकर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार से मामले में विस्तृत सुनवाई का निर्णय किया। इधर हाईकोर्ट ने मामले में स्टे सुना दिया। कुल मिलाकर कानूनी पेचीदगियां बढ़ती चली गई। कांग्रेस का संकट हर एक दिन किसी न किसी रूप में बढ़ता चला गया।
अब जब सोमवार को स्पीकर की याचिका पर सुनवाई होनी थी तो कांग्रेस के रणनीतिकारों ने याचिका को वापस ले लिया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया। इसका क्या मतलब हुआ। इसका मतलब यह हुआ कि कांग्रेस के रणनीतिकार आगे बनने वाली परिस्थितियों का आकलन करने में असफल रहे।
होना क्या चाहिए था
जो कांग्रेस अब करना चाहती है, वह काम पहले दिन करना चाहिए था। जब गहलोत के पासबहुमत साबित करने का पूरा संख्या बल था तो राज्यपाल के पास जाकर पहले ही दिन सत्र बुलाने की मांग करनी चाहिए थी। नियमानुसार केबिनेट के निर्णय के बाद राज्यपाल सत्र बुलाने के लिए बाध्य हैं। लेकिन इसके भी कुछ नियम है। इसमें सत्र बुलाने से पहले 21 दिन के समय का प्रावधान है। गहलोत सरकार को उसी नीति पर काम करना चाहिए था। वैसे भी सारी भागादौड़ी में 18 दिन तो हो ही चुके हैं। संवैधानिक नियमों से राज्यपाल को 21 दिन की अवधि पर केबिनेट के निर्णय के अनुसार सत्र बुलाना पड़ता।
जब राज्यपाल सत्र बुलाते तो बिल लाने के आधार पर कांग्रेस पार्टी व्हिप जारी करती। जो उसने सबसे पहले किया। जो कि विशेषज्ञों के अनुसार प्रभावी नहीं है। क्योंकि कोई पार्टी व्हिप सदन से जुड़ी किसी चर्चा, बिल या बहुमत के समय ही व्हिप जारी कर सकती है। उसी आधार पर पार्टी व्हिप प्रभावी होता है। इसके आधार पर ही किसी विधायक को अयोग्य ठहराया जा सकता है।
कांग्रेस मुख्य सचेतक की शिकायत पर स्पीकर की ओर से कुछ ही घंटों में पायलट समेत 18 विधायकों को नोटिस देकर 3 दिन में जवाब मांगा गया। इससे स्पीकर की भूमिका पर भी सवाल उठ गए। मदन दिलावर ने बीएसपी के 6 विधायकों के कांग्रेस में विलय के मामले में स्पीकर के यहां 4 महीने पले याचिका लगाई थी। दिलावर का कहना है कि उनकी याचिका पर स्पीकर की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई औश्र ना ही डन्होंने अवगत कराया। अब यह मामला भी हाईकोर्ट पहुंच गया है। मदन दिलावर की याचिका पर हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए स्पीकर से इस संबंध मंे लिए गए निर्णय की जानकारी मांगी है। सुनवाई के बाद यह याचिका खारिज कर दी गई।
वहीं कांग्रेस के आक्रमक रवैये के कारण राज्यपाल से भी टकराव हो गया । गहलोत सरकार ने राज्यपाल से सत्र बुलाने की मांग करने के बाद दो दिन भी इंतजार नहीं किया। गहलोत विधायकों को लेकर राज्यपाल के निवास स्थान राजभवन पहुंच गए। राजभवन में नारेबाजी हुई, इससे पहले गहलोत राज्यपाल को चेतावनी देने से भी नहीं चुके।
उधर बीजेपी भी मैदान में आ गई। बीजेपी नेताओं ने कहा कि कांग्रेस को राज्यपाल पर दबाव बनाने का कोई अधिकार नहीं है।
इस तरह कांग्रेस के रणनीतिकार हर दिन एक नई समस्या से निबटने में जूझते जा रहे हैं। बार-बार बदलती जा रही रणनीति के कारण कांग्रेस और गहलोत सरकार सवालों के घेरे में आने के साथ-साथ रणनीतिक तौर पर कमजोर पड़ रही है।

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