अनूठी होती है ब्रज की होली

राजेन्द्र गुप्ता
ब्रज में आज से होली के पर्व शुरू हो जाएगा। ब्रज की होली के रंग अद्भुत और अनोखे होते है क्योंकि यहां होली महीने भर पहले शुरू हो जाती है और होली के बाद भी कई दिनों तक जारी रहती है।
होली मनाने की कई कथाएं प्रचलित हैं लेकिन मान्यता यह है कि सबसे पहले होली भगवान श्री कृष्ण ने राधा रानी के साथ खेली थी इसलिये ब्रज की होली आज भी दुनिया भर में जानी जाती है। आइए ब्रज की होली के अनेक रंगों से सराबोर होते हैं और जानते है वहां की होली के बारे में।

ब्रज की होली
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ब्रज में होली के मुख्य तौर पर दो रूप मिलते हैं एक ओर जहां यहां होली पर लट्ठ की बरसात होती है तो दूसरी तरफ फूलों की। जिस होली में लट्ठों से मार पड़ती है उसे लठमार होली कहते हैं जिसमें लोग राधा-कृष्ण बनकर नृत्य करते हुए, लोकगीतों को गाते हुए फूलों से होली खेलते हैं वह फूलों की होली कहलाती है।

ब्रज की मशहूर होली- लट्ठमार होली
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बरसाने की लट्ठमार होली ब्रज की मशहूर होली में शुमार होती है। होली का यह पर्व यहां कई दिनों तक चलता है। इसमें महिलाएं पुरुषों पर लट्ठ बरसाती हैं। पुरुष सर के उपर छतरीनुमा चीज रखकर बचाव करते है। नंदगांव और बरसाने के लोगों का ऐसा मानना है कि होली की लाठियों से किसी को चोट नहीं लगती है।
अगर चोट लगती भी है तो लोग घाव पर मिट्टी मलकर फिर शुरू हो जाते हैं। दरअसल इस दौरान पूरा माहौल रंगों से भरा होता है। महिलाएं लट्ठ बरसाती है और पुरुष महिलाओं के उपर गुलाल फेंकते है। इस होली का सीधा संबंध भगवान कृष्ण और राधा के प्रेम से है। लोग रंग खेलते वक्त भगवान श्रीकृष्ण के भजन और फाग गाते हैं।
दरअसल, नवमी के दिन राधारानी के बुलावे पर नंदगांव के हुरियार जहां बरसाना में होली खेलने जाते हैं, तो दूसरी तरफ बरसाना के हुरियार नंदगांव की हुरियारिनों से होली खेलने दशमी के दिन नंदगांव आते हैं। तब नंद चौक पर होली के रसिया गायन के बीच जमकर लठ्ठमार होली होती है। लठ्ठमार होली में नंदगांव के पुरूष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की थीं। नंदगांव की टोलियां जब पिचकारियां लिए बरसाना पहुंचती हैं तो उनपर बरसाने की महिलाएं जमकर लठ्ठ बरसाती हैं। पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है और साथ ही महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है। लठ्ठमार होली फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। ऐसी पौरणिक मान्यता है कि बरसाने की औरतों (हुरियारिनें) की लाठी जिसके सिर पर छू जाए, वह सौभाग्यशाली माना जाता है। श्रद्धालु या पुरुष हुरियारिनों से सिर पर लाठी का स्पर्श कराते हैं। वे नेग में रुपये व उपहार भी देते हैं।

लड्डू होली
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लठ्ठमार होली से पहले श्रीजी के मंदिर में परंपरागत रूप से लड्डू की होली खेली जाती है, जिसमें देश-विदेश से श्रद्धालु शामिल होते हैं। लठ्ठमार होली से पहले शाम को बरसाने में लडुआ (लड्डू) होली होती है। मंदिर परिसर में जमा लोग रसिया गा-गा कर एक-दूसरे पर लड्डू मारते हैं। परंपरा के मुताबिक होली के निमंत्रण की स्वीकारोक्ति के लिए नंदगांव से पंडा आता है। सूचना मिलने के बाद सभी लोग मंदिर में जुटकर नाच-गाना करते हैं। छतों पर खड़े श्रद्धालु लड्डुओं की बरसात करते हैं और इन लड्डुओं का प्रसाद पाने के लिए देश-विदेश से आए लोग जुटते हैं।

फूलों की होली
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फूलों की होली यानी वो होली जिसमें होली खेलने के लिए फूलों का इस्तेमाल होता है। इसमें रंगों की बजाय फूल बरसाए जाते है जिसका अपना अलग ही मजा होता है। गौर हो कि मथुरा और वृंदावन सहित देश के कई हिस्सों में कृष्ण मंदिरों में होली के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन होते हैं जिसमें कलाकार राधा-कृष्ण का रूप धारण कर नृत्य करते हैं और फगुआ के गीत गाते हैं। इसमें नृत्य के साथ-साथ एक दूसरे पर फूलों की बरसात भी की जाती है। इस प्रकार से इस दौरान फूलों की होली खेली जाती है।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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