राष्ट्र रत्न महान महाराणा प्रताप Part 3

हल्दी घाटी की लड़ाई (18 जून 1576 )

j k garg
हल्दीघाटी का कण-कण आज भी प्रताप की सेना के शौर्य,पराक्रम और बलिदानों की कहानी कहता है। 18 जून 1576 का भारत के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान है क्योंकि इसी दिन प्रसिद्ध हल्दीघाटी की लड़ाई में लगभग बाईस हजार आजादी के मतवाले राजपूतों के साथ राणा प्रताप ने अकबर की मुगल सेना के सेनापति राजा मानसिंह एवं आसफ खाँ की अस्सी हजार सैनिकों की विशालकाय सेना का वीरता पूर्वक सामना किया था|
हल्दीघाटी की लड़ाई मात्र एक दिन चला परन्तु इसमें 14000 राजपूत सैनिकों को अपने प्राणों की आहुती देनी पड़ी ।हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लडने वाले एक मात्र मुस्लिम सरदार हकीमखां सूरी थे | मेवाड़ के आदिवासी भीलों ने हल्दी घाटी में अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था सभी भील महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा जी बिना भेद भाव के उन के साथ रहते थे|आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत है तो दूसरी तरफ भील|शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को उनके विद्र्ही भाई शक्ति सिंह ने बचाया,किन्तु इस युद्ध में राणाप्रताप के प्रिय घोड़ेचेतककी भी मृत्यु हो गई।चित्तौड़ की हल्दी घाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है। चेतक का अंतिम संस्कार महाराणा प्रताप और उनके भाई शक्ति सिंह ने किया था। महाराणा प्रताप के भाले का और कवच का वजन 80 किलो था। महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में रखे हुए हैं। मेवाड़ राजघराने के वारिस को एकलिंग जी भगवन का दीवान माना जाता है। 13 जून 2021 यानी जेयष्ट शुक्ला तर्तीया, विक्रम सवंत 2078 को राजस्थान के साथ समूचा देश महाराणा प्रताप की 481 वीं जयंती बना रहा है |

संकलनकर्ता डा. जे. के गर्ग

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