रेवेन्यू बोर्ड का विखंडन : अजमेर की अस्मिता दांव पर

_*जनहित के मुद्दों पर सत्तारूढ़ दल के लोगों को सूंघ जाता है 🐍सांप*_
👉_*क्या जनता के हित में 🙋‍♂️आवाज उठाना सत्ता व पार्टी के खिलाफ बगावत मानी जाती है*_ 🤔
👉 _*ऐसे ही चुप्पी 🤫साधे रहे तो फिर जनता के सामने किस मुंह से जाते हैं*_ 🤨

प्रेम आनंदकर
किसी समय अजमेर-मेरवाड़ा अलग राज्य था, आजादी के बाद जब सभी छोटे-छोटे राज्यों व रियासतों का विलय किया जा रहा था, तब अजमेर-मेरवाड़ा का भी राजस्थान में विलय किया गया था। उस समय राजस्थान की राजधानी के लिए अजमेर की प्रबल दावेदारी थी, लेकिन अधिकांश नेता जयपुर को राजधानी बनाना चाहते थे। उस समय अजमेर को राजधानी के बदले कुछ सरकारी विभागों के राजस्तरीय मुख्यालय देने और अजमेर का महत्व कभी भी कम नहीं होने देने का वचन दिया गया था। इसके लिए तय किया गया था कि राव कमीशन बनाया जाए। राव कमीशन की रिपोर्ट में जो भी सिफारिश की जाएगी, वह सब अजमेर को दिया जाएगा। राव कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर ही अजमेर को राजस्थान राजस्व मंडल (रेवेन्यू बोर्ड), राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी), आयुर्वेद निदेशालय, राजस्थान कर बोर्ड (टैक्स बोर्ड), राजस्थान बिक्री कर अधिकरण (सेल्स टैक्स ट्रिब्यूनल), पंजीयन व मुद्रांक विभाग (रजिस्ट्री) का महानिरीक्षक (आईजी) जैसे महत्वपूर्ण विभागों के मुख्यालय दिए गए। अजमेर ने इससे संतोष कर लिया। यह सभी प्रमुख विभाग अजमेर की अस्मिता से नाता रखते हैं, लेकिन अब धीरे-धीरे इस अस्मिता पर आंच आने लगी है। राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का धीरे-धीरे विखंडन करते हुए एक आॅफिस जयपुर से संचालित किया जा रहा है। वहां राधाकृष्णन् भवन बोर्ड के खर्चे से बनाया गया, जिसमें बोर्ड का कार्यालय चल रहा है। इसके अलावा इसी भवन में स्कूली शिक्षा और काॅलेज शिक्षा के कार्यालय भी चल रहे हैं। अब राजस्थान राजस्व मंडल का विखंडन करने की तैयारी चल रही है। इसके लिए जयपुर में राजस्व आयुक्तालय बनाकर राजस्व मंडल की प्रशासनिक शक्तियां छीनी जा सकती हैं। अभी न्यायिक और प्रशासनिक शक्तियां राजस्व मंडल के पास ही है। जिला कलेक्टरों सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारियों पर बहुत-कुछ नियंत्रण राजस्व मंडल का होता है। राजस्थान लोक सेवा आयोग से चयनित तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों को पोस्टिंग देने और उनके तबादले करने का काम राजस्व मंडल ही करता है। लेकिन राजस्व आयुक्तालय बनने से सभी प्रशासनिक शक्तियां उसके पास चली जाएंगी। ऐसे में राजस्व मंडल केवल राजस्व संबंधी मामलों की सुनवाई का कोर्ट बनकर रह जाएगा। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि राजस्व मंडल अजमेर की इज्जत है और अगर यही इज्जत छीन ली जाती है, तो फिर अजमेर के पास कुछ भी नहीं रहेगा। इतना सब-कुछ होने और सरकार द्वारा राजस्व मंडल के विखंडन की तैयारी करने के बावजूद अजमेर के सत्तारूढ़ कांग्रेसी नेताओं ने पूरी तरह चुप्पी साध रखी है। वैसे भी जब कांग्रेस या भाजपा सत्ता में होती है, तो सत्तारूढ़ दल के लोग जनहित के मुद्दों पर चुप्पी साध कर मौनी बाबा बन जाते हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें सांप सूंघ गया है। अब यह बात समझ में नहीं आती है कि जनहित के मुद्दों पर आवाज उठाने या धरना-प्रदर्शन करने को सरकार व पार्टी के खिलाफ बगावत कैसे माना जा सकता है। लेकिन यही होता है, नेताओं का कहना होता है कि उनकी पार्टी की सरकार है, तो वे कैसे बोल सकते हैं। ऐसा भी नहीं है कि अभी कांग्रेसी नेताओं ने अपने मुंह पर ताले जड़ लिए हैं, जब भाजपा राज में अजमेर विद्युत वितरण निगम से अजमेर से बिजली सप्लाई छीनकर प्राइवेट कंपनी टाटा पाॅवर को दी गई थी, तब भाजपाई नेताओं ने अपने मुंह पर ताले लगा लिए थे और कांग्रेसियों ने छाती पीट-पीटकर काफी स्यापा किया था। अब भले ही शहर में बार-बार बिजली गुल हो या ट्रिपिंग हो या एकदम ज्यादा वाॅल्टेज की वजह से लोगों के घरों में फ्रिज, कूलर, पंखे, टीवी फुंक जाए, तो कांग्रेसियों को कोई मतलब नहीं होता है, क्योंकि अब उनकी पार्टी सत्ता में जो है। लेकिन उनका काम अब भाजपाई नेता कर रहे हैं और रोज बिजली-पानी की समस्या को लेकर चिल्ला रहे हैं। महंगाई और पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के दामों में बढ़ोतरी को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ कांग्रेसियों ने जगह-जगह पेट्रोल पम्पों पर प्रदर्शन किया और धरना दिया। लेकिन जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, तब महंगाई और पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के दामों में बढ़ोतरी के खिलाफ भाजपाई खूब चिल्लाए थे और छाती-माथा पीटा था, लेकिन अब उनकी बोलती ऐसे बंद है, जैसे उन्हें कोई मतलब नहीं हो, क्योंकि केंद्र में उनकी सरकार है। उल्टे भाजपाई यह कहते हुए इसके लिए राज्य की कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार बता रहे हैं कि राजस्थान में वैट अन्य राज्यों के मुबाकले काफी ज्यादा है, यदि राज्य सरकार वैट घटाए, पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के दाम कम हो सकते हैं। कोई भाजपाइयों से पूछने को तैयार नहीं है कि मानो यदि राज्य सरकार ने वैट घटा भी दिया तो इस बात की क्या गारंटी है कि पेट्रोलियम कंपनियां फिर कभी दाम नहीं बढ़ाएंगी। यह सब 🎭कांग्रेसियों और भाजपाइयों द्वारा जनता को बेवकूफ बनाने के हथकंडे हैं। कुल मिलाकर विपक्ष में रहते हुए ही सत्तारूढ़ दल या सरकार के खिलाफ चिल्लाना, हंगामा-प्रदर्शन करना और धरने देना उनका मकसद होता है। यानी विशुद्ध रूप से राजनीति करना और अपनी रोटियां सेकना है। लेकिन शोर ऐसे मचाते हैं, जैसे वे ही जनता के सच्चे हितैषी हों। यही अब राजस्व मंडल के मामले में हो रहा है। राजस्व मंडल के वकीलों ने विखंडन के खिलाफ लड़ने के लिए संघर्ष समिति बना ली है और वे आंदोलन पर उतारू हो गए हैं, किंतु अभी तक एक भी कांग्रेस विधायक या नेता का विखंडन के खिलाफ बयान नहीं आया है। यही राजनीति है। नेता अपनी रोटियां सेकते हैं और जनता बेवकूफ बन जाती है। इसी को तो असली राजनीति कहते हैं।
✍️ *प्रेम आनन्दकर, अजमेर।*

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