क्बीर कहते हैं कि – कबीर सूता किया करे, बैठा हो अरु जाग। जाके कारन आया था, वाके लारे लाग। जोके कारन यानी आत्म बोध के लिए मनुष्य जन्म मिला है। वाके लारै लाग – अब वही ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करो। सूता किया करे – अज्ञान में क्यों पड़ा हुआ है। बैठा हो अरु जाग – अज्ञान से बाहर आने के लिए उठ। किसी गुरु की शरण में जा।
क्ृष्ण को भी गुरु ने जगाया था। कृष्ण को ब्रह्म ज्ञान देने वाले ऋषि का नाम घोर आंगीरस है। वे काशी में रहते थे। कृष्ण की उम्र जब 65-70 वर्ष थी तब वे आंतरिक बेचैनी दूर करने के लिए भीष्म की सलाह से ऋषि घोर आंगीरस की शरण में गये। वहां 13 माह तक रहे। ऋषि ने उन्हें अपिपासा (तृष्णा से शून्य हाना), अविनाशी, अविकारी और प्राण ऊर्जा रूप होने का ज्ञान दिया। अनुभूति कराई। यही बाद में गीतोपदेश में रूपांतरित हुआ। तो ये घोर आंगीरस जब सम्मेत शिखर (जैनियों का तीर्थ) जा रहे थे तब कृष्ण से भी मिले। उन्होंने कृष्ण को कहा – तुम्हारे अवतरण का कार्य पूरा हो गया है। अब धरती पर क्या कर रहे हो ? अपने निजधाम (गोलोक) लौट जाओ। यह है जगाना। गुरु की रूहानी अवस्था इतनी ऊँची होती है कि वह कृष्ण जैसे अवतारी पुरुष को भी उनका धर्म याद दिलाता है।
इस से पहले दुर्वासा मुनि ने भी ऐसा ही किया था। जरासंध के आक्रमणों से कृष्ण मथुरा की रक्षा कर रहे थे। तब दुर्वासा जी आए। उन्होंने कृष्ण को सुदर्शन चक्र देते हुए कहा (जगाया) कि जिस काम के लिए आये हो अब वह काम करो ; अधर्म का नाश और धर्म की सुस्थापना, साधु जन की रक्षा एवं दुष्टों का संहार।
तेा, जो हमें जगाए वही गुरु। जो हमें चेताए वही गुरु। जो अज्ञान से ज्ञान की तरफ ले जाए और मृत्यु से अमृत्यु की तरफ जाने की राह दिखाए वहीं गुरु। श्रीकृष्ण ने भी गीता में चैथे अध्याय के श्लोक 33-34 में यही बात कही है। उनहोंने अपने उपदेश से अर्जुन को जगाया। अठारहवें अध्याय के 73 वें श्लोक में अर्जुन ने कहा कि आप के उपदेश से मेरा मोह नष्ट हो गया है। मुझे मेरी सनातन स्मृति पुनः मिल गई है ( अपना क्षत्रिय धर्म याद का गया है)। मेरी बुद्धि स्थिर हो गई है। अब मै युद्ध करने के लिए तैयार हूं। गुरु के रूप में कृष्ण ने अपने शिष्य, सखा, मित्र, बंधु अर्जुन को जिस तरह जगाया वह जागरण विश्व विख्यात हो गया।
जे मनुष्य स्वयं जागनग के लिए तत्पर है उसे तो गुरु जबा ही देता है। शेष सोये हुओं को झकझोरता है कि जागो, उठो, आगे बढो।