रामकृष्ण और विवेकानंद जी के मध्य वार्तालाप के अंदर छिपे हुए हैं खुशहाल जिन्दगी के रहस्य

dr. j k garg
विवेकानंद जी ने अपने गुरु परमहंस देव रामकृष्ण से पूछा जीवन की जटिलता के बीच उत्साह को किस प्रकार बनाए रक्खा जा सकता है ? इसके जवाब में परमहंस देव बोले जीवन में उसे गिनों जो तुमने पाया है,उसे मत गिनों जिसे तुम हासिल नहीं कर पाये हो | तुम्हें कहाँ पहुचना कि बजाय की सोचों तुम कहाँ पहुँच गये हो | विवेकानंद जी फिर बोले क्या प्रार्थना करने का कोई अर्थ है | मुझे कई बार लगता है कि मै बेकार में ही प्रार्थना कर रहा हूँ | गुरु जी ने उत्तर दिया विवेकानंद तुम शायद डर गये हो, इससे बचो | जीवन कोई समस्या थोड़े हीं है, जिसे तुम्हें सुलझाना है | मुझे लगता है कि तुमको यह जान लेना चाहिये तुम्हें जीना कैसे है, तब तुमको यह मालूम पड़ेगा\ कि जीवन बेहद आश्चर्यजनक और सुंदर है | विवेकानंद ने प्रश्न किया आदमी के हमेशा दुखी रहने का क्या कारण है ? रामकृष्ण बोले जीवन अंदर आने वाली जटिलता से परेशान होना लोगों की आदत बन गई है,यही प्रमुख वजह है लोग खुश नहीं रह पाते हैं और परेशान रहते हैं | विवेकानंद फिर बोले मनुष्य दुखी क्यों रहते हैं ? जवाब में गुरुवर बोले जिसे तुम दुःख कह रहे हो दरअसल वह एक परीक्षा है,परीक्षा से प्राप्त अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकार नहीं | याद रक्खो रगड़े जाने पर ही हीरे में चमक आती है | आग में तपने के बाद ही सोना शुद्ध होता है | तब विवेकानंद बोलने लगे इसका मतलब है कि दुःख अनुभव प्राप्त करने के लिये उपयोगी होता है | गुरुदेव ने उत्तर में कहा तुम बिलकुल सही समझ रहे हो अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह है | पहले वह परीक्षा लेता है और फिर सीख देता है | गुरुदेव के जवाब से संतुष्ट होते होकर विवेकानंद वापस बोले गुरुवर लोगों की कौन सी बात आपको चकित करती हैं ? गुरुदेव ने जवाब दिया याद रक्खो जैसे पढ़ने के लिए एकाग्रता जरूरी है वहीं एकाग्रता के लिए ध्यान जरूरी है और ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है।

डा.जे. के. गर्ग
पर्व संयुक्त निदेशक कॉलेज शिक्षा , जयपुर

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