युग प्रवर्तक युवा सम्राट स्वामी विवेकानंद part 3

j k garg
विवेकानंद जी का मानना था कि जब जब दिल और दिमाग के टकराव हो तब हमेशा अपने दिल की सुनो। उनके अनुसार आकांक्षा , अज्ञानता और असमानता बंधन की त्रिमूर्तियां हैं | जब लोग तुम्हें गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो। सोचो, तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं। सच्चाई तो यही है कि जो तुम सोचते हो वो हो जाओगे। यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो , तुम कमजोर हो जाओगे ; अगर खुद को ताक़तवर सोचते हो , तुम ताक़तवर हो जाओगे। स्वामी जी ने बतलाया कि सबसे बड़ा पाप खुद को कमजोर समझना ही है | पढ़ने के लिए एकाग्रता जरूरी है वहीं एकाग्रता के लिए ध्यान जरूरी है । ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है। स्वयं में बहुत सी कमियों के बावजूद अगर आप खुद को प्रेम कर सकते हो तो दुसरो में थोड़ी बहुत कमियों की वजह से उनसे घृणा कैसे कर सकते हो ? उनके मुताबिक बूरे संस्कार को दबाने के लिए एकमात्र समाधान यही है कि लगातार पवित्र विचार करते रहे । उस आदमी ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है जो आदमी किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता है | वही जीते हैं,जो दूसरों के लिए जीते हैं। अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे या उनके काम आए तो इसका कुछ मूल्य है, अन्य था यह धन सिर्फ बुराई का एक ढेर और कूड़ा ही है और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है |

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