मूल हिंदी -डा संजीव कुमार
माँ विवश हैं
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माँ अब बँट जाती है
अपने हर बेटे-बेटी के हिस्से में।
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तब वह
कुछ दिन एक के पास
कुछ दिन दूसरे के पास रहती है।
–
सच में
क्योंकि उसके कोख के हिस्से
अब एक नहीं होते,
और उन पर होता है
किसी और का अधिकार।
…
इसलिये
वह डोलती रहती है
अपनी कोख के हिस्से
सहेजने के लिये-
जो शायद ही कभी
एक स्थान पर होते हैं।
..
जीवन की यही विसंगति है
जीवन का यही सत्य है
और माँ विवश है।
पता: C 122 Sector 19, Noida 201301
सिंधी अनुवाद: देवी नागरानी
माउ वंडजी वञे थी
पहिंजे हर पुट-धीउ जे हिस्से में
…
तडहिं हूअ
कुछ डींह हिक वटि
कुछ डींह ब्ये वटि रहंदी आहे
..
हक़ीक़त में
छाकाण त हुन जी कोख विराहिजी वई आहे
ऐं हाण उन ते आहे
कहिं ब्ये जो अधिकार
इन्हीअ करे
हूअ पई फ़ेर्रा पाईंदी आ
पहिंजी कोख जा हिस्सा
समेटण लाइ
जे शायद ई कडहिं
हिक जगह ते हूँदा आहिन
जीवन जी इहाई बेतुकाई
इहाई जीवन जी सच्चाई आहे
ऐं माउ बेबस आहे!
देवी नागरानी
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