-अमित सारस्वत, ब्यावर-
देश में हिन्दू हो या मुस्लिम, अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक। हर किसी को अपनी आवाज उठाने के लिए संघर्ष करना पड़ा रहा हैं। अपनी मांग को बुंलद करने के लिए भारत जैसे देश में मानव को अपने ही लोगों की कुर्बानी देनी पड़ रही हैं। लोकतांत्रिक कहे जाने वाले हिन्दुस्तान में नागरिकों को अपने हक के लिए लडऩा पड़ रहा हैं। बावजूद इसके कोई परिणाम सामने नहीं आ रहा। देश में आरक्षण की बात हो या नारी सुरक्षा की, हर जगह लहू बह रहा हैं। गुर्जरों को जहां आंदोलन में आरक्षण के लिए अपने भाईयों की कुर्बानी देनी पड़ी, वहीं नारी पीडि़ता को वेंटीलेटर पर सोते देखे न्याय मांग रही है। लेकिन सरकार के आलाकमान आश्वासन के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे।
अस्पताल में तड़पती बेटी की खबर मीडिय़ा में आने के बाद हजारों युवाओं ने दिल्ली को हिला दिया। इसकी आग पूरे देश में फैल गई। जगह-जगह रैलियां, कैंड़ल मार्च सहित विभिन्न कार्यक्रम कर न्याय की आवाज को बुंलद किया गया, लेकिन सरकार संवेदना प्रकट करने के अलावा कुछ नहीं कर सकी। इंसाफ की आग में जल रही दिल्ली में पुलिस को अपना एक कांस्टेबल खोना पड़ा, वहीं वेंटीलेटर पर सो रही बेटी आज अपनी आखरी सांसे गिन रही हैं और इसकी मौत के साथ ही इंसाफ की आग भी बुझ जाएगी।
लेकिन सवाल यह उठता हैं कि आखिर कब तक देश की जनता को अपने हक के लिए जान की बाजी लगानी पड़ेगी? दुर्गा रुपी कही जाने वाली नारी को बलात्कार की आग में जलना पड़ेगा। सरकार को कुछ ऐसा तो करना ही होगा कि शांत कहे जाने वाले हिन्दुसान में बदले की भावना ना जाग्रत हो, नहीं तो फिर ऐसी ही इंसाफ की आग जलेगी और राजनैतिक पार्टियों के अहम् व स्वाभिमान की लड़ाई में फिर किसी को अपनी जान गंवानी पड़ेगी।