रंगों का त्योहार धुलेंडी

धुलेंडी का महत्व-
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राजेन्द्र गुप्ता
धुलेंडी होली के त्यौहार का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। होलिका दहन के अगले दिन धुलेंडी का पर्व बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। होलिका पूजा करने के लिए जिस जगह होलिका दहन होना है उस जगह को गंगा जल से पवित्र किया जाता है। फिर मोहल्ले के चौराहे पर होलिका पूजन करने के लिए डंडे की स्थापना की जाती है। होलिका पूजा करने के लिए उपले, लकड़ी और घास डालकर एक ढेर बनाया जाता है। होलिका दहन करने के लिए पेड़ों से टूट कर गिरी हुई सुखी लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है और नियमित रूप से इस ढेर में थोड़ी थोड़ी लकड़ियों को डाला जाता है। होलाष्टक के दिन होलिका जलाने के लिए दो डंडो की स्थापना की जाती हैं। इन डंडो में से एक को होलिका और दूसरे डंडे को प्रह्लाद माना जाता है। होली के त्यौहार को दो भागों में मनाया जाता है। पहला होलिका दहन या छोटी होली दूसरा धुलेंडी या बड़ी होली।

मान्यताओं के अनुसार धुलेंडी
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मान्यताओं के अनुसार एक बार कामदेव ने शिवजी की तपस्या को भंग कर दिया था। तपस्या भंग किये जाने पर शिवजी कामदेव पर बहुत क्रोधित हो गए। शिव जी ने अपनी तपस्या भंग करने का प्रयास करने के लिए फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि के दिन कामदेव को भस्म कर दिया। कामदेव को प्रेम के देवता माना जाता है। कामदेव की मृत्यु होने पर पूरा संसार दुखी हो गया। तब कामदेव की पत्नी रति ने भगवान शिव से कामदेव की गलती के लिए क्षमायाचना की, तब भगवान् शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। तभी से होलाष्टक के अंत में धुलेंडी का त्यौहार मनाने की प्रथा चली आ रही है।

• हिन्दू धर्म में होली का त्यौहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

• होली को संस्कृत में धूली भी कहा जाता है, कई जगहों पर होली को धुलहट्टी, धुलंडी या धुलेंडी भी कहते हैं।

• धुलेंडी के दिन लोग एक दूसरे को सुगंधित कलर पाउडर और इत्र लगाकर यह त्यौहार मनाते है।

स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है धुलेंडी का पर्व-
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• धुलेंडी उत्सव को स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता हैं।

• धुलेंडी के समय मौसम में बदलाव आता है जिसकी वजह से कई प्रकार की बीमारियों के होने का खतरा होता है।

• आजकल रंगों को बनाने के लिए भी प्राकर्तिक चीजों का इस्तेमाल किया जाता है ये रंग प्राकर्तिक चीजों से बने होते है जो त्वचा को नुकसान होने से बचाते हैं। और साथ ही अलग अलग रोगों से हमारे शरीर की रक्षा करने में सहायक होते हैं।

धुलेंडी से जुडी विशेष बाते-
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• धुलेंडी का त्यौहार सभी उम्र के लोगो का पसंदीदा त्यौहार होता है।

• इस दिन सभी लोग अपने परिवार के वरिष्ठ सदस्यों को अबीर-गुलाल लगाकर उनके पैर छूकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

• धुलेंडी का त्यौहार भारत के अलग-अलग भागों में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है।

• धुलेंडी के पर्व के अवसर पर कई प्रकार के क्षेत्रीय गीत, संगीतमय नाटक और नृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं।

• धुलेंडी के दिन दोपहर में रंग खेलने के बाद, रात के समय सभी लोग एक-दूसरे के घर होली खेलने जाते हैं और एक दूसरे से गले मिलकर बधाइयां देते हैं।

• इस दिन उत्तर भारतीय क्षेत्र में विशेष मिठाई गुझिया बनायीं जाती है। जिसे लोग बड़े चाव से खाते है।

• मथुरा में, बहुत ऊंचाई पर एक दही हांड़ी को लटका दिया जाता है जिसे तोड़ने के बाद होली खेली जाती है।

धुलेंडी की पवित्र भस्म –
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• अकसर आपने देखा होगा कि रात के समय होलिका दहन करने के बाद अगले दिन सुबह सभी लोग होली जलने के स्थान पर जाकर वहां होली की भस्म उड़ाकर धुलेंडी का पर्व मनाते हैं।

• कुछ लोग होलिका की भस्म को अपने घर भी ले आते हैं।

• होलिका की भस्म बहुत ही शुभ होती है। मान्यताओं के अनुसार होलिका की भस्म में देवताओं का आशीर्वाद होता है।

• होलिका की भस्म को माथे पर तिलक की तरह लगाने से भाग्य अच्छा होता है और बुद्धि में बढ़ोत्तरी होती है।

• एक मान्यता के अनुसार होलिका की भस्म में शरीर के अंदर मौजूद दूषित द्रव्य सोखने की क्षमता मौजूद होती है, इसी वजह से इस भस्म को शरीर पर लगाने से कई प्रकार के चर्म रोगों से बचाव होता है।

• शास्त्रों के अनुसार होलिका की भस्म को घर में लाने से घर में मौजूद नकारात्मक शक्तियां खत्म हो जाती हैं। और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

• बहुत से लोग होलिका की भस्म लाकर ताबीज में भरकर पहनते हैं। मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से आपके घर में बुरी आत्माओं का असर नहीं होता और आपके घर के ऊपर से किसी भी प्रकार के तंत्र मन्त्र का असर समाप्त हो जाता है।

• अपने शरीर के ऊपर होलिका की भस्म लगाने समय नीचे दिए गए मन्त्र का जप करे।

वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रह्मणा शंकरेण च।

अतस्त्वं पाहि मां देवी! भूति भूतिप्रदा भव।।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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