कविता- यह समय

रास बिहारी गौड़
यह समय
किस्से, कहानी, कविता, किताबों का नहीं हैं
भरे पेट गहरी में नींद में सोए पड़े हैं
खाली पेट झूठन बटोरने में मशगूल हैं
शब्दों को दृश्य बनाने की जिद में
पूरे बदन पर आँखे उग गई हैं

यह समय
कूँची वाले रंगों का नहीं है
अलग-अलग रंगों का एक कैनवास पर होना
एक-दूसरे के अस्तिव का खतरा है

यह समय
नृत्य, नाटक, सिनेमा का तो बिल्कुल ही नहीं है
क्योंकि शोर मचाते समय में
शोर सुना जा सकता है
आवाजें मायने खो देती है

यह समय कलाओं के लिए
कुछ देर मौन रखने का समय है
मौन बीतने के इंतजार का समय है
मौन से नए समय की उम्मीद का समय है

*रास बिहारी गौड़*

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