हिंदी भारत संघ की राजभाषा होने के साथ ही ग्यारह राज्यों और तीन संघ शासित क्षेत्रों की भी प्रमुख राजभाषा है। राजभाषा का शाब्दिक अर्थ होता है राजकाज की भाषा। अतः वह भाषा जो देश के राजकीय कार्यों के लिए प्रयोग की जाती है “राजभाषा” कहलाती है। राजभाषा किसी देश या राज्य की मुख्य आधिकारिक भाषा होती है जो समस्त राजकीय तथा प्रशासनिक कार्यों के लिए प्रयुक्त होती है। राजाओं और नवाबों के ज़माने में इसे दरबारी भाषा भी कहा जाता था। हिंदी के विकास के लिए राजभाषा विभाग का गठन किया गया है। भारत सरकार का राजभाषा विभाग इस दिशा में प्रयासरत है कि केंद्र सरकार के अधीन कार्यालयों में अधिक से अधिक कार्य हिंदी में हो, लेकिन विडम्बना है कि आज भी अधिकांश सरकारी कार्य अंग्रेजी में ही होते हैं एवं न्यायालयों में तो अंग्रेजी का ही वर्चस्व कायम है।
एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की पहचान है बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, संप्रेषक और परिचायक भी है। बहुत सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिंदी विश्व की संभवतः तीसरी सर्वाधिक प्रयोग में आने वाली सबसे सशक्त वैज्ञानिक भाषा है। जो हमारे पारम्परिक ज्ञान, प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु भी है। हिंदी को बहुत से लोग राष्ट्रभाषा के रूप में देखते हैं। राष्ट्रभाषा से अभिप्राय है किसी राष्ट्र की सर्वमान्य भाषा। क्या हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है? यद्यपि हिंदी का व्यवहार संपूर्ण भारतवर्ष में होता है, लेकिन हिंदी भाषा को भारतीय संविधान में राष्ट्रभाषा नहीं कहा गया है। चूँकि भारतवर्ष सांस्कृतिक, भौगोलिक और भाषाई दृष्टि से विविधताओं का देश है। इस राष्ट्र में किसी एक भाषा का बहुमत से सर्वमान्य होना निश्चित नहीं है इसलिए भारतीय संविधान में देश की चुनिंदा भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में रखा है। शुरु में इनकी संख्या 16 थी, जो आज बढ़ कर 22 हो गई हैं। ये सब भाषाएँ भारत की अधिकृत भाषाएँ हैं, जिनमें भारत देश की सरकारों का काम होता है। भारतीय मुद्रा नोट पर 16 भाषाओं में नोट का मूल्य अंकित रहता है और भारत सरकार इन सभी भाषाओं के विकास के लिए संविधान अनुसार प्रतिबद्ध है।
वर्तमान समय में हिन्दी एवं मातृभाषाओं का महत्व एवं उपयोग अधिक प्रासंगिक हुआ है। क्योंकि सर्वतोमुखी योग्यता की अभिवृद्धि एवं स्व-पहचान के बिना युग के साथ चलना और अपने आपको टिकाए रखना अत्यंत कठिन होता है। नई शिक्षा नीति ने इस बात को गंभीरता से स्वीकारा है, निश्चित ही यह भारत को एक ज्ञानमय समाज में रूपांतरित करने वाली सफल योजना साबित होगी। हमारे पास आज दुनिया तक पहुंचने का शानदार सु-अवसर है जो अब से पहले शायद कभी नहीं था। हमारे पास आज ऐसा नेतृत्व है, जो इन तमाम बदलावों को साकार करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है। हमें सिर्फ सकारात्मक प्रयासों के साथ सही दिशा में बढ़ने एवं मातृभाषा एवं स्वभाषा में शिक्षण को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। हमारा देश दुनिया का सबसे युवा देश है। अपनी इस युवा जनशक्ति का सदुपयोग कर हम महाशक्ति बनने की दिशा में सार्थक हस्तक्षेप कर सकते हैं। अपने युवाओं को नये कौशलों और नये ज्ञान से लैस कर दुनिया में परचम लहरा सकते हैं। जिसमें स्वभाषा, स्व-संस्कृति एवं स्व-पहचान की सार्थक भूमिका है।
भारत सुपर पावर बनने के अपने सपने को साकार कर सकता है। इस महान उद्देश्य को पाने की दिशा में विज्ञान, तकनीक और अकादमिक क्षेत्रों में नवाचार और अनुसंधान करने के अभियान को तीव्रता प्रदान करने के साथ मातृभाषाओं एवं हिन्दी में शिक्षण एवं राजकाज में उपयोग को प्राथमिकता देना होगा। हिन्दी एवं मातृभाषाओं के प्रति प्रतिबद्धता के साथ नए भारत के निर्माण का आधार प्रस्तुत करना होगा, इससे नव-सृजन और नवाचारों के जरिए समाज एवं राष्ट्र में नए प्रतिमान उभरेंगें।
हिन्दी एवं मातृभाषाएं सम्पूर्ण देश में सांस्कृतिक और भावात्मक एकता स्थापित करने का प्रमुख साधन है। भारत का परिपक्व लोकतंत्र, प्राचीन सभ्यता, समृद्ध संस्कृति तथा अनूठा संविधान विश्व भर में एक उच्च स्थान रखता है, उसी तरह भारत की गरिमा एवं गौरव की प्रतीक हिन्दी एवं मातृभाषाओं को हर कीमत पर विकसित करना हमारी प्राथमिकता होनी ही चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन में हिन्दी सहित अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को सरकारी कामकाज, स्कूलों, कॉलेजों, तकनीकी शिक्षा में प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए, इस दिशा में वर्तमान सरकार के प्रयास उल्लेखनीय एवं सराहनीय है, लेकिन उनमें तीव्र गति दिये जाने की अपेक्षा है। क्योंकि इस दृष्टि से महात्मा गांधी की अन्तर्वेदना को समझना होगा, जिसमें उन्होंने कहा था कि भाषा संबंधी आवश्यक परिवर्तन अर्थात हिन्दी को लागू करने में एक दिन का विलम्ब भी सांस्कृतिक हानि है। मेरा तर्क है कि जिस प्रकार हमने अंग्रेज लुटेरों के राजनैतिक शासन को सफलतापूर्वक समाप्त कर दिया, उसी प्रकार सांस्कृतिक लुटेरे रूपी अंग्रेजी को भी तत्काल निर्वासित करें।’ लगभग पचहतर वर्षों के आजाद भारत में भी पूर्व सरकारों की उपेक्षापूर्ण नीतियों के कारण हिन्दी एवं क्षेत्रीय भाषाओं को उनका गरिमापूर्ण स्थान न दिला सके, यह विडम्बनापूर्ण एवं हमारी राष्ट्रीयता पर एक गंभीर प्रश्नचिन्ह है।
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय को शूल।
प्रसिद्ध साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र की ये पंक्तियां निश्चित रूप से यह बोध कराने के लिए पर्याप्त हैं कि अपनी भाषा के माध्यम से हम किसी भी समस्या का समाधान खोज सकते हैं। निज भाषा देश की उन्नति का मूल होता है। निज भाषा को नकारना अपनी संस्कृति को विस्मरण करना है। जिसे अपनी भाषा पर गौरव का बोध नहीं होता, वह निश्चित ही अपनी जड़ों से कट जाता है और जो जड़ों से कट गया उसका अंत हो जाता है।
शिक्षा एवं सरकारी कामकाज में हिन्दी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाआंे की घोर उपेक्षा होती रही है, इन त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण स्थिति को नरेन्द्र मोदी सरकार कुछ ठोस संकल्पों एवं अनूठे प्रयोगों से दूर करने के लिये प्रतिबद्ध है, उनको मूल्यवान अधिमान दिया जा रहा है। ऐसा होना हमारी सांस्कृतिक परतंत्रता से मुक्ति का एक नया इतिहास होगा। अमित शाह के आह्वान पर हम हिन्दी को राजकाज, व्यवहार एवं प्रयोग की भाषा बनाये, तभी दुनिया में प्रतिष्ठा प्राप्त कर रही हिन्दी अपने देश में भी गौरवान्वित हो पायेगी।
प्रेषकः
(ललित गर्ग)
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
मो. 9811051133