वैष्णव सम्प्रदाय का इतिहास

राजेन्द्र गुप्ता
वैष्णव सम्प्रदाय, भगवान विष्णु को ईश्वर मानने वालों का सम्प्रदाय है। वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म या पांचरात्र मत है। इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं, जिन्‍हें, ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज – इन 6: गुणों से सम्पन्न होने के कारण भगवान या ‘भगवत’ कहा गया है और भगवत के उपासक भागवत कहलाते हैं। वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय हैं। जैसे: बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माध्व, राधावल्लभ, सखी और गौड़ीय। वैष्णव का मूलरूप आदित्य या सूर्य देव की आराधना में मिलता है।

वैष्‍णव धर्म या सम्‍प्रदाय से जुड़े महत्‍वपूर्ण तथ्‍य:
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वैष्णव धर्म के बारे में सामान्य जानकारी उपनिषदों से मिलती है। इसका विकास भगवत धर्म से हुआ है।

वैष्णव धर्म के प्रवर्तक कृष्ण थे, जो वृषण कबीले के थे और जिनका निवास स्थान मथुरा था।

कृष्ण का सबसे पहले उल्लेख छांदोग्य उपनिषद में देवकी के बेटे और अंगिरस के शिष्य के रूप में हुआ।

विष्णु के अवतारों का उल्लेख मत्स्यपुराण में मिलता है।

शास्‍त्रों में विष्‍णु के 24 अवतार माने गए हैं, ले‍कि‍न मत्‍स्‍य पुराण में प्रमुख 10 अवतार माने जाते हैं:
(i) मत्स्य
(ii) कच्‍छप
(iii) वराह
(iv) नृसिंह
(v) वामन
(vi) परशुराम
(vii) राम
(viii) कृष्‍ण
(ix) बुद्ध
(x) कल्कि

24 अवतारों का क्रम इस तरह है:
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(i) आदि परषु
(ii) चार सनतकुमार
(iii) वराह
(iv) नारद
(v) नर-नारायण
(vi) कपिल
(vii) दत्तात्रेय
(viii) याज्ञ
(ix) ऋषभ
(x) पृथु
(xi) मतस्य
(xii) कच्छप
(xiii) धनवंतरी
(xiv) मोहिनी
(xv) नृसिंह
(xvi) हयग्रीव
(xvii) वामन
(xviii) परशुराम
(xix) व्यास
(xx) राम
(xxi) बलराम
(xxii) कृष्ण
(xxiii) बुद्ध
(xxiv) कल्कि

वैष्णव धर्म में ईश्वर प्राप्ति के लिए सर्वाधिक महत्व भक्ति को दिया है।

ऋग्वेद में वैष्णव विचारधारा का उल्लेख मिलता है।

वैष्‍णव ग्रंथ इस प्रकार हैं:
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(i) ईश्वर संहिता
(ii) पाद्मतन्त
(iii) विष्णुसंहिता
(iv) शतपथ ब्राह्मण
(v) ऐतरेय ब्राह्मण
(vi) महाभारत
(vii) रामायण
( viii) विष्णु पुराण

वैष्‍णव तीर्थ इस प्रकार हैं:
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(i) बद्रीधाम
(ii) मथुरा
(iii) अयोध्या
(iv) तिरुपति बालाजी
(v) श्रीनाथ
(vi) द्वारकाधीश

वैष्‍णव संस्‍कार इस प्रकार हैं:
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(1) वैष्णव मंदिर में विष्णु राम और कृष्ण की मूर्तियां होती हैं. एकेश्‍वरवाद के प्रति कट्टर नहीं हैं।
(2) इसके संन्यासी सिर मुंडाकर चोटी रखते हैं।
(3) इसके अनुयायी दशाकर्म के दौरान सिर मुंडाते वक्त चोटी रखते हैं।
(4) ये सभी अनुष्ठान दिन में करते हैं।
(5) यह सात्विक मंत्रों को महत्व देते हैं।
(6) जनेऊ धारण कर पितांबरी वस्त्र पहनते हैं और हाथ में कमंडल तथा दंडी रखते हैं।
(7) वैष्णव सूर्य पर आधारित व्रत उपवास करते हैं।
(8) वैष्णव दाह संस्कार की रीति हैं।
(9) यह चंदन का तीलक खड़ा लगाते हैं।

वैष्‍णव साधुओं को आचार्य, संत, स्‍वामी कहा जाता है।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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