अट्टू-पट्टू की उधारी

-मोहन थानवी, बहुभाषी-
बीमारी की बदकिस्मती। बरसात के मौसम में वह अट्टू को जा लगी। बदन दर्द, सर्दी,
खांसी, जुकाम हां भाई हां ये सब।
मौसम को कोसते हुए अट्टू साहिब ने दो दिन में तीन डॉक्टर बदल लिये। इन
बीमारियों में से एक भी कम नहीं हुई बल्कि थकान की बीमारी और बढ़ गई। चाइनाराम
सिन्धी हलवाई की सिन्धी मिठाई सिन्धी हलवा के टीन के एक डिब्बे में अट्टू साहिब
ने ठूंस ठूंस कर टेबलेट्स की स्ट्रिप्स रखी। साथ में इनव्हेलर, बाम और एक
थर्मामीटर भी सहेजा। चार दिन बाद तो उन्हंे आफिस से भी फोन आने लगे – आफिस आ
जाओ भैया वरना विदाउट पे माने जाओगे। अट्टू साहिब भला ऐसा कैसे होने देते, सो
पांचवें दिन जा पहुंचे आफिस।
पिऑन से लेकर बड़े साहब तक सबसे पहले उन्होंने ‘जय हो’ से दुआ-सलाम की। फिर अपनी
सीट पर बैठे तो पूछापाछी के लिए साथियों ने तांता लगा दिया। चार दिन में अलग
अलग डॉक्टरों का अनुभव लेने वाले अट्टू साहिब भला ऐसा मौका कैसे चूक सकते थे।
सो वे अपनी बीमारी को भूल गए। खांसी-जुकाम, सिरदर्द यूं भी स्वाभाविक रूप से
चार-पांच दिन बाद आदमी का पीछा छोड़ देते हैं।ऐसा ही अट्टू साहब के साथ हुआ मगर
अच्छा हुआ। वे खुद को हकीम लुकमान का रिश्तेदार समझने लगे।
माथुर साहब ने उनसे पूछा – कौनसी दवा ली आपने, जल्दी असर कर गई। देखो न सुबह से
मुझे भी सरदर्द हो रहा है।
खांसी भी है क्या! अट्टू साहब ने अपनी डॉक्टरी चलाई।
हां हां साहब, जुकाम भी है।
बदन दर्द भी कर रहा होगा!
हां भाई हां!
तो समझो तुम्हारा रोग मैंने दूर कर दिया। ये लो दो गोली।
कैसे लूं।
कैसे… अरे भाई दो चाय मंगवाओ। एक तुम पिओ, एक मैं पी लूंगा।
इससे मेरी बीमारी दूर हो जाएगी!
अरे क्या बात करते हो! चुटकियों में…
साहब, पिछले चार घंटे से परेशान हूं…
चिंता मत करो। जैसा कहूं वैसा करते जाओ।
आप कहते हैं तो यकीन करना पड़ रहा है वरना…
फिर वही निराशावादी बातें। भैया आशावादी बनो…आशावादी
लेकिन जब नाक बहती रहेगी तो आशाएं रह कहां जाएंगी साहब…
अच्छा, टेंशन भी बहुत है तुम्हंे… ये लो, एक टेबलेट और…
मर गया! अरे साहब आप चाहेें तो समोसे भी चाय के साथ मंगवा देता हूं। बस और दवाई
न दें साहब
ऐसे कैसे हो सकता है। दवा खाए बगैर तुम्हें आराम कैसे मिलेगा भैया
मेरी हालत पर तरस खाएं…
तुम दवाइयां खाओ भैया। मैं तरस खाउं या सरस…इसकी चिंता मत करो। और अब
तुम्हारा समय खत्म…प्लीज अब शर्माजी को आने दो। बहुत देर से अपनी सीट पर पहलू
बदल रहे हैं। और हां भैया, कल चैकअप करवाने जरूर आना।
शर्माजी वास्तव में अट्टू साहिब से मिलने को बेचैन थे। माथुर के जाते ही वे
अट्टू साहब के केबिन में जा घुसे। पहले खंखारे, फिर मुस्कराये। कुर्सी को जरा
पीछे खिसकाया और बड़ी अदा से उस पर बैठ गए। अट्टू साहिब अपनी डॉक्टरी के नशे
में… क्षमा कीजिये… कुछ देर पहले खाई दवा की खुमारी में थे। अधखुली आंखों
से उन्होंने शर्माजी को देखा, कुछ सजग हुए और बोले – तो शर्माजी आपको भी कब्ज
हो गई।
शर्माजी हैरान! यह राज की बात अट्टू साहिब को कैसे मालूम हुई! खैर उन्होंने मन
ही मन तय किया और फिर खंखारते हुए बोलने को उद्यत हुए – अट्टू साहब, बात दरअसल
ये….
अट्टू साहब ने उनकी बात लपक ली – छोड़ो भी शर्माना, शर्माजी मैं आपकी समस्या दस
मिनट में दूर कर दूंगा…
सच साहब…
हां भाई हां!
ओ… फिर तो मैं पट्टू से भी शर्त जीत जाउंगा…।
शर्त… कैसी शर्त… खैर छोड़ो… ये लो, इसे गर्म पानी के साथ ले लो।
नहीं नहीं मैं ये नहीं लूंगा मैं तो आपसे….
कैसे नहीं लोगे… मुझे जानते नहीं! मैं देकर ही दम लूंगा।
अट्टू साहिब… आपने छह महीने पहले मुझसे पांच सौ रुपये लिये थे वही दे
दीजिये… प्लीज
हें… क्या … अट्टू साहिब की जुबान मानो अकड़ गई।
हां साहब। शर्माजी बोले – मैं तो आपसे वे रुपये लेने ही आया था। पट्टू ने भी
मुझसे शर्त लगाई है, यदि आपने रुपये लौटा दिये तो वह मुझे सौ रुपये अतिरिक्त
देगा।
अट्टू साहब को इतनी देर बाद फिर से सर्दी-जुकाम, खांसी-सरदर्द ने घेर लिया। वे
अपने दवाइयों के जखीरे से टेबलेट निकाल कर सामने रखने लगे। शर्माजी से नजरें
मिलाने से पहले वे ब्लड प्रेशर की टेबलेट ले चुके थे।
(अरबी सिन्धी मे ये श्रंखला हिन्दू डेली अजमेर से २०१० में पब्लिश  हो चुकी है )

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