गुरु नानक जी के दस उपदेश सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे

lalit-garg
गुरु नानक जी ने अपनेअनुयायियों को दस उपदेश दिए जो कि सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे। गुरु नानक जी कीशिक्षा का मूल निचोड़ यही है कि परमात्मा एक, अनन्त, सर्वशक्तिमान औरसत्य है। वह सर्वत्र व्याप्त है। मूर्ति−पूजा आदि निरर्थक है। नाम−स्मरण सर्वोपरितत्त्व है और नाम गुरु के द्वारा ही प्राप्त होता है। गुरु नानक की वाणी भक्ति, ज्ञान और वैराग्यसे ओत−प्रोत है। उन्होंने अपने अनुयायियों को जीवन की दस शिक्षाएं दीं जो इसप्रकार हैं− ईश्वर एक है। ईश्वर सब जगह औरप्राणी मात्र में मौजूद है। ईश्वर की भक्ति करने वालोंको किसी का भय नहीं रहता। ईमानदारी से और मेहनत कर के उदरपूर्ति करनी चाहिए। बुरा कार्य करनेके बारे में न सोचें और न किसी को सताएं। सदैव प्रसन्न रहना चाहिए।ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा मांगनी चाहिए। मेहनत और ईमानदारी की कमाईमें से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए। .सभी स्त्री और पुरुष बराबरहैं। भोजन शरीर कोजिंदा रखने के लिए ज़रूरी है पर लोभ−लालच व संग्रह वृत्ति बुरी है।सिख ग्रंथों मेंउल्लेख मिलता है कि गुरु नानक नित्य बेई नदी में स्नान करने जाया करते थे। एक दिनवे स्नान करने के पश्चात वन में अन्तर्ध्यान हो गये। उस समय उन्हें परमात्मा कासाक्षात्कार हुआ। परमात्मा ने उन्हें अमृत पिलाया और कहा− मैं सदैव तुम्हारे साथहूं, जो तुम्हारेसम्पर्क में आयेंगे वे भी आनन्दित होंगे। जाओ दान दो, उपासना करो, स्वयं नाम लो औरदूसरों से भी नाम स्मरण कराओ। इस घटना के पश्चात वे अपने परिवार का भार अपनेश्वसुर को सौंपकर विचरण करने निकल पड़े और धर्म का प्रचार करने लगे। उन्हें देश केविभिन्न हिस्सों के साथ ही विदेशों की भी यात्राएं कीं और जन सेवा का उपदेश दिया।बाद में वे करतारपुर में बस गये और 1521 ई. से 1539 ई. तक वहीं रहे। नानक देवजी ने 25 सितंबर, 1539 को अपना शरीर त्याग दिया था | मृत्यु से पहले उन्होंने अपनेशिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव के नामसे जाने गये | नानक देव जी ने कहा “ मोन धारण करके नाम जपो, क्योंकि इसी से मानसिकआध्यात्मिक शक्ति मिलती है
सच्चाई तो यही है कि गुरु नानक देवजी एक महान दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि और देशभक्त थे | वे विश्वबंधुत्व में विश्वासकरते थे और उनमें सच्ची मानवता के सभी गुण मोजूद थे | उनके बचपन के समय में कईचमत्कारिक घटनाएं घटी जिससे जन साधारण उन्हें दिव्य व्यकित्व का स्वामी मानते थे | नानकदेव जी वास्तव में आलोलिक श्रेणी के संत महापुरुष थे | गुरु नानक ने बचपन से हीरूढ़िवादिता के विरुद्ध संघर्ष करना शुरू कर दिया था | वे धर्मप्रचारकों को उनकीखामियां बतलाने के लिए अनेक तीर्थ स्थानों पर पहुंचे और लोगों से धर्मांधता से दूररहने का आग्रह किया | गुरु नानक जंयती पूरे देश मेंकार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है जिसे प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है | गुरुनानक सिखों के प्रथम गुरु हैं |गुरु नानक देवजी का जन्म कार्तिकपूर्णिमा,संवत्‌ 1526 के दिन हुआ था | कुछ इतिहासकार एवं जानकार गुरुनानक की जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं | नानक जी का जन्म रावी नदी केकिनार स्थित तलवंडी नामक गांव में खत्री कुल में हुआ था | तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया था | गुरु नानक देव के पिता और माता का का नाम मेहता कालू और तृप्तादेवी था | गुरु नानक को बचपन से ही सांसारिक विषयों मैं कोई रुची नहीं थी औरवे उनसे उनकी उससे विरक्ति थी | उनका अधिकाशं समय आध्यात्मिकचिंतन और सत्संग में व्यतीत होता था| गुरु नानकदेव महान सामाजिक सुधारक थे उन्होनें सिख धर्म की स्थापनाकी थी | गुरु नानक जी का विवाह सन 1487 में माता सुलखनी सेहुआ. उनके दो पुत्र थे जिनका नाम श्रीचंद और लक्ष्मीचन्द था | नानक देव जी ने समाज में फैली कुरीतियों को खत्म करने के लिए अनेकयात्राएं की थी |
ऐसा कहा जाता है कि नानक देव जी को उनके पिता ने एक बार व्यापारकरने के लिए 20 रुपये दिए और कहा “ इन 20 रुपये से सच्चा सौदा करके आओ”| नानक देव जी सौदा करने निकले. रास्ते में उन्हें साधु-संतों कीमंडली मिली | नानकदेव जी साधु-संतों को 20 रुपये का भोजन करवा कर वापस लौटआए|पिताजी ने पूछा- क्या सौदा करके आए? उन्होंने कहा- ‘साधुओईश्वर की सीमायें औरकार्य क्षेत्र संपूर्ण मानव जाति की सोच से परे हैं। सत्य को जानना हर चीज से बड़ा हैऔर उससे भी बड़ा है सच्चाई के साथ आपकीमदद करता है। इसलिए हमें हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहना चाहिये। कर्म भूमि पर फल पाने के लिए कर्म सबको करना पड़ता है। ईश्वर तो सिर्फलक़ीरें देते हैं पर रंग उनमे हमको ही भरना पड़ेगा है।ईश्वर की हज़ारों आँखें हैं और फिर भी एक भी आँख नहीं। ईश्वर के हज़ारों रूप हैं औरफिर भी प्रभुजी निराकार हैं।आप जो भी बीज आज बोयेंगे, उसकाफल आपको देर सबेर जरूर मिलेगा। जब हमारा शरीर मैला हो जाता है तो हम पानी से उसेसाफ़ कर लेते हैं। उसी तरह जब हमारा मन मैला हो जाये तो उसे ईश्वर के जाप और प्रेमद्वारा ही स्वच्छ किया जा सकता है। याद रक्खे कि भगवान के दरबार में सभी कर्मों कालेखा-जोखा रहता है।बिना गुरु के कुछ भी काम अधूरा होता हैं। धन को जेब तक ही रखेंउसे हृदय में जगह न दें। जब धन को ह्रदय में जगह दी जाती है तो सुख शांति के स्थानपर लालच, भेदभाव और बुराइयों का जन्म होता है। धन केभंडार से परिपूर्ण प्रभुत्व वाले सम्राटों की तुलना में वो चींटी महान है जिसके मनमें ईश्वर का निवास है। यदि लोग अपने धन का प्रयोग सिर्फ अपने लिए और खजाना भरनेके लिए करते हैं तो वह शव की तरह है, लेकिनयदि वे इसे दूसरों के साथ इसे बांटने का निर्णय लेते हैं तो वह प्रभुजी पवित्रप्रसाद बन जाता है। जो व्यक्ति किसी का हक़ छीनता है उसे कही भी सम्मान नहीं मिलता।इसलिए कभी किसी का हक़ नहीं छीनना चाहियें। जिन्होंने प्रेम किया है वो ही लोगपरमात्मा को पा सकते है। नानक देव जी के अनुसार एकओंकार यानी ईश्वर एक है |
गुरु नानक जी ने अपनेअनुयायियों को दस उपदेश दिए जो कि सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे। गुरु नानक जी कीशिक्षा का मूल निचोड़ यही है कि परमात्मा एक, अनन्त, सर्वशक्तिमान औरसत्य है। वह सर्वत्र व्याप्त है। मूर्ति−पूजा आदि निरर्थक है। नाम−स्मरण सर्वोपरितत्त्व है और नाम गुरु के द्वारा ही प्राप्त होता है। गुरु नानक की वाणी भक्ति, ज्ञान और वैराग्यसे ओत−प्रोत है। उन्होंने अपने अनुयायियों को जीवन की दस शिक्षाएं दीं जो इसप्रकार हैं− ईश्वर एक है। ईश्वर सब जगह औरप्राणी मात्र में मौजूद है। ईश्वर की भक्ति करने वालोंको किसी का भय नहीं रहता। ईमानदारी से और मेहनत कर के उदरपूर्ति करनी चाहिए। बुरा कार्य करनेके बारे में न सोचें और न किसी को सताएं। सदैव प्रसन्न रहना चाहिए।ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा मांगनी चाहिए। मेहनत और ईमानदारी की कमाईमें से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए। .सभी स्त्री और पुरुष बराबरहैं। भोजन शरीर कोजिंदा रखने के लिए ज़रूरी है पर लोभ−लालच व संग्रह वृत्ति बुरी है।सिख ग्रंथों मेंउल्लेख मिलता है कि गुरु नानक नित्य बेई नदी में स्नान करने जाया करते थे। एक दिनवे स्नान करने के पश्चात वन में अन्तर्ध्यान हो गये। उस समय उन्हें परमात्मा कासाक्षात्कार हुआ। परमात्मा ने उन्हें अमृत पिलाया और कहा− मैं सदैव तुम्हारे साथहूं, जो तुम्हारेसम्पर्क में आयेंगे वे भी आनन्दित होंगे। जाओ दान दो, उपासना करो, स्वयं नाम लो औरदूसरों से भी नाम स्मरण कराओ। इस घटना के पश्चात वे अपने परिवार का भार अपनेश्वसुर को सौंपकर विचरण करने निकल पड़े और धर्म का प्रचार करने लगे। उन्हें देश केविभिन्न हिस्सों के साथ ही विदेशों की भी यात्राएं कीं और जन सेवा का उपदेश दिया।बाद में वे करतारपुर में बस गये और 1521 ई. से 1539 ई. तक वहीं रहे। नानक देवजी ने 25 सितंबर, 1539 को अपना शरीर त्याग दिया था | मृत्यु से पहले उन्होंने अपनेशिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव के नामसे जाने गये | नानक देव जी ने कहा “ मोन धारण करके नाम जपो, क्योंकि इसी से मानसिकआध्यात्मिक शक्ति मिलती है और आत्मिक तेज बढ़ता है |
इन्सान को ईमानदारी और मेहनतकरनी होगी क्योंकि इससे मिली आमदनी ही सही है | जो मिले उसे साझा करों नानक जी इसी सीख के मुताबिक सिख हमेशा अपनी आमदनी का दसवां हिस्सादान करते हैं |गुरु नानक अपने जीवन के अंतिम चरणमें करतारपुर में बस गए | 9 नवम्बर 2019 को करतारपुर कॉरिडोर का शुभारंभ किया गया था उस समय 500 से अधिकश्रद्धालुओं ने नानक शिब के गुरुद्वारे में अपना माथा टेका | करतारपुर कोरिडोर के बन जाने से भारत पाकिस्तान के रिश्ते मधुरहोने की उम्मीद जगी थी | गुरु नानकजयंती पूरे देश में कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है | गुरु नानक देव की बतायी गईशिक्षाएं और बाते हम सभी का सदेव मार्गदर्शन करती है और भविष्य में भी मानव मात्रका मार्गदर्शन करती रहेगी | उनकी जयंती पर उनके श्री चरणों हम सभी का कोटि कोटि नमन |

डा. जे. के. गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर

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