पूर्णिका

तेरे मन की वीणा पर क्या, मेरे मन के तार नही।
सच सच कह दो प्रिय मुझे,क्या तुमको हमसे प्यार नही।।

पलके बिछाए बैठे हैं, उम्मीद है कि तुम आओगे।
किस कारण रुके हो सनम,जो तुम आए इस बार नही।।

सुनी सी शाम है तेरे बिन,चुप चुप पवन दिवानी है।
मन बावरा यूं कह रहा, होता अब इंतजार नही।।

बहुत संजोए थे सुंदर सपने, संग हमने दिलवर।
अब मुश्किल लगता है, जब होते तेरे दीदार नहीं।।

आजकल मन मनोहर, रहता है ये बैचेन बड़ा।
तुझ बिन अच्छा नहीं लगता, कोई वार त्योहार नही।।
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गीतकार मनोहर सिंह चौहान मधुकर
जावरा जिला रतलाम मध्य प्रदेश

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