शिक्षा के बिना महिला सशक्तिकरण एवं राष्ट्र का विकास असंभव

-अशोक कुमार लोढ़ा, नसीराबाद- महिलाओ के जीवन की सभी समस्याओं की जड़ अशिक्षा है, इस सत्य से परहेज नहीं किया जा सकता है और अब समाज ही नहीं, स्वयं महिलाये भी,यहाँ तक की आठवी कक्षा में पढने वाली बालिका भी इस बात से सहमत है। राहत की बात यह है कि देर से ही सही, पर बालिका-शिक्षा का महत्व केन्द्र और राज्य दोनों सरकारों की समझ में आ गया है। और इस दिशा में राज्य और केंद्र सरकारों के द्वारा महत्वपूर्ण क़दम उठाये जा रहे हैं। यह एक देश मे शिक्षा के प्रति शुभ संकेत है। साक्षरता वृध्दि दर भले ही राष्ट्रीय वृध्दि दर से दोगुनी हो, लेकिन प्रदेश में अब भी महिलाओं की आधी आबादी निरक्षर है।
जहॉ तक साक्षरता का प्रश्न है, उसमें राजस्थान में 1991–2001 के दशक में काफी प्रगति हुई है। साक्षरता की दर वर्ष 1991 में 38.55 प्रतिशत थी जो 2001 में 61.03 प्रतिशत हो गई। महिला साक्षरता की दर इस दौरान 1991 में 20.44 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में दुगनी से भी अधिक अर्थात 44.34 प्रतिशत तक पहुच गई। ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह प्रगति आश्चर्यजनक ही मानी जा सकती है। जहॉं 1991 में ग्रामीण क्षेत्रों में महिला साक्षरता दर 9.2 प्रतिशत थी वह 2001 में 37.74 प्रतिशत पर आ गई। परंतु केवल साक्षरता की दर बढ़ने से ही लड़कियों में शिक्षा का प्रभुत्व नहीं माना जा सकता जब तक कि औपचारिक शिक्षा के माध्यम से अधिक से अधिक लड़किया शिक्षा प्राप्त नहीं करती। यह देखने में आया है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियॉ अधिक संख्या में बीच में स्कूल छोड़ देती है। लड़कियों में ड्रॉप आउट रेट कम किए जाने की आवश्यकता है।
राजस्थान में वर्तमान राज्य सरकार ने बालिका शिक्षा के क्षेत्र लिए कई महत्वपूर्ण योजनाओं की घोषणा की है। उच्च माध्यमिक स्तर की पढ़ाई के लिए किसी भी छात्र-छात्रा को 10 किलोमीटर तक की परिधि में स्कूल सुविधा उपलब्ध कराने की दृष्टि से आवश्कतानुसार स्कूलों के क्रमोनयन और नए स्कूल खोलने की योजना की घोषणा की है। अपनी भावी योजनाओं की घोषणाओं में वर्तमान राज्य सरकार ने बालिका शिक्षा को अहम स्थान दिया है। बालिकाओं को मेडिकल एवं इंजीनियरिंग शिक्षा का अध्ययन करने का अवसर प्रदान कराने के लिए 50 सरकारी हाई स्कूलों में विज्ञान संकाय,आठवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सरकारी स्कूलों में 9वीं कक्षा में प्रवेश लेने पर सभी बालिका विद्यार्थी को साइकिल, अल्पसंख्यक वर्ग की बालिका विद्यार्थी को 500 रुपए प्रतिमाह की स्कॉलरशिप, आईआईटी जैसी प्रतिष्ठित उच्च और तकनीकी शिक्षण संस्थाओं में अध्ययनरत बालिका विद्यार्थी को 1000 रुपए महीना स्कॉलरशिप दी जाएगी। यह स्कॉलरशिप उन्हीं को मिलेगी जिनके संरक्षक की सालाना आय 2.5 लाख रुपए से कम है।
भारत में बालिका शिक्षा का प्रतिशत बढ़ाना एक बड़ी चुनौती है। गरीबी रेखा से नीचे व निम्न मध्यवर्गीय परिवारों की लड़कियों की पढ़ाई प्राथमिक स्तर तक आते-आते अक्सर छुड़ा दी जाती है ग्रामीण इलाको में तो स्थिति और भी ख़राब हे अपवादस्वरूप ही कुछ लड़कियां माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक और उसके बाद महाविद्यालय तक जा पाती हैं। बीमारू राज्यों की श्रेणी में आने वाले राज्यों में स्थिति बेहद खराब है। इसलिए केंद्र व राज्य सरकारें साक्षरता मिशन प्राधिकरणों के माध्यम से लड़कियों व महिलाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान दे रही हैं। कई राज्यों में मेधावी छात्राओं को साइकिल, छात्रवृत्ति या अन्य तरह के प्रोत्साहन देकर पढ़ाई जारी रखने की योजनाएं लागू की गई हैं। तमाम अवरोधों के बावजूद यदि लड़कियां पढ़ने जाती हैं तो यह उनकी हिम्मत और परिवार के सहयोग से संभव है। उस पर भी राजस्थान जैसा राज्य, जहां आमतौर पर लड़कियों को दोयम नहीं बल्कि उस से काफी पीछे के दर्जे पर रखा जाता है, वहां यदि लड़कियां पढ़ने जाती हैं तो इसकी प्रशंसा होनी चाहिए, उन्हें आगे बढ़ने में हर तरह से सहयोग करना चाहिए।
राजस्थान में महिलाए कई सामाजिक और आर्थिक विषमताओं से ग्रसित है। बड़ी संख्या में बाल विवाह होने के कारण कम आयु की लड़कियों को विकास और शिक्षा के पूरे अवसर नहीं मिल पाते (रा.पा.स्वा.स.–3) के अनुसार 20–24 वर्ष आयुवर्ग की लड़कियों में 57.01 प्रतिशत का विवाह 18 वर्ष की आयु पूर्ण होने से पूर्व ही कर दिया जाता है इससे किशोरावस्था में गर्भधारण के कारण लड़कियों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसीलिए महिलाओं में एनिमिया के लक्षण अधिक पाये जाते हैं। महिलाए अधिकांशत: अपने जीवन निर्वाह के लिए पुरूषों पर आश्रित रहती है। देश में शिक्षा का स्तर ऊपर उठाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। छह से 14 साल के बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा का कानून इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन लक्ष्य, खासकर बालिकाओं के संदर्भ में अब भी कोसों दूर है। गैर सरकारी संगठन ‘चिल्ड्रेन राइट्स एंड यू’ (क्राई) ने एक अध्ययन के आधार पर उन कठिनाइयों का जिक्र किया है, जिनका सामना लड़कियां आज भी स्कूल जाने में करती हैं और जिसकी वजह से वे हाई स्कूल पहुंचते-पहुंचते पढ़ाई छोड़ देती हैं। लड़कों की तुलना में लड़कियों का जल्दी विवाह, घर से स्कूल की दूरी व उचित परिवहन का अभाव, घरेलू कामकाज में हाथ बंटाना, अलग शौचालय का अभाव, शिक्षिका का न होना, सुरक्षा का अभाव, छोटे-भाई-बहनों की देखभाल कुछ ऐसे कारण हैं, जो उनकी पढ़ाई जारी रखने में बाधक बनते हैं।
बालिकाओं की शिक्षा पर इन सभी स्तरों पर दुरुस्त करने की जरूरत है। पिछले दो दशक में हालांकि राजस्थान में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में अब भी एक बड़ा अंतर है। सर्वेक्षण नतीजों से यह भी जाहिर होता है कि लोगों को बालिका शिक्षा के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलने की जरूरत है। योजना आयोग के अनुसार महिला-साक्षरता के निधर्रित लक्ष्य की प्राप्ति कठिन है। महिला साक्षरता अभियानों, ज़िला साक्षरता समितियों, राज्य संसाधान केन्द्र व शिक्षा-विशेषज्ञों का मानना है कि महिला-शिक्षा के लिए एक रणनीति बनाकर कार्य करना होगा तभी ठोस सकारात्मक परिणाम आएंगे।
21 वी सदी का यह दूसरा दशक इस मायने में महत्वपूर्ण है कि महिला-जीवन के विभिन्न पहलुओं पर सरकार के साथ-साथ न्यायपालिका का रवैया भी उदार,सहानुभूतिपूर्ण और सकारात्मक है। स्त्री के स्वास्थ्य, शिक्षा, उत्पीड़न से मुक्ति, आर्थिक स्वावलम्बन आदि बिन्दुओं पर एक साथ इतनी गम्भीरतापूर्वक कभी नहीं सोचा गया, न ही आवश्यक उपाय किये गये। परन्तु आज स्थिति बदली हुई है। शायद राजनेताओं को अहसास हो चला है कि देश की सर्वांगीण् उन्नति के लिए आधी आबादी (महिला) का उत्थान आवश्यक है और जब बालिका शिक्षित होगी तो अपने ससुराल में अच्छे वातावरण व संस्कार से शिक्षा की अलख जगायेगी। इसलिए सरकार शिक्षा के महत्व पर जोर देते हुए बालिका शिक्षा को ओर प्रभावी बनाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है।
सरकार और कई सामाजिक संस्थाए बालिका शिक्षा को बढ़ाने का हर संभव प्रयास कर रही है। शैक्षणिक दृष्टिकोण से पिछड़े प्रखण्डों में बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करने एवं अतिरिक्त समर्थन देने हेतु भारत सरकार एवं राज्य सरकार के संयुक्त प्रयास से कस्तुरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना प्रारंभ की गई है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक बच्चे लाभान्वित होते हैं। लेकिन आज भी इन ग्रामीण स्कूलों में पोपाबाई का राज चल रहा है। सरपंच पति की तर्ज पर इन स्कूल का संचालन प्रधानाध्यापिका पति कर रहे है।ऐसे स्कूल में समस्त कार्य जैसे खरीददारी,स्कूल मरम्मत,अभिभावक संघ की बैठक और यहाँ तक की अन्य शिक्षिका को अवकाश की जरुरत पड़ने पर इसी प्रधानाध्यापिका पति से गुहार करनी पड़ती है। ऐसे में इन स्कूलों में भ्रष्टाचार से इंकार नहीं किया जा सकता है। कई स्कूलों में शिक्षिका कई-कई दिनों तक स्कूल नहीं जाती है। और स्कूल प्रशासन/अधिकारियो की मिलीभगत से स्कूल में उपस्थिति दर्ज कर दी जाती है। सरकार और शिक्षा विभाग के आला अधिकारियो को इस मामले में विशेष निगरानी की जरुरत है,एवं शिक्षिको की उपस्थिति बायोमेटिक प्रणाली सिस्टम से की जानी चहिये।
पाकिस्तान में तालिबानियों ने बालिका शिक्षा की वकालत करने के जुर्म में 14 वर्षीय कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई को गोली मार दी थी। मलाला की सेहत सुधर रही है लेकिन उपमहाद्वीप में महिलाओं पर अत्याचार में कोई कमी नहीं आई है मगर वास्तव में दुखद बात यह है कि मां या सास के रूप में महिलाएं खुद ही यह अपराध करती हैं। दहेज हत्या या इज्जत के लिए की जाने वाली हत्याओं के पीछे महिलाएं ही होती हैं। कुछ नृशंस मामलों में वे मामूली विरोध करती हैं लेकिन अगले ही दिन इसे भुला देती हैं फिर अपने पुराने रंग में आ जाती हैं। ऐसा लग रहा था कि मलाला पर हुए तालिबानी हमले से पाकिस्तान एक राष्ट्र के रूप में वजीरिस्तान और स्वात में तालिबानी हमलों को परास्त करने के लिए अपने अभियान को तेज करेगा।लकिन ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा।
इस उपमहाद्वीप का सबसे विकसित देश भारत है। महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ संभवत: सबसे तेज आवाज भारत में उठती है। दुर्भाग्यवश सरकार दुष्कर्म को बाकी अपराधों की तरह एक और अपराध मानती है। हकीकत में यह महिलाओं की सामूहिक हत्या है। सजा सिर्फ इस अपराध को करने वालों को ही नहीं, बल्कि आंख मूंद कर इसे देखने वालों को भी मिलनी चाहिए। वे उतने ही दोषी हैं जितने दोषी अपनी पसंद का कपड़ा पहनने या पसंद की शादी करने वाली लड़कियों को सजा देने वाले हरियाणा के खाप पंचायत के सदस्य हैं। महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार का सख्त प्रतिरोध करने के लिए इस उपमहाद्वीप के तीनो देशो भारत,पाकिस्तान,बांग्ला-देश में एक आंदोलन की जरूरत है। समाज में महिलाओं को अधिकारपूर्ण जगह दिलाने के साथ-साथ उनके अंदर यह भाव जगाने की जरूरत है कि वे राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक किसी भी क्षेत्र में किसी से पीछे नहीं हैं। अगर समाज भेदभाव के खिलाफ कुछ नहीं करता और सदियों से वंचित महिलाओं को उनका अधिकार नहीं देता तो देश के विकास का कोई मतलब नहीं है।”

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