बिजली के बढ़े हुए बिलों के खिलाफ अरविन्द केजरीवाल के अनिश्चितकालीन उपवास के दौरान उनकी हालत बिगड़ रही है. 23 मार्च को उन्होंने अपना उपवास चालू किया था, तबसे उनका वजन कम हो गया है. ना तो सरकार और ना ही देश की बड़ी पार्टियों (काँग्रेस या भाजपा) ने अरविन्द केजरीवाल या बिजली के बिलों के सम्बन्ध में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. केजरीवाल सोचते हैं कि भारत में एक
अलग तरह की राजनीति उभर रही है और मतदाता जाग रहे हैं. अगला चुनाव अब चुनाव नहीं होगा, बल्कि क्रांति का आगाज होगा.
हजारों वर्ष पूर्व महर्षि वेदव्यास ने महाभारत ग्रन्थ लिखा था और इसी ग्रन्थ में सत्ता और राजनीति के कटु सत्यं का वर्णन है. सत्ता के साथ सत्य का समन्वय नहीं होता है. अनेक क्रांतिकारी समाज सुधारकों ने भी समाज और राजनीति को हरबार झकझोर कर जगाने का प्रयास किया. पर क्या समाज सुधरा या राजनीति सुधरी? आज यह सत्य कितना कटु बनकर प्रत्यक्ष हो गया है. मेरा मन उद्द्वेलित होता है कि क्यों सत्ता के साथ सत्य का समन्वय करना संभव नहीं हो पाता? महाभारत में सत्य और धर्म को प्रमुख मानकर महाभारत का समर संघर्ष हुया. पर परिणाम क्या रहा? गाँधी जी ने भी सत्ता में सत्य का अभिनव प्रयोग किया था, पर क्या वे सफल हो पाये? क्यों बार-बार महाभारत इस देश में दोहराया जाता है? क्यों सत्ता में बैठे लोग अरविन्द केजरीवाल के सत्याग्रह चिंतित नहीं हैं? क्यों सरकार और एक हद तक मीडिया भी इतनी
असम्वेदनशील है?
-केशव राम सिंघल