पहली बार स्कूल जाने मे डर लगता था…
आज अकेले ही दुनिया घूम लेते हे ।।
पहले 1st नंबर लानेके लिए पढ़ते थे, आज कमाने
के लिए पढ़ते हें !!
गरीब दूर तक चलता हे… खाना खाने के लिए…
अमीर दूर तक चलता हे … खाना पचाने के लिए
…
कीसी के पास खाने के लिये एक वक्त
की रोटी नहीं हे …..
कीसी के पास रोटी खाने के लिए वक़्त ही नहीं हे
…
कोई लाचार हे इस लिए बीमार हे, कोई बीमार हे
इस लिये लाचार हे
कोई अपनों के लिए रोटी छोड देता हे, कोई
रोटी के लिए अपनों को छोड़ देता हे
ये दुनीया भी कितनी निराली हे .. कभी वक़्त
मीले तो सोचना…
कभी छोटी सी चोट लगनेपे रोते थे, आज दिल टूट
जाने पर भी संभल जाते हें!
पहेले हम दोस्तों के सहारे रहते थे, आज
दोस्तों की यादो मे रहते है!
पहले लड़ना मारना रोज़ का काम था, आज एक
बार लड़ते हें तो रिश्ते खो जाते हे!
सच में जिन्दगीने बहुत कुछ सिखादिया, जाने कब
हम को इतना बड़ा बना दिया
-अमित सारस्वत
कवि ने सरल शब्दों में जीवन की सच्चाईयों से भरी तल्ख बात कह दी है. रचना के लिए बधाई.