नारको तालिबान का खतरा भारत पर

-संजीव पांडेय- 2013 में पंजाब सीमा पर गंभीर संकेत मिले थे। ये गंभीर संकेत नारको तालिबान का है। एकाएक सीमा पार से हेरोईन का आवक बढ़ा है। बीते छ महीनें में ही 500 किलो से ज्यादा हेरोईन पंजाब की सीमा में पकडा गया है। ये ड्रग अफगानिस्तान से वाया पाकिस्तान भारत में पहुंचा था। पंजाब पुलिसका काउंटर इंटेलिजेंस विंग, सीमा सुरक्षा बल और अन्य एजेंसियां ड्रग के बढ़ते आवक से परेशान है। इन्होंने इसके कारणों को टटोला। कारणों की जानकारी मिलने के बाद सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो गई है। क्योंकि मामला अफगानिस्तान से नाटो सैनिकों की वापसी से जुड़ा है। भारतीय खुफिया एजेंसिया नारको टेरोरिज्म के नए खतरे से सतर्क हो गई है। ये परंपरागत आतंकवाद से अलग है। क्योंकि इससे न सिर्फ किसी देश की अर्थव्यवस्था पर संकट आएगा,बल्कि अर्थव्यवस्था की रीढ़ युवा पीढ़ी को भारी नुकसान होगा।
संजीव पांडेय
संजीव पांडेय

भारत की चिंता कश्मीर को लेकर है। क्योंकि 2014 में अफगानिस्तान से नाटो सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान से खाली हुए आतंकी कश्मीर की तरफ रूख मोड़ेंगे। कुछ इसी तरह के संकेत है। पर दूसरा बड़ा खतरा नारको तालिबान का है। विशेषज्ञ और खुफिया एजेंसियां संकेत दे रही है कि नाटो सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में अफीम की खेती बढेगी। हेरोईन का आवक पूरे विश्व बाजार में बढ़ेगा। क्योंकि अफगान तालिबान की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार ही अफीम की खेती है। अफीम की खेती से होने वाली आय से तालिबान प्रशासन,कमांडरों का खर्च चलता है। इसकी आय का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी को भी जाता है। क्योंकि पाकिस्तान तस्करों का एक बड़ा ट्रांजिट रूट है। वैसे इसी साल नाटो सेना की वापसी के संकेत के साथ अफगानिस्तान के हेलमेंड और कंधार राज्य में अफीम की खेती में भारी बढ़ोतरी हो गई है। विगत सालों के मुकाबले इस साल चार सौ प्रतिशत ज्यादा अफीम उत्पादन की उम्मीद अफगानिस्तान में है।

एक अनुमान के अनुसार अफगानिस्तान में इस साल 8000 हजार टन से ज्यादा अफीम का उत्पादन हो सकता है। इससे बनाए गए हेरोईन को दो रास्तों से ही दुनिया के कई मुल्कों में भेजा जाता है। इसमें एक रास्ता पाकिस्तान-भारत  होकर है। यहां से यूरोप, अमेरिका ही नहीं बल्कि दक्षिण एशिया के कई मुल्कों में हेरोईन भेजा जाता है। दूसरा रूट आबूधाबी, दुबई होकर है। खुफिया एजेंसियां तालिबान के नारको टेरोरिज्म के व्यवस्थित कारोबार से काफी आतंकित है। उसका कारण साफ है। बीते 12 सालों में नाटो सैनिकों की तमाम कोशिशों के बावजूद अफीम की खेती अफगानिस्तान में बेधड़क होती रही। अफगानिस्तान का हेलमंड और कंधार इसका मुख्य केंद्र बना रहा। ब्रिटेन अफीम की खेती से ज्यादा तंग हुआ। इसलिए नाटो सेना के ऑपरेशन के तहत ब्रिटेन ने हेलमंड राज्य को अपने अधीन रखा ताकि अफीम की खेती रोकी जा सके। लेकिन कुछ ज्यादा सफलता नहीं मिल सकी।
नाटो सैनिकों के कार्रवाई के बावजूद तालिबान नशे के अंतराष्ट्रीय बाजार को नियंत्रित करता रहा। अंतराष्ट्रीय बाजार में अफीम और हेरोईन के रेट क्या होंगे ये आजतक तालिबान ही तय करता है। अतंराष्ट्रीय बाजार में अफीम के रेट क्या होंगे, इससे तय करने के तमाम तरीके तालिबान के पास है। मसलन जैसे ही अंतराष्ट्रीय बाजार में अफीम की कीमत होने लगती है, तालिबान अफीम के उत्पादन और आपूर्ति पर रोक लगा देता है। 2001 में एकाएक अफगानिस्तान में अफीम के उत्पादन में भारी कमी हो गई। पूरे देश में अफीम का उत्पादन 186 टन रह गया। इसका कारण तालिबान का अफीम की खेती पर प्रतिबंध था। लेकिन इस प्रतिबंध के पीछे कीमतों में उछाल लाना उद्देश्य था। अंतराष्ट्रीय बाजार में अफीम की ज्यादा आपूर्ति के कारण कीमतें काफी कम हो गई थी। 1 किलो अफीम की कीमत मात्र अंतराष्ट्रीय बाजार में मात्र 30 डालर रह गई थी। तालिबान ने कीमतों में उछाल लाने के लिए खेती प्रतिबंधित कर दिया। परिणाम यह हुआ कि अंतराष्ट्रीय बाजार में अफीम की कीमत कुछ दिनों में ही 650 डालर प्रति किलो हो गया। दिलचस्प बात यह थी कि अफगानिस्तान में नाटो सेना के अटैक के बाद भी तालिबान ने अगले साल 2002 में अफीम का उत्पादन 3400 टन तक पहुंचा दिया।
अफगानिस्तान में अफीम की खेती किसानों और तालिबान दोनों को लाभ देता है। किसानों को अफीम की खेती पर प्रति हेक्टेयर 20,000 डालर तक की आय होती है। जबकि गेहूं की खेती पर प्रति हेक्टेयर आय मुश्किल से 1000 डालर तक पहुंच पाती है। अफीम की खेती के बाद इससे बनने वाले हेरोईन से होने वाले आय का बड़ा हिस्सा तालिबान के पास पहुंचता है। पाकिस्तानी सीमा में घुसते ही इससे होनेवाले आय का एक हिस्सा पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को भी पहुंचता है। गौरतलब है कि 1980 के आसपास पाकिस्तान में अफीम की खेती आईएसआई के नियंत्रण में होती थी। 1986 में तो पाकिस्तान अफीम उत्पादन में विश्व में नंबर-1 बन गया था। इस साल 800 टन अफीम का उत्पादन पाकिस्तान में हुआ था। सीमांत इलाके में तैनात सेना और आईएसआई के ज्यादातर अधिकारी हेरोईन के तस्करी में लिप्त थे। 1983 में क्वेटा में तैनात आईएसआई का पूरा विंग ही हेरोईन तस्करी में लिप्त पाया गया। आईएसआई ड्रग तस्करी से होने वाली आमदनी का बड़ा हिस्सा अपने गोपनीय ऑपरेशनों में खर्च करता रहा है। ये गोपनीय ऑपरेशन आईएसआई भारत में भी करता रहा है। लेकिन 1999 के आसपास अमेरिकी दबाव के कारण पाकिस्तान में अफीम की खेती बंद हो गई। 1999 में पाकिस्तान में अफीम का उत्पादन मात्र 2 टन रह गया।
नारको तालिबान से भारत को काफी ज्यादा खतरे है। क्योंकि ड्रग रूट से होने वाले आय का एक बड़ा हिस्सा आईएसआई को जाता है। इस पैसे का इस्तेमाल आईएसआई भारत विरोधी गतिविधियों में करती है। आईएसआई की सहमति के बिना तालिबान का हेरोईन पाकिस्तानी सीमा से भारतीय सीमा में आ नहीं सकता है। फिर इससे होने वाली आमदनी भी भारत विरोधी गतिविधियों में उपयोग में लाया जाता है। जबकि पंजाब में सीधे तौर पर हेरोईन की खपत के कारण यहां का युवा वर्ग काफी प्रभावित हुआ है। पंजाब ही क्या देश के कई हिस्सों में यहां से हेरोईन की आपूर्ति हो रही है। हेरोईन का एक बड़ा हिस्सा यहां से साउथ एशिया और यूरोप की तरफ जाता है।
हालांकि इस कारोबार को संस्थागत रूप दिया जा चुका है। इसमें राजनीतिज्ञ और पुलिस भी शामिल है। इनके ड्रग स्मगलरों के साथ सांठगांठ है।ड्रग का कारोबार तकनीकी तौर पर भी व्यवस्थित है। सीमा पर बाड़ लगे है। फिर भी हेरोईन की खेप निर्बाध रूप से आ रही है। इसके लिए तमाम तकनीकों का उपयोग स्मगलर कर रहे है। अफगानी तस्कर हेरोईन को पाकिस्तानी पंजाब के तस्करों को सौंप देते है।  पाकिस्तानी ड्रग तस्करों के लिंक भारतीय पंजाब के ड्रग तस्करों से है। भारतीय सीमा में ड्रग तस्करों के गतिविधयों को कमजोर करने के लिए भारतीय मोबाइल कंपनियों के नेटवर्क को जाम कर दिया गया है। इसका तोड़ तस्करों ने निकाल लिया है। अब भारतीय तस्कर बाड़ के पास पाकिस्तानी सिम का इस्तेमाल करते है। क्योंकि पाकिस्तान ने अपने मोबाइल नेटवर्क को सीमा पर जाम नहीं किया है। पाकिस्तानी तस्कर लोहे की बाड़ की दूसरी तरफ पड़ने वाली भारतीय जमीन के अंदर हेरोईन को छिपा देते है। दिन में खेती के लिए जब भारतीय किसान बाड़ की दूसरी तरफ जाते है, उनके ट्रैक्टरों में ये हेरोईन डाल दिया जाता है।
2014 के बाद हालात और बदतर होंगे। तालिबान अमेरिकी सैनिकों के लौटने के बाद हेलमंड और कंधार समेत आधे से ज्यादा अफगानिस्तान पर हावी हो जाएगा।  इसके बाद अफीम की खेती में भारी बढ़ोतरी की उम्मीद है। इसका सीधा असर भारत पर पड़ेगा। भारत में हेरोईन की आवक बढ़ेगी। यह एक अलग तरह का आतंकवाद है जिसे खुफिया एजेंसियों के अधिकारी नारको तालिबान की संज्ञा दे रहे है। इससे देश को भारी खतरा होगा। क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था पर चोट पहुंचेगी। देश का युवा वर्ग बर्बाद होगा। इससे निपटना ही मुख्य चुनौती आने वाले समय में है।
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