कहां है मसूद भाई, बब्बरभाई का ढाबा?

शिव शंकर गोयल
शिव शंकर गोयल

उस गरीब आदमी का नाम भोलिया था. उसे भूख लग रही थी. किसी ने उसे कहीं पढ़ कर बता दिया कि ‘अपने राजबब्बरजी का कहना है कि मुंबई में सिर्फ 12 रु. में भरपेट खाना मिल जाता है, इसलिए इस बहकावे में आकर वह मुंबई आ गया. जैसे फिल्म ‘जागते रहो में राजकपूर भूखा-प्यासा बम्बई में घूमता है. उसे न कहीं खाना मिलता है, न पानी वैसे ही भोलिया ने नवी मुंबई से लेकर जूनी मुंबई एटले कि अक्खी मुंबई छानमारी परन्तु उसे न बारह रु. में कहीं खाना मिला और न राजबब्बर जी ही मिले। वहीं भोलिया को पता पड़ा कि अब सहारनपुर के भाईजान रशीद मसूद साहब ने फरमाया है कि कहीं और जाने की क्या जरूरत है? खाना तो दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके में पांच रु. में ही मिल रहा है. बाद में एक टीवी चैनल पर उन्होंने इसका खुलासा भी किया कि दो रू. की नान और तीन रू. का शोरबा मिलता है, कहां मिलता है यह रहस्य, रहस्य ही रहने दिया.
यह सुन कर भोलिया हुलसा हुलसा दिल्ली पहुंचा. क्या जामा मस्जिद, क्या फतेहपुरी मस्जिद, सभी जगह खोज ली, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. वही ंकिसी ने बताया कि दिल्ली के ही एक कांग्रेसी नेता ने खोज करके बताया है कि दिल्ली में तो खाना दो रु. में ही मिल रहा है, बस खाने वाला चाहिये. यह सुनकर उस गरीब को लगा कि कोई तो है जिसका ‘हाथ गरीब के साथÓ है लेकिन जिस किसी ढ़ाबे पर जाकर उसने कहा कि अखबार में छपा है कि दो रु. में खाना मिल रहा है तो ढ़ाबे वाले कहा कि जिस अखबार में छपा है, उसी के पास जाओ. नतीजा यह हुआ कि वह भूखा ही रहा. शायद उसी के लिए दुष्यंत कुमार ने अपनी गजल में लिखा है, ‘भूख है तो सब्र कहां है रोटी नहीं तो क्या हुआ?
उसी समय उसे किसी ने बताया कि स्वयं इन नेताओं के दल ने ही अब खाने की रेट्स एवं योजना आयोग की गरीबी की व्याख्या से भी अपने को अलग कर लिया है. इस पर भोलिया ने सोचा कहीं चुनाव में जनता ने इन्हें भी अपने से अलग कर दिया तो?
भोजन के रेट्स के इस बवाल को लेकर बाबा कानपुरी भी सलाह देते हैं- ‘भोजन को ले उठ खड़े हुए, कुछ गंभीर सवाल, कई दिनों से हो रहा, चारों ंओर बवाल. चारों ओर बवाल छिपा है जिसमें सारा, समाधान, वह तो है गाय-भैैंस का चारा. बाबा कवि बर्राय न कोई और प्रयोजन, जो करते लालू, मिल करिये सारे भोजन।
इसी बीच श्रीनगर के डा. फारुख अब्दुल्ला साहब ने फिर गोला दागा कि पेट भरने लायक खाना तो 1 रु. में ही मिल जाता है। यह सुनते ही भोलिया भागा भागा श्रीनगर गया. वहां उनके साहबजादे ने बताया कि अब्बू तो दिल्ली में ही हैं और खाने-पीने के बारे में वही बता सकते हैं. यह सुनकर भोलिया उल्टे पांव दिल्ली लौट आया. वह सोचने लगा ‘भोलिया अब की करणा?Ó वह गरीब दिल्ली की सड़कों पर खाक छान रहा था. उधर उसे भूख भी जोरों की लग रही थी. तभी किसी भले आदमी ने उसे बताया कि दिल्ली के किसी भी गुरुद्वारें में चले जाओ वहां भरपेट लंगर मुफ्त मिलता है। दिल्ली के चांदनी चौंक पर इकट्ठी हुई भीड़ में से ही कुछ लोगों ने उसे बताया कि इसके अलावा भी खाने की कई चीजें मुफ्त उपलब्ध हैं, मसलन हवा, धूप इत्यादि. इतना ही नहीं लोगों ने यह भी बताया कि नौकरी न मिलने से देश के बेकार नौजवान घर-बाहर झिड़कियां खा रहे हैं, मजदूर मालिकों की फटकार खा रहे हैं. और तो और कई लोग तो घरों में बीबी से डांट भी खा रहे हैं और यह सब खाने की चीजें मुफ्त ही हैं।
इतने में किसी ने बताया कि भूख और गरीबी से लोगों को ध्यान हटाने के लिए सरकार ने तेलंगाना का मसला छेड़ दिया है, ताकि लोग अपने अपने इलाके को अलग राज्य बनाने के आंदोलनों में लग जाए. भूख और गरीबी का क्या उस पर तो बातचीत बाद में भी हो लेगी।
-ई. शिव शंकर गोयल

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