हठों हठों में हठ मच्छर हठ!

शिव शंकर गोयल
शिव शंकर गोयल

खुले बाजारीकरण के इस युग में जहां रोजाना कोई न कोई दिवस मनाया जा रहा है, इसी क्रम में गत 20 अगस्त को आपने भी विश्व मच्छर दिवस मनाया होगा क्योंकि 20 अगस्त 1897 को ब्रिटिश डाक्टर सर रॉनाल्ड रोष ने यह खोज की थी कि मैलेरिया फैलाने में मादा मच्छर की अहम भूमिका होती है। मजे की बात देखिए कि इस दिन खोज तो की सर रॉनाल्ड रोष ने और दिवस मनाया जाता है मच्छरों के नाम से। यह दर्षाता है कि हमारे जनजीवन में मच्छरों की कितनी अहमियत है। काम करे कोई और नाम हो किसी और का। यही बात आजकल आजादी के आंदोलन के बारे में भी कही सुनी जा रही है।
आपने यह भी सुन रखा होगा कि किसी जमाने में राजहठ, बालहठ और त्रियाहठ मशहूर हुआ करते थे लेकिन जाने क्योंकर इन हठों के बनानेवालों की नजर से मच्छर हठ रह गया। हो सकता है कि जब यह कहावतें रची-बनी होंगी तब मच्छरों का इतना रूआब नहीं होगा। तब वह डीडीटी से भी डरते थे, परन्तु आजकल जैसे अपराधी किस्म के लोगों में पुलिस का भय नहीं रहा। मच्छर भी डीडीटी से नहीं डरते।
एक कारण यह भी हो सकता है कि उन दिनों मच्छर इतनी तादाद में नहीं होते होंगे कि अपना रौब जता सके। बहरहाल जब आदमियों की तादाद बेहद बढ़ती जा रही है तो इन मच्छरों को भी अपनी आबादी बढ़ाने का पूरा हक है क्योंकि आप तो जानते ही है कि कानून के सामने सब बराबर हैं।
यों होने को इन दिनों मंदिर मस्जिद हठ, भी है लेकिन यह सिर्फ चुनाव में ही नजर आता है और चुनाव खत्म होते ही यह अपने आप ओझल हो जाता है। कौनसा मंदिर और कौनसी मस्जिद ?
मच्छर हठ का अपना महत्व है। भले ही राष्ट्रपति संसद का मानसून सत्र बुलाने में देर कर दें, लेकिन गर्मियां खत्म होते ही इधर मानसून की आहट हुई और उधर मच्छरों का सत्र चालू होजाता है। मलेरिया फैलाने में भले ही नर मच्छर सुस्त हों लेकिन आदमी का खून पीने में वह कम नही हैं। लगता है कि इस काम के लिए इसके पास दोनों ही तरह की ड्रिलंग मशीनें-रोटेरी और हैमर टाइप- हैं। यह खून पीने वाले -मसलन खटमल इत्यादि- वर्ग का अहम सदस्य है। इसमें यह भी खूबी है कि यह प्राणी वैसे तो नभचर है लेकिन जल-थल में भी इसका कुछ नही बिगड़ता। इसकी दूसरी महत्वपूर्ण खासियत यह है कि यह प्राणी बिना किसी यूनियनबाजी के अपना काम करता रहता है और क्या मजाल जो कभी कोई जुलूस निकाला हो और नारे लगाए हों, मसलन चाहे जो मजबूरी हो हमारी मांगें पूरी हो या कभी ट््रन रोकी हो या रास्ता जाम किया हो। वैसे तो कायदे से इसे अपना काम-आदमी का खून पीना- का चार्ज सुबह अंधेरा खत्म होते ही मक्खियों को दे देना चाहिए परन्तु इनमें से अधिकांश डबल ड्यूटी करते रहते हैं। उधर उजाला होते ही मक्खियां आ धमकती हैं, हालांकि वह आदमी का खून नहीं पीती लेकिन शरीर पर चिपकती तो है ही। उनका हठ भी मशहूर है। हटाते हटाते आप भले ही थक जाए यह दोनों प्राणी मानने वाले नहीं हैं। कुछ जानकारों का तो यह मानना है कि इनको हठी विक्रमादित्य से प्रेरणा मिली हुई है जो बार-बार श्मशान में बेताल को पेड़ से उतार कर, कंधें पर लाद कर चल देता है, फिर बेताल उसको कोई कहानी सुनाकर सवाल करता है और विक्रमादित्य के बोलते ही बेताल गायब हो जाता है। दोनों के हठ में इतना ही फर्क है कि मक्खियां तो श्राद्धों की खीर खाकर चली जाती हैं, लेकिन मच्छर अपनी हठ पर कायम रहता है। उल्टे आजकल वह चालाकी और सीख गया है। कुछ दिनों पहले एक बुजुर्ग मच्छर ने एक नौजवान मच्छर से कहा कि क्या बात है आजकल बहुत दुबले हो रहे हो ? नौजवान मच्छर ने जवाब दिया कि मैंने आदमियों का खून पीना बंद कर दिया है। क्यों, उस बुजुर्ग ने आश्चर्य से पूछा तो वह बोला एड्स का खतरा कौन मोल लेवे?
-ई. शिव शंकर गोयल

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