स्थानीय ही हकदार , बाहरी हो दरकिनार

election 2013-सुरेन्द्र जोशी- केकड़ी । विधानसभा चुनाव के करीब आने के साथ ही केकड़ी में राजनैतिक सरगर्मियां कुछ इस तरह से तेज हुई है कि सम्भावित उम्मीदवारो ने अपने अपने स्तर पर टिकट की कवायद तेज कर दी है। कांग्रेस में जहां मौजूदा विधायक व सरकारी मुख्य सचेतक डा रघु शर्मा को एक मात्र के दावेदार के रूप में माना जा रहा है, वहीं बीजेपी में स्थानीय दावेदार तो थे ही , कई ऐसे बडे चेहरो ने भी इस सीट पर अपनी निगाह टिका दी है जो इस इलाके से तो तालुक नहीं रखते लेकिन राजस्थान की राजनीति में बडा असर रखते है। ऐसे उम्मीदवारो को बाहरी मानते हुए स्थानीय उम्मीदवार उनके विरोध मे गोलबंद होने लगे है। उनकी मांग है कि बीजेपी जिसको भी टिकट दे वह स्थानीय होना चाहिए। उल्लेखनीय है कि भारतीय जनता पार्टी से पूर्व मंत्री जर्नादनसिंह गहलोत का नाम तो लगभग तय माना ही जा रहा था मगर अब बयाना से विधायक रहे गुर्जर नेता अतरसिंह भडाणा ने भी अपने स्तर पर केकडी इलाके में जडे जमाने की कवायद तेज कर दी है। उल्लेखनीय है कि जर्नादन सिंह गहलोत जहां पिछले चुनाव में कांग्रेस छोड कर के वसुन्धरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी में शामिल हो गये थे वहीं गुर्जर आन्दोलन के दौरान अतरसिंह भडाणा बीजेपी छोडकर के कांग्रेस में चले गये थे, लेकिन अब भडाणा ने बीजेपी में आने की कवायद के साथ ही केकड़ी विधानसभा क्षेत्र में अपने स्तर पर प्रयास तेज कर दिये है। भडाणा पिछले दिनो मय परिवार न केवल केकड़ी क्षेत्र का दौरा कर चुके है वरन हरियाणा के एक प्रशासनिक अधिकारी रहे व्यक्ति के जरिये विधानसभा क्षेत्र की टोह लेने में जुटे हुए है। इस बीच भडाणा की ओर से इलाके के उन प्रभावशाली नेताओं से भी सम्पर्क साधा गया है जो यहां की राजनीति में अपना असर रखते है। भडाणा और गहलोत की सक्रियता के साथ ही यहा स्थानीय उम्मीदवार भी आपस में लामबंद होने शुरू हो गये है।

सुरेन्द्र जोशी
सुरेन्द्र जोशी

उनकी दलील है कि स्थानीय उम्मीदवार की उपेक्षाकर पार्टी ने किसी बाहरी चेहरे को आजमाया तो बीजेपी के लिये यह आसान सीट और भी ज्यादा मुश्किल हो जायेगी। यह पहला मौका नहीं है जब केकडी विधानसभा क्षेत्र से कोई बाहरी उम्मीदवार आया है। इससे पहले शम्भुदयाल बडगुर्जर, ललित भाटी, बाबूलाल सिंगारिया तो विधायक बन ही चुके है, पूर्व मुख्यमंत्री व हरियाणा के मौजूदा राज्यपाल जगन्ननाथ पाहडिया भी यहां से चुनाव लडकर शिकस्त खा चुके है। दलील है कि जब पहाडिया जैसे बडे दिज्गज यहां नहीं टिके तो गहलोत या भडाणा का टिकना तो और भी ज्यादा मुश्किल है।

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