तो क्या अरविंद केजरीवाल ने आईआईटी को राजनीतिक रूप से जगा दिया है?

kejriwal-रवीश कुमार- पता चला आई आई टी बदल गया है… इस लाइन से ही आप जज कर सकते हैं कि आई आई टी को लेकर इस लेखक की पहले से कोई तय राय रही होगी । आज जिस टापिक पर आई आई टी दिल्ली में चर्चा का संचालन करने जाना था उसके बारे में सुनते ही कोफ़्त हो गई थी । भारत के सुपर पावर बनने का चांस है ? आमतौर पर स्कूल कालेज और सेमिनार में जाना बंद कर चुका हूँ फिर भी किसी वजह से इंकार नहीं कर सका ।

मैं वाक़ई उस आई आई टी दिल्ली में जाना चाहता था जो मेरे लिए मुनिरका और बेर सराय प्रवास के दौरान सस्ता और अच्छा खाना खाने का अड्डा हुआ करता था । बेर सराय के पीछे वाला आई आई टी । जिसके छात्र छात्राओं को इस हसरत से निहारता रहता था कि ये लोग कितने प्रखर और प्रतिभाशाली हैं । शियर्स जिमान्सकी और रेस्निक हेलिडे बना लेते होंगे । बाप रे । इन दो किताबों को देखते ही मेरे कानों में आकाशवाणी हुई थी रे मूर्ख गणित में फ़ेल करने वाला तू रेस्निक हेलिडे बनायेगा । जा तू किसी लायक नहीं है । डूब मर या आर्टस पढ़ !

आई आई टी ने आई ए एस ( जो कभी दिया नहीं और जिसका अफ़सोस भी नहीं ) से ज़्यादा तकलीफ़ दिया है । बाद में आई आई टी के प्रति मेरी यह छवि धूमिल होती गई और धारणाओं के सफ़र में कही से एक धारणा समा गई कि इंजीनियर को सोशल साइंस या समाज से ही कोई मतलब नहीं होता । उनकी पोलिटिक्स गड़बड़ होती है । ये सांप्रदायिक किस्म की बातों में ज़्यादा यक़ीन करते हैं । सब पढ़ाकू होते हैं लेकिन अच्छी नौकरी और सैलरी से आगे इनकी दुनिया नहीं होती । ऐसी कई तरह की बातें सुनने लगा । साम्प्रदायिकता के सवाल को अलग कर दें तो क्या राजनीतिक सामाजिक स्वीकृति के लिए कम्युनिस्ट ही होना ज़रूरी है ? वैसे जब अरविंद ने सांप्रदायिकता के सवाल को उठाया तो सबने तालियां बजाकर संदेश दिया कि हम नेताओं की यह चाल समझते हैं । किसी वजह से पहले के युवा आंदोलनों में आई आई टी की कम भागीदारी ने इसे और पुष्ट किया होगा ( जे एन यू की तुलना में ) तो खैर इन सब सामानों से भरा अपना ब्रीफ़केस लेकर आई आई टी दिल्ली में प्रवेश किया ।

मंच पर अरविंद केजरीवाल, प्रभात कुमार, त्रिलोचन शास्त्री और सुमंत कुमार के साथ प्रवेश कर ही रहा था तो बारह तेरह सौ छात्रों की क्षमता वाला हाल तालियों से गूँज गया । सबने अरविंद केजरीवाल का ज़बरदस्त स्वागत किया और उनकी राजनीति पर गर्व भी । तभी लगा कि ये वो आई आई टी नहीं है जिसके एकाध छात्रों को आगे पीछे घुमाकर राजनीतिक दल खुद को टेक्सैवी जताते हैं । आई आई टी के छात्र एक ऐसे आईटीयन का गर्व से स्वागत कर रहे थे जो किसी मिलियन डालर कंपनी का सी ई ओ बनकर नहीं आया है बल्कि अपना करियर दाँव पर लगाकर राजनीति को बदलने निकला है । उत्साह देखते बना । हो सकता है यही छात्र किसी और नेता के लिए ऐसी ही तालियाँ बजा दें मगर अरविंद के प्रति एक सम्मान तो दिखा ही ।

यह वो आई आई टी नहीं है जो सिर्फ अपनी दुनिया रच रहा है । अरविंद के लिए तालियाँ बजाई तो उनसे सवाल भी किया । बाटला हाउस और आरक्षण को लेकर । पूछा कि आरक्षण पर साफ़ से क्यों नहीं बोलते । ये और बात है कि मैंने जवाब देने से रोका क्योंकि यह विषय का हिस्सा नहीं था । वक्त कम होने के कारण भी । ऐसे सवालों के जवाब चुटकियों और ज़ुमलों में नहीं मिलते हैं । जब मैं खुद सुपर पावर बनने की चाहत पर सवाल उठा रहा था तब तालियों से समर्थन हो रहा था कि हम क्यों सुपर पावर बनना चाहते हैं । भारत को अच्छा भारत बनना है । सुपर पावर भले न बन पायें । मुझे बराक ओबामा और शहाबुद्दीन में कोई अंतर नहीं लगता । दोनों हर वक्त किसी के खेत में घुसे रहते हैं । सुपर पावर अमरीका का ‘ यूज़्ड’ सपना है जो इंडिया में अब आ रहा है । समय समय पर यह सपना अलग अलग देशों में घूमता रहता है । आजकल ये भारत में घुमाया जा रहा है ।  जल्दी ही सब सुपर पावर के सपने से निकल कर राजनीति की मूलभूत समस्याओं पर बात करने लगे और ताली बजाने लगे ।

अरविंद ने अपनी पार्टी और उसकी नीति के हवाले से राजनीति को बदलने की बात कही तो एक ने सवाल कर दिया कि आप इस मंच का राजनीतिक इस्तमाल कर रहे हैं । एक ने पूछा कि आपने अन्ना का इस्तमाल नहीं किया ? ये सवाल तब हुए जब सबने अरविंद की हर बात का तालियों से ज़ोरदार स्वागत किया । अरविंद उनके लिए किसी अचरज से नहीं । एक लड़के ने पूछा कि हम आपको पार्टी से जुड़ने के लिए क्या सकते हैं ।

तो क्या अरविंद ने आई आई टी को राजनीतिक रूप से जगा दिया है ? एक सेमिनार के आधार पर कहना नादानी होगी लेकिन उनके प्रति उत्साह को देखकर कहा जा सकता है कि अरविंद के बाद का आई आई टी वो आई आई टी नहीं रहा बल्कि इस मामले में जल्दी ही जे एन यू को टक्कर देने वाला है । अच्छा है कि आई आई टी अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरूआत अरविंद और उनके कोरे स्लेट के साथ कर रहा है । उनका ही असर होगा कि एक लड़का खुद को आई आई टी खड़गपुर का बताता हुआ खड़ा हुआ और कहने लगा कि हम आई आई टी के भीतर के भ्रष्टाचार पर कब सवाल करेंगे । मुझसे अनायास निकल गया कि ये दूसरा केजरीवाल है । अब दो दो हो गए । कहना ये चाहिए था कि ये नया आई आई टी है । मुझे आई आई टी की राजनीतिक भूमिका के बारे में सही ज्ञान भी नहीं है लेकिन वहाँ की छात्र राजनीति हिन्दू मुसलमान आईपीएल के खेल को खूब समझ रहे थी ।

सचमुच आज का आई आई टी ‘पब्लिक डोमेन’ में आकर सवाल कर रहा है । वो न तो बीजेपी का अंध भक्त है न कांग्रेस का । कम से कम हाल में यही लगा । आई आई टी के ही हैं त्रिलोचन शास्त्री जिनकी संस्था ए डी आर राजनीति में अपराधीकरण के आँकड़े बटोर रही है ताकि इसे लेकर बहस चलती रहे । आई आई टी सिस्टम से निकल कर कई लोग साहित्य में क़दम रख रहे हैं । अंग्रेजी और हिन्दी में । कई लोग फ़िल्में बना रहे हैं । ज़रूरत है इस नए आई आई टी को समझने की । लीडर बनने की चाहत नई है और उत्साह जगाती है । आई आई टी के छात्रों के पास कुछ करने के लिए प्रतिभा और सामाजिक मान्यता दोनों हैं ।

ravish kumarइसीलिए आज आई आई टी दिल्ली जाकर मज़ा आया । जीवन में कभी मौक़ा मिला को रेस्निक हेलिडे पर शोध करूँगा । पढ़ने वाले छात्रों से किस्से बटोर कर एक किताब लिखना चाहता हूँ । रेस्निक हेलिडे को सम्मान दिलाना चाहता हूँ । वे जहाँ के हैं वहाँ जाकर जानकारी जुटाना चाहता हूँ । आख़िर कौन है ये रेस्निक हेलिडे जो लाखों की संख्या में पढ़े जाते हैं । हिन्दुस्तान के गाँव से लेकर शहर तक में । इसके लिए आई आई टी जाना होगा । ज़रूर जाऊँगा । शुक्रिया आईटीयन बदलाव का वाहक होने के लिए ।

लेखक रवीश कुमार एनडीटीवी के चर्चित एंकर हैं. उनका यह लिखा उनके ब्लाग ‘कस्बा’ से साभार लेकर यहां प्रकाशित किया गया है.

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