राष्ट्रीय दलों के पास इतना धन आता कहाँ से है?

-कुलदीप तोमर- आखिर राष्ट्रीय दलों के पास इतना धन आता कहाँ से है? चुनाव आयोग में दाखिल आयकर विवरणों का एक अध्ययन बताता है कि उनके अधिकतर आय स्त्रोत अज्ञात हैं। देश के जनप्रतिनिधि कानून 1951 के सेक्शन 29-सी के मुताबिक राजनीतिक दलों के लिये प्रत्येक वर्ष में प्राप्त 20000 रुपये से अधिक की दान राशि का विवरण चुनाव आयोग को देना अनिवार्य है। मगर राजनैतिक दल 20,000 रूपये से कम दान देने वाले दानदाताओं का नाम बताने के लिये बाध्य नहीं है। परिणामत:75 प्रतिशत से भी ज्यादा दान अज्ञात स्त्रोतों से होता है। वहीं चुनाव के दौरान राजनैतिक पार्टियों को मिलने वाले चन्दे में एकाएक वृद्धि हो जाती है।

कुलदीप तोमर
कुलदीप तोमर

देश में 16वीं लोकसभा के लिये चुनाव का बिगुल बज चुका है। ऐसे में सभी राजनैतिक दल अपने-अपने हथियार भाँजने को तैयार हैं। सभी दल चुनाव में धनबल की भूमिका से भली-भाँति परिचित हैँ। वे एक बार फिर पैसे को पानी की तरह बहाने की तैयारी कर रहे हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, अलग-अलग राजनैतिक दलों को चुनावी समय में भारी मात्रा में चन्दा प्राप्त होता है। चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार इसका ब्यौरा एक निश्चित अवधि में आयोग के सामने प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है लेकिन अधिकाँश दल इसकी अनदेखी करते हैं। इससे चुनाव में धन के दुरूपयोग की संभावना बढ़ जाती है। आगामी लोकसभा में भी पैसे की फिजूलखर्ची का पैमाना बढ़ने के आसार नजर आ रहे हैं।

आगामी वर्ष की पहली छमाही में देश में लोकसभा का चुनाव होना है जिसकी तैयारी अधिकाँश राजनैतिक दलों ने शुरू कर दी है। चुनाव के दौरान सभी छोटे-बड़े राजनैतिक दल पैसे को पानी की तरह बहाने को तैयार हैं। यह धन चुनावी समय में उन्हें चन्दे के रूप में प्राप्त होता है। राजनैतिक पार्टियों को चुनावी समय में प्राप्त चन्दे में से 50 फीसदी से 70 फीसदी तक नगद धनराशि के रूप में प्राप्त होती है। इस नगद प्राप्त धनराशि का पूर्ण विवरण नहीं मिल पाना चुनाव आयोग के लिये सबसे बड़ी परेशानी है। चन्दे में प्राप्त चैक व डीडी का तो फिर भी पता होता है कि वे किस रास्ते से आयी हैं परन्तु नगद राशि व बहमूल्य धातु का पता लगाना मुश्किल है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अध्ययन में पाया गया कि प्रत्येक चुनाव में राजनैतिक दल करोड़ों रूपये चन्दे के रूप में प्राप्त करते हैं, मगर चंदा लेने में चुनाव आयोग के निर्देशों की अनदेखी की जाती है। एडीआर के अध्ययन में पाया गया कि राजनैतिक दलों ने अब आय का साधन में संपत्ति विक्रय को भी घोषित करना शुरू कर दिया है। गौरतलब है कि यह विक्रय हुयी संपत्ति कहाँ से आयी इसकी कोई जानकारी नहीं दी जाती। इसके अलावा नगद धनराशि के स्त्रोत के बारे में भी कोई जानकारी  नहीं दी जाती। एडीआर द्वारा किये गये अध्ययन में 2009 के लोकसभा चुनाव सहित 2008 से 2012 के बीच हुए कुल 31 चुनावों को सम्मिलित किया गया था। 2008 से 2012 तक के बीच होने वाले सभी चुनावों में पार्टी मुख्यालय पर 6 राजनैतिक दलों ने 967.41 करोड़ रूपये एकत्रित किये। वहीं राज्य इकाइयों पर इन 6 राजनैतिक दलों ने 1577.95 करोड़ रूपये एकत्रित किये। चुनाव घोषणा तिथि व चुनाव समाप्ति तिथि के बीच औसतन 115 दिनों में काँग्रेस ने सर्वाधिक 754.72 करोड़ रूपये प्राप्त किये। काँग्रेस ने विश्लेषित 31 में से 14 चुनाव में पार्टी मुख्यालय पर प्राप्त धनराशि घोषित नहीं की है। 2008 से 2012 तक पार्टी मुख्यालयों द्वारा एकत्रित पार्टी की कुल घोषित धनराशि 278.77 करोड़ रूपये रही। बसपा ने विश्लेषित समय में सबसे अधिक धनराशि 330.36 करोड़ रूपये घोषित की। वही चुनाव के दौरान लगभग 115 दिन के भीतर केन्द्रीय स्तर पर भाजपा ने 326.36 करोड़ रूपये प्राप्त किये। चुनाव के दौरान प्राप्त सबसे कम धनराशि सीपीआई ने घोषित की जोकि 5 करोड़ है, वही माकपा ने यह राशि 9.26 करोड़ रूपये घोषित की। इनके विश्लेषण में पता चलता है कि सभी राजनैतिक दलों ने भारी मात्रा में नकद धनराशि चन्दे के रूप में प्राप्त की है। परन्तु उसका कोई स्त्रोत बताने से गुरेज किया है। सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर चुनावी समय में पार्टी फंड में इतना रूपया कहाँ से आता है।

2004-12 तक राजनैतिक पार्टियों की कुल आय का 75.05 प्रतिशत धन अज्ञात

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने अपने एक अन्य अध्ययन में काँग्रेस, भाजपा, बसपा, एनसीपी, सीपीआई और माकपा को शामिल किया था। अध्ययन में सभी राजनैतिक दलों की वित्तीय वर्ष 2004-05 से 2011-12 तक की कुल आय 4,895.96 करोड़ रूपये पायी गयी। इसमें चुनाव ट्रस्टों(इलैक्टोरल ट्रस्ट) द्वारा दान के माध्यम से हुयी कुल आय राजनैतिक दलों की कुल आय का 2.16 प्रतिशत रहा है। चुनाव आयोग में दाखिल योगदान रिपोर्ट में उपलब्ध दानकर्ताओं की जानकारी के आधार पर ज्ञात दानकर्ताओं द्वारा राजनैतिक दलों को हुयी आय 435.85 करोड़ रूपये आँकी गयी जोकि दलों की कुल आय का मात्र 8.90 प्रतिशत है। इसके अलावा अन्य ज्ञात स्त्रोतों से राजनैतिक दलों की हुयी कुल आय 785.60 करोड़ रूपये आँकी गयी। अन्य ज्ञात स्त्रोतों में संपत्ति विक्रय, सदस्यता शुल्क, बैंक द्वारा प्राप्त ब्याज, पुस्तकों की बिक्री, दलों का आंतरिक चंदा बताए गये है। यह कुल आय का मात्र 16.05 प्रतिशत है। अज्ञात स्त्रोतों द्वारा राजनैतिक दलों की आय 3674.50 करोड़ आँकी गयी, जोकि कुल आय का 75.05 प्रतिशत है। विश्व के अन्य शीर्ष लोकतांत्रिक देशों में यह स्थिति नहीं है। अध्ययन की रिपोर्ट में स्टोकहोम आधारित एक संस्था इंटरनेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ डेमोक्रेसी एण्ड इलेक्टोरल असिस्टैन्स के एक सर्वेक्षण का ब्यान भी दिया गया है। जिसमें कहा गया है कि भारत विश्व के उन चुनिन्दा 10 प्रतिशत देशों में से एक है जहाँ राजनैतिक दल अथवा चुनाव प्रत्याशियों को बेनामी व अज्ञात कृत दान लेने की वैधता है। 40 देशों में हुआ एक ओर सर्वेक्षण इस बात की पुष्टि करता है कि अज्ञात स्त्रोतों से दान लेना इन 40 देशों में स्वीकार नहीं है। इस सन्दर्भ में नेपाल व भूटान आदि पड़ोसी देश भारत से ज्यादा पारदर्शिता वाले हैं।

दान और आय का विश्लेषण

वित्तीय वर्ष 2004 से 2011 तक के बीच देश के बड़े पांच राजनैतिक दलों की आय का ब्यौरा इस प्रकार है:-

काँग्रेस  को 2008 करोड़ रूपये,भाजपा को 994 करोड़ रूपये,बसपा को 484 करोड़ रूपये,माकपा को 417 करोड़ रूपये व सपा को 279 करोड़ रूपये मिले हैं। अधिकतर राजनीतिक दलों की आय का बड़ा स्रोत दान है। राष्ट्रीय दलों को मिले धन के दानकर्ताओं में नाम देने वाले (20000 रुपए से अधिक की राशि देने वाले का नाम बताया जाना जरूरी है ) दानकर्ताओं की संख्या बहुत कम है। अध्ययन के अनुसार बीएसपी ने जानकारी दी है कि उसने 20000 हजार से अधिक का कोई चंदा प्राप्त नहीं किया है। सन् 2009-20 और 2011-12 में भाजपा ने 22.76 प्रतिशत दानकर्ताओं के ही नाम प्रदर्शित किये है, जबकि काँग्रेस ने महज 11.89 प्रतिशत  के  नाम दिखाए है। इसके बाद एनसीपी 4.64 और माकपा ने 1.29 प्रतिशत दानकर्ताओं के  नाम सार्वजनिक किये हैं।

कैसे हो बदलाव

यदि दानकर्ताओं की पूरी जानकारी सार्वजनिक जाँच के लिये आम जनता को उपलब्ध हो तो बहुत हद तक इसमें बदलाव हो सकता है। भूटान, नेपाल, जर्मनी, फ्रांस, ब्राजील, बल्गेरिया, अमेरिका आदि देशों में ऐसा ही किया जाता है। इन देशों में से किसी भी देश में राजनैतिक दलों के आय के स्त्रोत का 75 प्रतिशत अज्ञात रहना असंभव है। एडीआर के मीडिया कोर्डिनेटर अनिल भेरवाल के अनुसार राजनैतिक दलों में पारदर्शिता लाने के लिये जो दानदाता इलेक्टोरल ट्रस्ट को दान देते हैं, उनकी पूरी जानकारी सार्वजनिक जाँच के लिये उपलब्ध होनी चाहिये। ऐसी संस्था जो विदेशी धन पर चलती है, उसे चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार या राजनैतिक दल को सहायता की अनुमति नहीं होनी चाहिये। 2009 में प्रस्तावित किये गये फाइनेंस बिल के अनुसार इलेक्टोरल ट्रस्ट को अपने धन का 95 प्रतिशत राजनैतिक दलों को दान करना चाहिये। राजनैतिक दलों को किये गये इस दान की पुष्टि होनी आवश्यक है। राजनैतिक दलों को आरटीआई के दायरे में रहकर निरन्तर जानकारी प्रदान करनी चाहिये। ऐसा करने से ही राजनैतिक दल,चुनाव प्रक्रिया एंव लोकतंत्र सशक्त होगा। http://www.hastakshep.com

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