अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव: पांच अहम बातें

अब से ठीक एक महीने बाद दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमरीका अपने नए राष्ट्रपति का चुनाव करेगा.

छह नवंबर को होने वाली वोटिंग से पहले अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवारों के बीच बुधवार से राष्ट्रीय टेलीविज़न पर बहस शुरु हो जाएगी.

तो चुनाव प्रक्रिया शुरु होने से पहले जानिए इस चुनाव की पांच प्रमुख तथ्य?

1. क्या है सबसे बड़ा मुद्दा?

मतदान पर शोध करने वाली संस्था रासम्युसन के अनुसार इन चुनावों में वोट डालने वाले 80 प्रतिशत लोगों के लिए देश की अर्थव्यवस्था एक बहुत बड़ा मुद्दा है.

जिमी कार्टर और जॉर्ज बुश सीनियर ने जब व्हाईट हाउस छोड़ा था तब अमरीकी अर्थव्यवस्था कठिनाईयों से गुज़र रही थी और ऐसे ही समय में बिल क्लिंटन राष्ट्रपति बने थे.

पिछले 43 महीनों से देश में बेरोज़गारी 8 प्रतिशत से भी उपर रही है और 16 खरब डॉलर का नुकसान हो चुका है.

रासम्युसन के मुताबिक, ”नौकरी इसी मुद्दे का ही एक हिस्सा है. इससे प्रभावित सिर्फ वे लोग नहीं है जो बेरोज़गार हैं बल्कि वे 28 प्रतिशत लोग भी हैं जिन्हें डर है कि उनकी नौकरी जा सकती है.”

इसके बावजूद बराक ओबामा इस चुनाव में किसी मायने में पीछे नहीं दिख रहे जो विश्लेषकों को आश्चर्यचकित कर रहा है.

लेकिन चुनाव सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं है. जिन लोगों को लगता है ओबामा ने अच्छा काम नहीं किया उन्हें मिट रोमनी से भी अच्छा काम करने की उम्मीद नहीं है. कुछ लोग तो अब भी इन हालातों के लिए जॉर्ज बुश को दोषी मानते हैं.

रासम्यूसन के अनुसार, ”अमरीकियों को नहीं लगता कि उनकी स्थिति पहले से बेहतर है, ना ही ये कि उनकी हालत पहले से खराब, इसलिए इस चुनाव में मुकाबला कड़ा है.”

2. क्यों अहम हैं स्विंग स्टेट्स?

चुनावों के दौरान अमरीका दो हिस्सों में बंट जाता है. एक वो जहां चुनावी गतिविधियां हावी रहती हैं और दूसरी वो जहां जीवन सामान्य तरीके से चलता रहता है.

दरअसल अमरीका के ज्य़ादातर राज्य या तो डेमोक्रैट समर्थक हैं या रिपब्लिकन समर्थक और उनके फैसले मूल तौर पर बदलते नहीं हैं.

चुनाव के नतीज़ों पर असर होता है उन राज्यों का जिन्हें ‘स्विंग स्टेट्स’ कहा जाता है, यानि वे राज्य जहां मतदाताओं के फैसले बदलते रहते हैं.

उदाहरण के तौर पर – ओहायो. यहां की बेरोज़गारी दर राष्ट्रीय दर से काफी कम है. इस राज्य की विशेषता ये है कि वर्ष 1960 से लेकर अब तक हुए चुनावों में इसने हर बार उसी उम्मीदवार के लिए वोट किया है जो चुनाव जीतता है.

ओहायो में 18 इलेक्टोरल कॉलेज है जिस कारण दोनों ही पार्टियां यहां मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए लाखों डॉलर खर्च कर देती है.

ओहायो में रहने वालों के घरों में पिछले छह महीने से दोनों पार्टियों के प्रचारकों की तरफ से लगातार रिकॉर्डेड कॉल्स आ रहे हैं और प्राइम टाइम टेलीविज़न में प्रचार किया जा रहा है.

ओहायो के बोलिंग ग्रीन विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे 37 साल के टिम गैड्डी कहते हैं, ”पिछले चुनावों के दौरान मैं इंडियाना में था लेकिन वहां शांति थी. ओहायो में सबसे खराब लगातार आने वाले फोनकॉल्स हैं, लेकिन अच्छी बात ये है कि यहां के लोग इस पूरी प्रक्रिया में दिलचस्पी लेते हैं.”

3. किसका वोट सबसे अहम?

हर साल अमरीका में हिस्पैनिक समुदाय से 50 हज़ार नए मतदाता जुड़ते हैं, जो इस समुदाय को बहुत अहम बना देता है.

साल 2010 में हिस्पैनिक समुदाय की आबादी पांच करोड़ हो गई थी, जो अमरीका की कुल आबादी का 13 प्रतिशत है और 2030 तक ये 22 प्रतिशत हो जाएगा.

अमरीकी राष्ट्रपति के पद के लिए ये पहला चुनाव है, जिसमें दोनों उम्मीदवारों ने स्पैनिश टेलीविज़न के अप्रवास नीतियों से जुडे़ कार्यक्रमों में हिस्सा लिया.

यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू मेक्सिको में लातिनी राजनीति विषय के विशेषज्ञ गैबरियल सांचेज़ कहते हैं, ”2008 के चुनावों में बराक ओबामा को 68 प्रतिशत लातिनी वोट मिले थे जो इस साल भी मिलने की पूरी उम्मीद है.”

अप्रवास नीति को लेकर रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी काफी सख्त़ हैं जिससे उनको नुकसान भी उठाना पड़ सकता है.

हालांकि उनकी ही पार्टी के अन्य नेताओं ने उनसे इशारों में अपना रवैया बदलने को कहा है.

4. विदेश नीति पर क्या है रुख?

अमरीकी वोटर जब वोट करता है तो देश की विदेश नीति उसके फैसलों को प्रभावित करती है.

पिछले महीने लीबिया में तैनात अमरीकी राजदूत क्रिस्टोफर स्टीवंस की हत्या के बाद ये मुद्दा फिर से चुनाव प्रचार में हावी हो गया है. इस समय अमरीका के ईरान, इसरायल, अफगानिस्तान जैसे देशों के साथ संबंधों पर फिर से चर्चा शुरु हो गई है.

मिट रोमनी ने स्टीवंस की मौत के बाद राष्ट्रपति बराक ओबामा को निशाना साधते हुए उनपर इसरायल के साथ विश्वासघात करने और ईरान का साथ देने का आरोप लगाया था.

रोमनी ने ‘मुद्रा में हेरफेर’ के मुद्दे पर चीन के साथ भी कड़ाई से निपटने की बात कही है जिससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक जंग की संभावना बन बैठी है.

कैलिफोर्निया रिवरसाइड विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर शॉन बोलर के अनुसार, ”अमरीका जैसे विविधतापूर्ण देश में विदेश नीति हमेशा ही एक बड़ा मुद्दा रहेगा.”

उदाहरण के लिए, ”आप यहां अरब मूल के अमरीकीयों को फलस्तीन, क्यूबाई मूल के अमरीकीयों को क्यूबा के मुद्दे पर काफी प्रभावित होते देखेंगे.

ईरान के परमाणु कार्यक्रम और इसरायल की प्रतिक्रिया के अलावा सीरिया में बनते हालातों के कारण भी अमरीकी राजनीति में ‘विदेश नीति’ एक बड़ा मुद्दा बना रहेगा.

पूरी दुनिया की नज़र इस बात पर लगी है कि व्हाईट हाउस में आने वाला राष्ट्रपति कौन होगा क्योंकि अमरीकी राष्ट्रपति के फैसलों का असर पूरी दुनिया में होता है.

5. किसके हाथ आएगी सिनेट की चाबी?

छह नवंबर को होने वाले मतदान से सिर्फ अमरीका के राष्ट्रपति ही नहीं बल्कि हाउस ऑफ रिप्रेसेंटेटिव्स के सभी सदस्यों और सिनेट के एक तिहाई प्रतिनिधियों का चुनाव होगा.

हालांकि इन पदों के लिए होने वाले चुनाव की ज्यादा चर्चा नहीं हुई है लेकिन इसका ओबामा और रोमनी की जीत पर काफी असर होगा.

क्योंकि अमरीकी संसद में हाउस ऑफ रिप्रेसेंटेटिव्स की कमान रिपब्लिकन सांसदों के हाथ है तो सिनेट का कमान डेमोक्रैट्स के हाथ और इसका असर 2011 के सत्र पर भी पड़ा जिसमें काफी कम विधेयक पास हुए थे.

इस निष्क्रियता के कारण इस बार अमरीकी संसद की रेटिंग ऐतिसाहिक तौर पर काफी कम आंकी गई थी.

शॉन बोलर के अनुसार, ”अमरीका में कोई भी कानून बनाने में काफी लंबा वक्त लगता है और ऐसा एक पार्टी की सरकार होने के बाद भी होता है. ये अमरीकी राजनीति का एक विशेष पहलू है जो इसे दूसरे यूरोपीय देशों से अलग बनाता है.”

लेकिन पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने टेलीविज़न चैनल सीएनएन को दिए गए एक इंटरव्यू में ये कहकर आशा की एक किरण जगा दी कि उन्हें उम्मीद है कि इस बार अमरीकी संसद का माहौल ज्यादा सौहार्दपूर्ण होगा.

 

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