चीन लंदन ओलंपिक में क्या शीर्ष पर बना रह पाएगा ?

लंदन ओलंपिक की शुरुआत के साथ ही जोरशोर से ये बहस शुरु हो गई है कि क्या चीन इस बार भी शीर्ष पर बना रह सकता है और सबसे ज्यादा स्वर्ण पदक जीत सकता है?

वर्ष 2008 में बीजिंग आयोजित ओलंपिक में चीन ने पदक तालिका में पहला स्थान पाया था और 51 स्वर्ण पदक जीते थे.

चीन में ओलंपिक खेलों में भाग लेने को लेकर लंबे समय तक राजनैतिक विवाद रहा है.

वर्ष 1952 में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने ‘द पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाईना’ (आज का चीन) और ‘रिपब्लिक ऑफ चाईना’ (ताईवान) दोनों को हेलिंस्की में आयोजित खेलों में भाग लेने की अनुमति दी थी.

हालांकि ‘रिपब्लिक ऑफ चाईना’ ने ‘पीआरसी’ को अनुमति दिए जाने के विरोध में प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया था.

इस आयोजन में सिर्फ एक प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर चीन ने ओलंपिक खेलों में शुरुआत कर दी थी.

इस राजनैतिक विवाद का असर चीन के ओलंपिक खेलों में भाग लेने पर पड़ा और अगले तीन दशक यानि 1980 के ‘लेक प्लैसिड’ विंटर ओलंपिक तक चीन ने खुद को इस आयोजन से दूर रखा.

लंदन में 1984 में धमाकेदार वापसी

वर्ष 1952 में हुए ओलंपिक के 32 साल बाद, 1984 में चीन ने लंदन ओलंपिक में धमाकेदार वापसी करते हुए 15 स्वर्ण जीते और पदक तालिका में चौथे स्थान पर रहा.

चीन के खिलाड़ियों को ज्यादातर पदक जिमनास्टिक्स, शूटिंग और तैराकी में मिले. हालांकि इसकी वजह अधिकतर पूर्वी देशों द्वारा इस आयोजन में शामिल ना होने के फैसले से जोड़कर देखी जाती है.

1984 में चीन के लिए सबसे पहले स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ी ज़ू-हेफेंग रहे.

ज़ू हेफेंग को ये पदक पिस्टल ईवेंट में मिला था और इस पदक ने पूरी दुनिया में ‘एशिया के बीमार आदमी’ के रुप में प्रचारित चीन के मिथक को हमेशा के लिए तोड़ दिया था.

चीन में ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले सभी खिलाड़ी अचानक से देश के राष्ट्रीय हीरो बन गए थे.

अमरीका, रूस को मिली ट्क्कर

चीन की ये सफलता आगे भी चलती रही और अंतत: साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक्स में चीन ने अमरीका और रूस जैसे प्रतिद्वंदियों को पछाड़ते हुए पहले स्थान अपना कब्ज़ा जमा लिया था.

इस साल पदकतालिका में अमरीका दूसरे और रुस तीसरे स्थान पर रहा था.

वर्ष 2008 ओलंपिक में चीन ने टेबल टेनिस और गोताखोरी जैसे पारंपरिक खेलों के अलावा बॉक्सिंग और नौकायान में अच्छा प्रदर्शन करते हुए मेडल जीता था.

अब 2012 ओलंपिक में हर किसी के मन में यही सवाल है कि क्या चीन 2008 के अपने प्रदर्शन को दोहरा पाएगा?

‘देश से बाहर आयोजन का नुकसान होगा’

लेकिन कुछ लोगों को इस पर संदेह है जैसे भविष्यवाणी करने वाले गोल्डमैन सैक्स.

गोल्डमैन सैक्स के अनुसार चीन को इस बार अपने देश में इस आयोजन के ना होने का अच्छा-खासा नुकसान उठाना पड़ सकता है.

इनकी भविष्यवाणी है कि इस बार चीन 33 स्वर्ण पदकों के साथ दूसरे नंबर पर और अमरीका 37 स्वर्ण के साथ पहले नंबर पर रहेगा.

हालांकि चीन की आधिकारिक समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने अमरीका और चीन के बीच पहले स्थान के लिए कड़ी टक्कर होने की बात तो मानी है लेकिन उन्हें लगता है कि चीन 37 स्वर्ण जीतकर अपना स्थान बनाए रखने में सफल रहेगा.

शिन्हुआ की इस भविष्यवाणी का आधार उनके द्वारा किया गया हिसाब-किताब है, जिसके मुताबिक टेबल टेनिस, बैडमिंटन और गोताखोरी जैसे पारंपरिक खेलों में चीन को 28 स्वर्ण हासिल हो सकते हैं.

जबकि जूडो, दौड़ और तैराकी जैसे खेलों से भी 10 पदकों की उम्मीद है जो चीन को पदक तालिका में शीर्ष पर रख सकता है.

हालांकि चीन स्थित बीबीसी संवाददाता चेन जुआंग को लगता है कि इस बार अमरीका का पलड़ा भारी है और वो 37 पदक हासिल कर सकता है.

वैसे देखा जाए तो इस बार चीन पर सबसे बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव पिछले ओलंपिक से कम है क्योंकि इस बार चीन ने पिछली बार की तुलना में खिलाड़ियों का छोटा दल भेजने का फैसला किया है जो व्यवहारिक सोच को दर्शाता है.

दूसरा, इस बार चीनी अधिकारियों को पहली बार खेल की अनिश्चतता पर राय देते हुए देखा जा रहा है.

लक्ष्य पर नज़र

चीन के जिमनास्ट दल के प्रमुख, हुआंग यूबिन के अनुसार उनका ध्येय सिर्फ ज्यादा से ज्यादा स्वर्ण पदक जीतना है.

टेबल टेनिस दल के प्रमुख हुआंग बिआओ ने बीबीसी को बताया कि उनके खिलाड़ियों को पूरा विश्वास है कि वे चारों प्रतियोगिताओं में स्वर्ण जीत पाएंगे.

इन सबके कुछ राजनैतिक मतलब भी निकलते हैं.

चीन की ओलंपिक समिति के अध्यक्ष ल्यू पेंग के अनुसार, ”बीजिंग ओलंपिक के बाद होने वाला ये पहला आयोजन है जिसमें ये साबित होगी कि चीन में खेलों का कितना महत्व है.”

चीनी खिलाड़ियों को प्रेरित करते हुए ल्यू पेंग कहते हैं, ”खिलाड़ियों पर कुछ ऐतिहासिक ज़िम्मेदारियां हैं जो उन्हें भूलना नहीं चाहिए और अपने देश के चौतरफा विकास में अहम योगदान देना चाहिए क्योंकि इसी साल के अंत में देश को उसका नया नेता मिलने वाला है.”

ल्यू-पेंग का ये बयान ये बताने के लिए काफी है कि चीन में खेल और राजनीति को अलग-अलग करके देखा नहीं जा सकता.

प्रतियोगिता में स्वर्ण जीतने वाले खिलाड़ियों को उनका ईनाम भी मिलना तय है जो आर्थिक संरक्षण के साथ-साथ काफी आकर्षक प्रायोजकों के समझौते भी हो सकते हैं.

इसलिए ज्यादा से ज्यादा स्वर्ण पदक जीतना देश के साथ-साथ खिलाड़ियों के लिए भी फायदे का सौदा है.

 

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