लंदन ओलंपिक: शेरदिल सुशील ने जीता सिल्वर मेडल

इंडिया-इंडिया की गूंज, करोड़ों लोगों की दुआएं और एक शेरदिल पहलवान का जज्बा। लंदन ओलंपिक का आखिरी दिन कुछ खास था। इसे ऐतिहासिक बनाने का काम किया भारतीय कुश्ती के सेनानायक सुशील कुमार ने। बीजिंग के बहादुर ने लंदन में कांसे के पदक को चांदी में बदल दिया। स्वर्ण की जंग में भले ही जापानी पहलवान से 1-3 से मात मिली, लेकिन तब तक सुशील इतिहास में अपना नाम दर्ज करा चुके थे।

वह ओलंपिक में लगातार दो व्यक्तिगत पदक जीतने वाले पहले भारतीय बन गए। इसी के साथ वह ओलंपिक में भारत के सबसे सफल एथलीट भी बने। सुशील के फाइनल तक के सफर में दांव लगते रहे और पहलवान पिटते रहे। आखिरकार एक के बाद एक तीन पहलवानों को धूल चटाकर सुशील ने निर्णायक जंग में कदम रख दिया, जहां सुशील जापानी पहलवान का रक्षण भेदने में नाकामयाब रहे।

बावजूद इसके पोडियम पर खड़े महाबली सुशील की आंखों में चमक थी। खेलों के महाकुंभ में इतिहास रचने का गर्व भी उनमें साफ देखा जा सकता था। यह बताने के लिए काफी था कि ओलंपिक खेलों में यह भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। लंदन में भारत ने बीजिंग के पदकों को नया आयाम दिया। यहां देश ने 2 रजत व 4 कांस्य सहित कुल 6 पदक जीते। खेल मंत्री अजय माकन ने तो 2020 ओलंपिक तक यह संख्या 25 तक होने का ऐलान कर दिया है।

इनामों की बौछार :-
1.5 करोड़, हरियाणा सरकार
1 करोड़, दिल्ली सरकार
75 लाख, रेल मंत्रालय
30 लाख, खेल मंत्रालय
25 लाख, इस्पात खेल परिषद
आईएएस के समकक्ष बनाए जाएंगे सुशील

उपलब्धियों भरा सफर:-

ओलंपिक में सुशील :-
रजत, लंदन (2012)
कांस्य, बीजिंग (2008)

विश्व चैंपियनशिप:-
स्वर्ण, मास्को (2010)

कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप:-
स्वर्ण, लंदन (2003)
स्वर्ण, केपटाउन (2005)
स्वर्ण, लंदन (2007)
स्वर्ण, जालंधर (2009)

कॉमनवेल्थ गेम्स :-
स्वर्ण, दिल्ली (2010)

एशियन चैंपियनशिप:-
स्वर्ण, नई दिल्ली (2010)
रजत, किर्गिस्तान (2007)
कांस्य, नई दिल्ली (2003)
कांस्य, दक्षिण कोरिया (2008)

ओलंपिक में पदक विजेता पहलवान:-
सुशील कुमार, रजत (कुश्ती), 2012 लंदन ओलंपिक
योगेश्वर दत्त, कांस्य (कुश्ती), 2012 लंदन ओलंपिक
सुशील कुमार, कांस्य (कुश्ती), 2008 बीजिंग ओलंपिक
केडी जाधव, कांस्य (कुश्ती), 1952 हेलसिंकी ओलंपिक

देश का 13वां व्यक्तिगत पदक:-
केडी जाधव, कांस्य (कुश्ती), 1952 हेलसिंकी ओलंपिक
लिएंडर पेस, कांस्य (टेनिस), 1996 अटलांटा ओलंपिक
कर्णम मल्लेश्वरी, कांस्य (भारोत्तोलन), 2000 सिडनी ओलंपिक
राज्यवर्धन राठौड़, रजत (शूटिंग), 2004 एथेंस ओलंपिक
अभिनव बिंद्रा, स्वर्ण (शूटिंग), 2008 बीजिंग ओलंपिक
विजेंद्र सिंह, कांस्य (मुक्केबाजी), 2008 बीजिंग ओलंपिक
सुशील कुमार, कांस्य (कुश्ती), 2008 बीजिंग ओलंपिक
गगन नारंग, कांस्य (शूटिंग), 2012 लंदन ओलंपिक
विजय कुमार, रजत (शूटिंग), 2012 लंदन ओलंपिक
साइना नेहवाल, कांस्य (बैडमिंटन), 2012 लंदन ओलंपिक
मैरीकॉम, कांस्य (महिला मुक्केबाजी), 2012 लंदन ओलंपिक
योगेश्वर दत्त, कांस्य (कुश्ती), 2012 लंदन ओलंपिक
सुशील कुमार, रजत (कुश्ती), 2012 लंदन ओलंपिक

लंदन के हीरो:-
सुशील कुमार, रजत (कुश्ती)
विजय कुमार, रजत (शूटिंग)
गगन नारंग, कांस्य (शूटिंग)
साइना नेहवाल, कांस्य (बैडमिंटन)
मैरीकॉम, कांस्य (महिला मुक्केबाजी)
योगेश्वर दत्त, कांस्य (कुश्ती)

पुरस्कार:-
2009 : राजीव गांधी खेल रत्न
2006 : अर्जुन अवॉर्ड

पर्सनल प्रोफाइल:-
जन्म : 26 मई, 1983
जन्म स्थान : बापरौला, नजफगढ़ (दिल्ली)
पिता : दीवान सिंह
माता : कमला देवी
कुश्ती भार वर्ग : 66 किग्रा. फ्रीस्टाइल
कोच : सतपाल, यशवीर
भोजन : शाकाहारी
शिक्षा : स्पोर्ट्स मैनेजमेंट (नोएडा कॉलेज ऑफ फिजिकल एजूकेशन)

रेलवे में कार्यरत:-
सुशील फिलहाल भारतीय रेलवे में असिस्टेंट कमर्शियल मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं।
2010 कॉमनवेल्थ गेम्स की क्वींस बैटन रिले में अंतिम बैटन धारक के रूप में प्रिंस चार्ल्स को बैटन सौंपी।
सुशील कुमार 2012 में टीवी रियलिटी शो रोडीज में भी नजर आए थे।
18 साल की उम्र में स्टेट चैंपियन बने।

पहलवानी की प्रेरणा:-
सुशील पहलवान रह चुके पिता और भाई संदीप की प्रेरणा से बने पहलवान। मगर परिवार की आर्थिक स्थितियों के चलते संदीप को कुश्ती छोड़नी पड़ी। जिसके बाद सुशील ने 14 साल की उम्र से पहलवान यशवीर और रामफल की देखरेख में छत्रसाल स्टेडियम के अखाड़े में पहलवानी शुरू कर दी। बाद में अजुर्न पुरस्कार विजेता पहलवान महाबली सतपाल उनके कोच बने।

आग में तपकर बना सोना बने सुशील:-
जिंदगी तब हर कदम पर इम्तिहान ले रही थी। न घर के आर्थिक हालात ठीक थे न पहलवानी की राह इतनी आसान। एक वक्त ऐसा भी आया जब छत्रसाल स्टेडियम में साथी पहलवानों के साथ गद्दे तक साझा करने पड़े। एक छोटे से कमरे में 20 पहलवानों के बीच रहने की नौबत भी आई। मगर न हौसला कम हुआ, न इरादे कमजोर। इन्हीं मुश्किलों के बीच कुश्ती की दुनिया पर राज करने का सपना भी मन के एक कोने में मजबूती से पलता रहा। और आज कड़ी मेहनत, समर्पण और प्रतिबद्धता का परिणाम दुनिया के सामने है।

जब पहली बार कमाया नाम :-
वर्ष 1998 में विश्व कैडेट गेम्स में स्वर्ण पदक जीतकर चर्चा में आए। 2000 में हुई एशियन जूनियर चैंपियनशिप में भी सोना जीतकर इरादे जाहिर किए।

बीजिंग में बजा डंका:-
सुशील सहित 21 में से 11 पहलवानों ने बाई मिलने के कारण 1/8 राउंड में प्रवेश किया। पहले दौर में उन्हें यूक्रेन के एंड्रिय स्टैडनिक के हाथों हार का सामना करना पड़ा। स्वर्ण, रजत की दौड़ से बाहर होने के बाद सौभाग्य से उन्हें रेपीचेज राउंड में कांस्य पर दांव लगाने का मौका मिल गया। इसके बाद लगातार तीन रेपीचेज मुकाबले जीतकर उन्होंने इतिहास रच दिया। बाद में सुशील ने खुलासा किया था कि 70 मिनट के अंदर 3 मुकाबले लड़ने के दौरान उनके लिए कोई मालिशिया भी नहीं था। तब टीम मैनेजर करतार सिंह ने उनके लिए यह भूमिका निभाई थी।

सुशील की जीत का राज:-
कड़ी मेहनत और मजबूती अहम है, लेकिन दिमाग को सकारात्मक बनाए रखना उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। मैं लंदन ओलंपिक में आशानुरूप परिणाम के लिए खुद को शांत और सहज रखने की कोशिश कर रहा हूं। इसके लिए मैं मेडीटेशन का सहारा ले रहा हूं।
— सुशील (लंदन ओलंपिक से पहले वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिया साक्षात्कार)

सिल्वर तक का सफर:-
पहला दौर : बाई मिली
प्री क्वार्टर फाइनल : बीजिंग ओलंपिक चैंपियन तुर्की के रमाजान को 3-1 से दी मात
क्वार्टर फाइनल : उजबेकिस्तान के इख्तियार को 3-1 से धूल चटाई
सेमीफाइनल : कजाखिस्तान के अजुरेख को 3-1 से हराया
फाइनल : जापान के सुहिरो योनेमित्सु से 1-3 से मात मिली।

सुशील की शादी:-
18 फरवरी 2011 को अपने कोच महाबली सतपाल की बेटी सावी के साथ विवाह बंधन में बंधे।

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