यह फर्क है हिंदू और मुसलमान में

इन दिनों दो फिल्मों को लेकर हंगामा मचा हुआ है। एक ओर जहां मुसलमान जमात अमरीका में बनी इस्लाम विरोधी फिल्म दी इनोसेंस ऑफ मुस्लिम को लेकर आग बबूला है तो हिंदूओं में देवी-देवताओं व धार्मिक रस्मों के अपमान को लेकर फिल्म ओ माई गॉड को ले कर रोष है। अजमेर में दोनों फिल्मों को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए, मगर उसमें बड़ा भारी अंतर था। मुस्लिम जमात ने जहां हजारों की तादाद में एकत्रित हो कर विरोध प्रदर्शन किया व मौन जुलूस निकाला, वहीं हिंदू संगठनों की ओर से कलेक्ट्रेट पर आयोजित विरोध प्रदर्शन में चंद कार्यकर्ता ही जुट पाए।
गौरतलब बात ये है कि इस्लाम विरोधी फिल्म का सीधे तौर पर भारत से कोई वास्ता नहीं है, न ही वह भारत में लगी हुई है तथा उसे इक्का-दुक्का लोगों ने इंटरनेट पर देखा है, इसके बावजूद गुस्सा सातवें आसमान पर है, जबकि हिंदू विरोधी फिल्म अजमेर में ही लगी हुई है और उसे अनेक लोग देख भी चुके हैं, मगर विरोध एक रस्म अदायगी जैसा दिखाई दिया। विरोध प्रदर्शन में बड़े भारी अंतर की वजह कदाचित यह भी हो सकती है कि मुसलमानों ने पूरी तैयारी के साथ गुस्से का इजहार किया हो और हिंदुओं ने बिना तैयारी के औपचारिकता पूरी कर दी हो, मगर इससे अपने-अपने धर्म के प्रति समर्पण और शिद्दत का अंतर तो साफ दिखाई देता ही है। भले ही मुसलमानों के कड़े विरोध को कट्टरवाद की संज्ञा दी जाए, मगर इससे उनके अपने मुद्दे को लेकर एकता का जज्बा उजागर होता है, जबकि हिंदुओं में उदारता के नाम पर एकता में शिथिलता नजर आती है। और यही शिथिलता हिंदुओं को यह नारा देकर जागृत करने को मजबूर करती है कि गर्व से कहो हम हिंदू हैं, जबकि यह गर्व स्वाभाविक रूप से होना चाहिए।

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