मीडिया ही खड़ा कर रहा है केजरीवाल का हौवा

व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों को भले ही जयप्रकाश नारायण सरीखे महानायक नजर आते हों, मगर सच ये है कि जितना उनमें दमखम है नहीं, उससे कहीं अधिक बढ़ा-चढ़ा कर मीडिया दिखा रहा है। एक छोटे से उदाहरण से समझा जा सकता है कि समाज को दिशा देने के दायित्व बोध से ग्रसित मीडिया कर्मी किस प्रकार की हरकतें करते हैं।
हाल ही एक अखबार में एक समाचार पर लगी हैडिंग को देखिए-गुजरात चुनाव में नहीं दिखेगा टीम केजरीवाल का जादू। असल में समाचार महज इतना ही था कि केजरीवाल की टीम गुजरात चुनाव में कोई भूमिका नहीं निभाएगी। यह बयान दिया था कि टीम केजरीवाल के प्रमुख सहयोगी प्रशांत भूषण ने, जो कि जयपुर में न्यायिक सुधार विषय पर थिंक टैंक कॉनक्लेव में हिस्सा लेने आए थे। दिल्ली चुनाव में जरूर हिस्सा लेने के संकेत उन्होंने दिए। बाकी की सारी खबर थी कॉनक्लेव के बारे में। अब आप ही अंदाजा लगाइये कि आखिर खेल क्या हो रहा है। एक सामान्य की जानकारी को भी किस तरह से एक हैंडिंग के जरिए संबंधित संपादक ने सनसनीखेज बना दिया। जादू शब्द का उसने ऐसे इस्तेमाल किया मानो केजरीवाल कोई बहुत बड़े जादूगर हैं। वे डंडा घुमाएंगे और न जाने क्या हो जाएगा? हैडिंग से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अगर खुद केजरीवाल चाहते तो गुजरात में भी जादू दिखा सकते थे, मगर फिलहाल उनका मूड नहीं है। भई वाह, अगर ऐसी ही मानसिकता के पत्रकार रहे तो वो दिन दूर नहीं, जब केजरीवाल औंधे मुंह गिरेंगे। कदाचित संबंधित संपादक का मकसद हैडिंग को रुचिकर बनाना रहा हो, जैसा कि आजकल चलन हो गया है, मगर इससे खबर के वजन और अहमियत के साथ कितना बड़ा अन्याय और मजाक हो जाता है, उसे ख्याल ही नहीं रहा।

error: Content is protected !!