गहलोत सरकार ने ऐसे की नसीम अख्तर की दुर्गति

प्रदेश के राजनीतिक हलकों में एक कानाफूसी चलती रहती है कि अशोक गहलोत की सरकार में अफसरशाही हावी है और मंत्रियों, विधायकों व जनप्रतिनिधियों की बिलकुल नहीं चलती। गहलोत अफसरों की सलाह पर ही काम करते हैं और अफसर गहलोत की शह पर मनमर्जी करते हैं। इस किस्म के आरोप कांग्रेस विधायक व कार्यकर्ता भी लगाते रहे हैं। इसकी हाल ही पुष्टि हो गई।
हुआ यूं कि एक ओर तो पुष्कर की विधायक व शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ ने जिस दिन पुष्कर मेले की व्यवस्थाओं के लिए एक करोड़ रुपए की मांग का बयान जारी किया और दूसरी और उसी दिन सरकार के मुख्य सचिव सी के मैथ्यू ने एक बैठक में सवा करोड़ रुपए देने की घोषणा कर दी। है न उलटी पुलटी बात। यानि कि सरकार के मंत्रियों व अफसरों के बीच कोई तालमेल है ही नहीं। अफसर अपने स्तर पर जो भी निर्णय करते हैं, उसकी जानकारी संबंधित विधायक व मंत्री तक को नहीं देते। मंत्रियों व विधायकों को भी अखबारों के जरिए पता लगता है कि क्या निर्णय हुआ है। यदि मैथ्यू श्रीमती इंसाफ को बैठक के निर्णय की जानकारी दे देते तो उन्हें मांग वाला बयान जारी करने की जरूरत ही नहीं पड़ती। इससे उनकी कितनी फजीहत हुई है, ये तो वे ही समझ सकती हैं। उलटा होना ये चाहिए था कि मैथ्यू को श्रीमती इंसाफ को जानकारी देनी चाहिए थी कि उनके विधानसभा क्षेत्र के लिए सवा करोड़ रुपए मंजूर किए जा रहे हैं, चाहें तो आम जनता की जानकारी के लिए बयान जारी कर दें। अगर ऐसा करते तो श्रीमती इंसाफ की इज्जत अफजाई होती, साथ ही सरकार की भी प्रतिष्ठा बढ़ती। मगर ऐसा प्रतीत होता है कि गहलोत के रवैये के कारण अफसर इतने हावी हैं कि वे जनप्रतिनिधियों की इज्जत की परवाह ही नहीं करते। या फिर वे जताना चाहते हैं कि असली सरकार तो वे ही हैं, ये मंत्री तो आते जाते हैं। कदाचित ऐसा भी हो सकता है कि श्रीमती नसीम का पता लग गया हो कि पुष्कर के लिए राशि मंजूर होने वाली है, इस कारण पहले ही मांग का बयान जारी कर दिया, मगर अफसर उनसे भी तेज निकले। उन्होंने उसी दिन राशि जारी कर दी, जिस दिन मांग वाला बयान छपा।
वैसे एक बात है। आम तौर पर कहा जाता है कि भाजपाइयों को सरकार चलाना नहीं आता, इस कारण अफसरी हावी रहते हैं, जबकि कांग्रेसी सरकार चलाने में माहिर होते हैं, इस कारण अफसर दब कर चलते हैं। मगर ताजा प्रकरण में तो यह धारणा भंग होती है। हो भी क्यों न, जब खुद गहलोत ने ही अफसरों को सिर पर चढ़ा रखा हो तो ऐसा ही होगा। कहावत है न साहब मेहरबान तो मातहत पहलवान।

error: Content is protected !!