टिकट तो अपना ही फाईनल हैं….

पीयूष राठी
केकड़ी (पीयूष राठी)*
राजस्थान में विधानसभा चुनावों में अब महज 5 से 6 माह का वक्त बचा हैं,विधानसभा चुनावों को लेकर सरगर्मी अभी से दिखाई देने लगी हैं। क्षेत्र में विधानसभा चुनावों में जहां कांग्रेस और भाजपा में आमने सामने की टक्कर होना तय हैं,वहीं दोनों पार्टियों से टिकट के दावेदारों के नाम भी अब सामने आना शुरू हो गये हैं। जहां कांग्रेस में टिकट के दावेदारों की कोई लंबी सूची दिखाई नहीं दे रही,वहीं भाजपा की तरफ से तो मानों दावेदारों की पूरी बारात ही निकल पड़ी हैं। इस बारात में दूल्हा (विधायक) बनने के सपने छुटभय्या नेताओं से लेकर नये-नये कथित समाजसेवी बनें लोग संजोये बैठे हैं और इस सपनों को पंख लगा रहे हैं उनके वे समर्थक जिन्हे राजनीति की एबीसीडी तक नहीं पता,मगर ये समर्थक अपने आकाओं को विधायकी का ख्वाब ऐसे दिखा रहे हैं जैसे थाली में लड्डू पड़ा हो,जिसे सिर्फ उठा कर गप्प करना हो। भाजपा में टिकट के दावेदारों की यह फहरिस्त लगातार बढ़ती जा रही हैं और इस फहरिस्त में जुड़ने वाला हर एक नेता अपने कार्यकर्ताओं को बड़े कॉन्फिडेंस के साथ कह रहा हैं कि ‘‘भाई टिकट तो अपना ही फाईनल हैं’’… अब न जाने इन नेताओं में यह कॉन्फिडेंस कहां से आ रहा हैं,मगर हां जिस तरह ये नेता अपना-अपना टिकट फाईनल बता रहे हैं,उससे तो लग रहा हैं कि इस बार केकड़ी विधानसभा क्षेत्र में विधायक का टिकट वार्डवार मिलेगा और हर वार्ड का अलग-अलग विधायक बनेगा। बकायदा इन नेताओं ने तो अपने-अपने घरों और कार्यालयों में अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकों का दौर भी शुरू कर दिया हैं और कार्यकर्ताओं को बड़ी गर्मजोशी के साथ वे अपने आप को अगला विधायक बताते हुए उन्हे अपने पक्ष में करने के प्रयास कर रहे हैं। कार्यकर्ता भी बड़े होशियार हैं उन्हे कभी इस नेता का तो कभी उस नेता का बुलावा आता हैं तो वे भी सभी जगह पंगत में शरीक होने पहुंच जाते हैं और जहां जाते हैं वहीं की गाना शुरू कर देते हैं,जिस नेता का बुलावा होता हैं उसी का ऐसा गुणगान करते हैं मानों उन जैसा नेता तो अब तक केकड़ी को मिला ही न हों। कार्यकर्ताओं के इस थोथे गुणगान से इन नेताओं के सपनों को ओर पंख लग जाते हैं और वे उसी क्षण हवा में उड़ने लग जाते हैं। अपना टिकट फाईनल बताने वाले इन नेताओं में कुछ नाम तो ऐसे भी हैं जिनका राजनीति से कभी सरोकार ही नहीं रहा,मगर चुनाव आते ही ये कहां से उड़ कर केकड़ी आ पहुंचे यह तो समझ से परे हैं।
बहरहाल राजनैतिक पण्डितों की मानें तो ये सभी वे बरसाती मेंढक हैं जो बरसात का मौसम आते ही गुटर गू करने निकल आये हैं,ज्यूं ही बरसात गई ये फिर से गायब हो जायेंगे,इनका कोई लंबा फलसफा नहीं होगा। उनका तो मानना हैं कि वर्तमान में पद पर आसीन पण्डित जी का तिलिस्म ऐसा हैं कि ये बरसाती मेंढक टिकट की दौड़ में उनके आस-पास तक दिखाई नहीं देंगे। भले ही वर्तमान परिस्थितियां पण्डित जी के प्रतिकूल हैं मगर इन्हे जुगाड़ का बादशाह यूं ही नहीं कहा जाता,समय आते-आते ये फिर से अपने हवाईजहाज में सवार हो जायेंगे और निकल पड़ेंगें उड़ान पर। अभी जो इनके साथ इन्ही के हवाईजहाज में बैठ कर इन्हे धकेल कर खुद विधायक बनने की गलतफहमी पाल बैठे हैं,सबसे पहले उन्हे ही ये महाराज ऐसी पटखनी देकर पटकेंगे कि वो न तो हवा में रहेगा न जमीन पर आकर गिरेगा। खैर सपने देखने का हक तो सभी को हैं अब किसके सपने सच होते हैं और कौन भाजपा का टिकट लेकर केकड़ी के इस चुनावी संग्राम में योद्धा बन कर आता हैं यह आने वाला वक्त ही बतायेगा।

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