नई दिल्ली / तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी और अन्ना हजारे के बीच की तल्खी खुलकर सामने आ गई है। दिल्ली के रामलीला मैदान में ममता की रैली में शामिल नहीं होने के बाद अन्ना ने शुक्रवार को सार्वजनिक तौर पर एलान किया कि अब वह ममता से कोई रिश्ता नहीं रखेंगे। अन्ना ने कहा कि उन्हें धोखा दिया गया। हालांकि ममता बनर्जी ने इस मसले पर बोलने से इनकार कर दिया और कहा कि वह अन्ना से मुलाकात करेंगी और फिर कुछ प्रतिक्रिया देंगी।
अन्ना ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि उन्होंने ममता या उनकी पार्टी को समर्थन नहीं दिया था, बल्कि उन्होंने तो ममता के विचारों को समर्थन दिया था। अन्ना ने अपने करीबी और पत्रकार संतोष भारतीय पर भी निशाना साधा। उन्होंने संतोष पर धोखा देने का आरोप लगाया। अन्ना ने रामलीला मैदान में ममता की रैली में नहीं जाने की वजह भी बताई। उन्होंने कहा, रैली में लोग नहीं आए थे, भीड़ नहीं थी, इसलिए मैं नहीं गया। अन्ना ने हालांकि यह भी कहा कि बीमार आदमी रैली में कैसे जा सकता है।
अन्ना ने कहा, ‘दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई रैली के बारे में उन्हें बताया गया था कि इसे तृणमूल कांग्रेस आयोजित कर रही है लेकिन ममता को बताया गया कि अन्ना रैली कर रहे हैं। भला मैं क्यों रैली करूंगा? रैली में 11 बजे का समय तय किया गया था लेकिन मैंने 11 बजे, फिर 12 बजे फोन कर पता किया तो मालूम हुआ कि केवल दो ढ़ाई हजार लोग ही पहुंचे हैं। जिस रामलीला मैदान में हजारों लोग जमा होते थे वहां इतने कम लोग पहुंचे तो मुझे लगा कि जरूर कुछ गड़बड़ है।’
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यह अच्छी बात है,पर अन्ना शायद इस गलत फहमी में है कि वे प्रभाव से किसी उम्मीदवार की जीत को निश्चित कर सकते है वह समय अब नहीं रहा जब अन्ना ने सब को अपने आंदोलन के आकर्षण से लोगों के मानस में अपना स्थान बना लिया था पर कुछ अन्ना के आंदोलन में अवसरवादियों के घुस जाने से वह बात नहीं रही बाद के आंदोलन व धरने में जनता की उपस्थिति ने इस बात को साफ़ कर भी दिया। होता यह कि वे पहले एक मुद्दे पर चल उसे हासिल करते पर इन घुसे लोगों ने उनकी सोच को बदल डाला और वे कभी कुछ और कभी कुछ बोलने लगे अपनी ही कही बात पर बाद में दूसरा बयां दे देना या तो उनकी गतिविधियों पर उम्र के असर को इंगित करता है या फिर उन लोगों के द्वारा गुमराह किये जाने का। केजरीवाल जैसे कई लोग उनके सीधे पन का लाभ उठा चुके है इसलिए जनता में भी अब वह प्रभाव नहीं रहा जो पहले था अन्ना की कोई राजनितिक विचारधारा भी नहीं और न राष्ट्रव्यापी समस्याओं पर कोई विज़न वे तो यदि आंदोलन तक ही सीमित रहे तो ही ठीक है नहीं तो अब जो थोड़ी बची खुची प्रतिस्ठा खो बैठेंगे