गुजरात लोकायुक्त जांच की खबर यदि किसी पत्रकार ने छापी तो उसे दो साल तक की जेल हो सकती है। विधानसभा में पारित हो चुके गुजरात लोकायुक्त आयोग विधेयक 2013 में अब यह प्रावधान है। लोकायुक्त कानून के इस प्रावधान के तहत जांच के दौरान इससे जुड़ी कोई भी जानकारी मीडिया को साझा नहीं की जा सकेगी। अगर किसी पत्रकार ने जांच की खबर छाप दी तो उसे जेल होगी। लोकायुक्त की जांच के दायरे में प्रदेश सरकार के मंत्रियों के साथ-साथ मुख्यमंत्री को भी लाया गया है। इसके अलावा वे सभी कर्मचारी इसके दायरे में होंगे, जिन्हें सरकारी खजाने से वेतन मिलता है।
सरकार के अधिकार :
नए कानून के तहत सरकार को ये अधिकार है कि जनहित को ध्यान में रखते हुए वह किसी भी सरकारी कर्मचारी या नेता को लोकायुक्त की जांच के दायरे से बाहर रख सकती है। जांच में दोषी पाए गए किसी कर्मचारी-अधिकारी के खिलाफ अगर विभाग कार्रवाई नहीं करता है तो लोकायुक्त विभागीय जांच के आदेश दे सकता है।
ऐसे होगा चयन :
गुजरात लोकायुक्त आयोग विधेयक के अनुसार लोकायुक्त और चार उप लोकायुक्तों की नियुक्ति एक समिति करेगी, जिसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री होंगे। इसमें न्यायिक क्षेत्र के सदस्यों की संख्या अधिक होगी। चयन समिति की ओर से चुने गए नामों को मंजूरी राज्यपाल देंगे। चयन समिति की सहायता के लिए एक सर्च कमेटी का भी प्रावधान विधेयक में है। लोकायुक्त का कार्यकार 72 साल की उम्र या अधिकतम पांच साल (दोनों में से जो पहले पूरी हो) के लिए होगा। लोकायुक्त पांच साल से ज्यादा पुराने मामलों की सुनवाई नहीं कर पाएगा। लोकायुक्त विधेयक में इस बात का प्रावधान है कि शिकायत गलत पाए जाने पर शिकायतकर्ता को छह महीने की सजा और 25 हजार रुपए का जुर्माना होगा। शिकायत करने के लिए दो हजार रुपए की फीस पहले ही चुकानी पड़ेगी। हालांकि पुराने पुराने कानून में इसके लिए दो साल की सजा का प्रावधान था।
समाचार4मीडिया ब्यूरो