आगरा। 05 जून दिन रविवार को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर अखिल भारतीय लोधी राजपूत टेलीफोन डायरेक्टरी के तत्वावधान में देह्तोरा ग्राम स्थित अखिल भारतीय लोधी राजपूत टेलीफोन डायरेक्टरी कार्यालय पर पर्यावरण बचाओ गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें पर्यावरण दिवस की महत्ता बताई गई। और अखिल भारतीय लोधी राजपूत टेलीफोन डायरेक्टरी कार्यालय पर 5 पौधे लगाकर गोष्ठी का समापन किया गया।
इस अवसर पर अखिल भारतीय लोधी राजपूत टेलीफोन डायरेक्टरी के संपादक मानसिंह राजपूत एडवोकेट ने कहा कि आज जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण पृथ्वी के ऊपर से हरा आवरण लगातार घटता जा रहा है जो पर्यावरणीय असंतुलन को जन्म दे रहा है। पर्यावरणीय संतुलन के लिए वनों का संरक्षण और नदियों का विकास अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिशा में शासकीय और गैर शासकीय दोनों स्तर पर पौधरोपण और उनकी सुरक्षा तथा संरक्षण से ही अपेक्षित परिणाम मिल सकते हैं। तभी हम अपने पर्यावरण का संरक्षण कर सकते हैं।
गोष्ठी में अखिल भारतीय लोधी राजपूत टेलीफोन डायरेक्टरी के उपसंपादक ब्रहमानंद राजपूत ने कहा कि आज पर्यावरणीय असंतुलन के कारण हमारी पृथ्वी का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। इसके लिए सारी मानव जाति जिम्मेदार है जो विकास के नाम पर पेड़ पौधों, नदियों, पहाड़ों का अपने तरीके से दोहन कर रही है। आज बडे बडे देश और उनका विकसित समाज जहां प्रकृति के हर संताप से दूर इसके प्रति घोर संवेदनहीन होकर मानव जनित वो तमाम सुविधाएं उठाते हुए स्वार्थी और उपभोगी होकर जीवन बिता रहा है जो पर्यावरण के लिए घातक साबित हो रहे हैं । वहीं विकासशील देश भी विकसित बनने की होड में कुछ कुछ उसी रास्ते पर चलते हुए दिख रहे हैं। आज यदि धरती के स्वरूप को गौर से देखा जाए तो साफ पता चल जाता है कि आज नदियां , पर्वत ,समुद्र , पेड , और भूमि तक लगातार क्षरण की अवस्था में हैं। और ये भी अब सबको स्पष्ट दिख रहा है कि आज कोई भी देश , कोई भी सरकार , कोई भी समाज इनके लिए उतना गंभीर नहीं है। आज समय आ गया है कि धरती को बचाने की मुहिम को इंसान को बचाने के मिशन के रूप में बदलना होगा। आज हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना होगा और अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे और और अपनी नदियों को प्रदूषण से बचाना होगा। तभी हम अपने पर्यावरण को बचा सकते हैं। ब्रहमानंद राजपूत ने कहा कि आज विवाह, जन्मदिन, पार्टी और अन्य ऐसे समारोहों पर उपहार स्वरूप पौधों को देने की परंपरा शुरू की जाए। फिर चाहे वो पौधा, तुलसी का हो या गुलाब का, नीम का हो या गेंदे का। इससे कम से कम लोगों में पेड पौधों के प्रति एक लगाव की शुरूआत तो होगी। और लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता आएगी और ईको फ्रेंडली फैशन की भी शुरुआत होगी। और सभी शिक्षण संस्थानों, स्कूल कालेज आदि में विद्यार्थियों को, उनके प्रोजेक्ट के रूप में विद्यालय प्रांगण में, घर के आसपास, और अन्य परिसरों में पेड पौधों को लगाने का कार्य दिया जाए। यदि इन छोटे छोटे उपायों पर ही संजीदगी से काम किया जाए तो ये निःसंदेह कम से कम उन बडे-बडे अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों से ज्यादा ही परिणामदायक होगा। और इससे अपने पर्यावरण और अपनी धरती को बचाने की दिशा में एक मजबूत पहल होगी। अब सोचना छोडिये और खुद से कहिए कि चलो ज्यादा नही पर हम एक शुरुआत तो कर सकते हैं। सच पूछें तो पर्यावरण की सुरक्षा के लिए हमे कुछ ज्यादा करना भी नहीं है। सिर्फ एक पहल करनी है यानी खुद को एक मौका देना है. हमारी छोटी-छोटी, समझदारी भरी पहल पर्यावरण को बेहद साफ-सुथरा और तरो-ताजा कर सकती है।
अरबसिंह राजपूत ने कहा कि विकास की अंधी दौड़ के पीछे मानव प्रकृति का नाश करने लगा है। सब कुछ पाने की लालसा में वह प्रकृति के नियमों को तोड़ने लगा है। प्रकृति तभी तक साथ देती है, जब तक उसके नियमों के मुताबिक उससे लिया जाए। इसके लिए सबसे सरल उपाय है कि पूरी धरती को हरा भरा कर दिया जाए।
पर्यावरण बचाओ गोष्ठी में पवन राजपूत, धारा राजपूत, दुष्यंत राजपूत, मोरध्वज राजपूत, विष्णु लोधी, मुकेश लोधी, राकेश राजपूत, दीपक लोधी, लोकेन्द्र लोधी, नीतेश राजपूत, दिनेश, भूरीसिंह, जीतेन्द्र लोधी, राजवीर सिंह, राहुल लोधी आदि अपस्थित रहे।
– ब्रह्मानंद राजपूत
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