सुलग रहा कश्मीर : पटेल ने नहीं मानीं नेहरू की ये 8 सलाहें

Nehruकश्मीर घाटी एक बार फिर उबल रही है. और वहां जब-जब इस तरह के हालात बनते हैं तो सोशल मीडिया पर एक तबका पंडित जवाहरलाल नेहरू को दोष देने का कोई मौका नहीं छोड़ता. लेकिन इतिहास में वे खांचे भी बने हैं जो बताते हैं कि नेहरू कश्मीर को लेकर कितना सटीक और दूरगामी सोच रहे थे और तत्कालीन गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अगर नेहरू जी की मानी होती तो न तो कश्मीर पर कबायली हमला होता और न आज इन हालात का हम सामना करते.

कश्मीर पर कबायली हमले के एक महीने पहले 27 सितंबर 1947 को पंडित नेहरू ने सरदार पटेल को पत्र लिखकर आगाह किया लेकिन पटेल इसे अमल में नहीं ला पाए. नवजीवन प्रकाशन मंदिर के ‘सरदार पटेल चुना हुआ पत्र व्यवहार’ भाग एक में यह पत्र प्रकाशित हुए हैं. पेश हैं इसके खास अंश-

1. कश्मीर की परिस्थिति खतरनाक है और बिगड़ रही है. मुस्लिम लीग पंजाब में और उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में काफी बड़ी संख्या में कश्मीर राज्य में घुसने की तैयारी में है.

2. शीतकाल के समय कश्मीर का संबंध बाकी भारत से कट जाएगा. मैं समझता हूं कि पाकिस्तान की व्यूह रचना अभी कश्मीर में चुपके से घुस जाने की है और आगामी शीतऋतु के कारण कश्मीर कम-ज्यादा हिंदुस्तान से कट जाय तब बड़ी सैनिक कार्रवाई करने की है.

3. मुझे संदेह है कि महाराजा और उनके राज्य की सेनाएं लोक सहायता के बिना स्वयं ही इस स्थिति का सामना कर सकेंगे.

4. शेख अब्दुल्ला और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं को जेल से मुक्त कर दिया जाए, उनसे मित्रता साधने का प्रयत्न किया जाए, उनका सहयोग मांगा जाए, उसके बाद भारतीय संघ में मिलने की घोषणा की जाए. एक बार कश्मीर राज्य भारत से जुड़ जाए तो फिर पाकिस्तान के लिए भारतीय संघर्ष में आए बिना अधिकृत रूप में या अनधिकृत रूप में कश्मीर पर आक्रमण करना बहुत कठिन हो जाएगा.

5. शेख अब्दुल्ला पाकिस्तान से अलग रहने को बड़े उत्सुक हैं और सलाह-मशविरे के लिए हम पर बहुत आधार रखते हैं.

6. आज की उलझी हुई स्थिति में क्या होगा, इसकी गारंटी कोई नहीं ले सकता. परंतु मैंने जो रास्ता सुझाया है, वह मुझे ज्यादा से ज्यादा समझदारी भरा लगता है और उसका कोई परिणाम निकलने की ज्यादा से ज्यादा संभावना है. परंतु महत्व की बात यह है कि इसमें विलंब नहीं होना चाहिए. इसमें समय के महत्व को भुलाया नहीं जा सकता, अगर विलंब किया गया तो शीतकाल के आगमन से हम कश्मीर से पूरी तरह कट जाएंगे.

7. आपकी सलाह स्वाभाविक रूप से महाराज पर काफी असर डालेगी. मुझे आशा है कि आप इस मामले में कोई ऐसा कदम उठाएंगे, जिससे घटनाओं की गति बढ़े और वे सही दिशा में मोड़ लें. नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ सही व्यवहार किया जाए, तो वह हमारे लिए बड़े लाभ की साबित हो सकती है. इस लाभ को खोना बड़ा दुखद होगा. शेख अब्दुल्ला ने बार-बार इस बात का आश्वासन दिया है कि वे सहयोग करना चाहते हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि वे मेरी सलाह के अनुसार काम करेंगे.

8. मैं एक बार और कहूंगा कि इस मामले में समय का बहुत बड़ा महत्व है और सब बातें इस ढंग से की जानी चाहिए कि शेख अब्दुल्ला के सहयोग से काश्मीर जल्दी से जल्दी भारतीय संघ में जुड़ जाए. लेकिन सरदार समय रहते नेहरू की सलाह पर अमल नहीं कर पाए और अक्तूबर 1947 के आखिर हफ्ते में कश्मीर पर कबायली हमला हो गया.

पीयूष बबेले

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