गणेशोत्सव पर नहीं मिल रहे पंडितजी

गणेशोत्सव शुरू है, लेकिन नियमित के धार्मिक कर्मकांड के लिए पुजारियों की कमी हो गई है। गणेश चतुर्थी पर पंडितों की कमी के चलते कई जगह लोगों ने खुद ही पुस्तकें पढ़कर या ऑडियो-विडियो सीडी आदि सुनकर किसी प्रकार गणपति प्रतिमा प्रतिष्ठित की। कई जगह तो लोगों ने अपने घर आए मेहमानों से ही कर्मकांड कराया। कुछ जगहों पर देखा गया कि किसी अन्य के यहां धार्मिक अनुष्ठान कराने जा रहे पंडितों को रास्ते में लोगों ने पकड़ना शुरू कर दिया। धार्मिक कर्मकांड से जुडे़ लोगों के अनुसार यह हर साल की समस्या हो गई है।

गणेश चतुर्थी के साथ ही मुंबई महानगर और आसपास पुजारियों की मांग बढ़ जाती है। गणेशोत्सव के दौरान महानगर में करीब तीन लाख से अधिक गणपति प्रतिमाएं स्थापित हैं, जिनकी पूजा के लिए बमुश्किल 3,000 पुजारी उपलब्ध हैं, जिन पर प्राण प्रतिष्ठा से लेकर पूरे 10 दिनों का धार्मिक कर्मकांड संपन्न कराने का जिम्मा है। सूत्रों के मुताबिक गणेशोत्सव के लिए पुजारी काफी पहले अनुबंधित हो जाते हैं, मांग के लिहाज से दक्षिणा भी महंगी हो गई है।

बड़े गणेशोत्सव मंडलों के पास तो पुजारियों का अपना पूर्णकालिक दल है, लेकिन छोटे मंडलों, हाउजिंग सोसायटियों, तमाम परिवारों और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के पास प्राण प्रतिष्ठा की महत्वपूर्ण पूजा कराने के लिए कोई पुजारी उपलब्ध नहीं हो पाता। ऐसे में, जो लोग पेशेवर पुजारियों की सेवाएं नहीं हासिल कर पाते, वे पुस्तकें पढ़कर या ऑडियो-विडियो सीडी सुनकर लगभग दो घंटे लंबी पूजा स्वयं संपन्न कराते हैं। समस्या को बढ़ता देख कुछ संगठन पुजारियों की फौज तैयार करने की दिशा में काम कर रहे हैं। एक संगठन ने युवा (स्टूडेंट्स) ब्राह्मणों को गणेशोत्सव में धार्मिक कर्मकांड संपन्न कराने के लिए प्रशिक्षित किया है।

संगठन से जुड़े लोगों का कहना है कि पुजारियों की किल्लत को देखते हुए संस्था ने कर्मकांड कराने ब्राह्मणों की नई फौज तैयार करने की मुहिम पिछले साल काला चौकी से शुरू की। स्थानीय स्कूलों से संपर्क कर योग्य प्रशिक्षु खंगाले गए, जो 13 से 16 वर्ष तक के हैं, इनमें ज्यादातर लड़कियां हैं। सूत्रों ने ज्यादातर मराठी भाषी विद्यार्थी 8वीं से 10वीं तक की कक्षाओं में वैकल्पिक विषय के रूप में संस्कृत लेते हैं, जिससे उन्हें पूजा पाठ्यक्रम सिखाना आसाना है। संस्था की कोशिश साल दर साल सैकड़ों की संख्या में युवा ब्राह्मणों को प्रशिक्षित करने की है, ताकि आने वाले सालों में स्थापना, पूजा एवं अन्य कर्मकांड की समस्या से निजात मिल सके।

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