रुपये को फिर से फूटी कौड़ी में बदल देगा, आपका वोट न डालना

मध्यप्रदेश : यूं तो भारतीय मुद्रा का इतिहास अपने आप में ख़ासा पुराना है, लेकिन इसके रोचक होने के भी कई तथ्य मौजूद हैं। मुग़ल शासकों के समय शुरू हुई इसकी कहानी में वक्त के साथ कई नए पन्ने जुड़ते गए। मसलन प्राचीन भारतीय मुद्रा में सबसे पहले फूटी कौड़ी का आना हुआ, जिसका इस्तेमाल आज हम कहावतों के तौर पर किसी को ठेंगा दिखाने के लिए करते हैं। इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए हमारी फूटी कौड़ी, कौड़ी में तब्दील हो गई। थोड़े दिन और बहुरे तो कौड़ी से दमड़ी, फिर दमड़ी से धेला, धेला से पाई, पाई से पैसा, पैसा से आना और फिर अंत में आना से रुपया का जन्म हुआ। अब सोचने वाले सोच रहे होंगे कि दशकों पहले बंद हो चुकी कौड़ी-दमड़ी जैसी मुद्राओं का चुनाव या मतदान से क्या लेना देना..! तो यहां इसकी जरुरत को समझने के लिए आपको अधिक दिमाग खर्च करने की जरुरत नहीं हैं, बस इतना समझ लीजिए कि अगर किसी के पास 256 दमड़ी होती थी तो वह 192 पाई के बराबर होती थी। इसी तरह 128 धेला 64 पैसे व 16 आना 1 रुपए के बराबर होता था। वहीं 3 फूटी कौड़ी 1 कौड़ी, 10 कौड़ी 1 दमड़ी, 2 दमड़ी 1 धेला व डेढ़ पाई 1 धेला, 3 पाई 1 पैसा पुराना तथा 4 पैसा 1 आना होता था। उसके बाद 1, 2, 3, 5, 10, 20, 25, 50 पैसे, 1 रुपया तथा 2, 5, 10 रुपए का सिक्का भारतीय मुद्रा में शामिल किया गया।

अतुल मलिकराम द्वारा कही गई उपरोक्त सारी कथा का सार बस इतना है कि, डॉलर के ऊंचे होते दामों के सामने घुटने टेक चुके रूपये को लेकर, छाती पीटने वाले भारतीयों को यदि 21वीं शताब्दी में भी अपने मताधिकार के महत्व का अंदाजा नहीं है, तो फिर उन्हें पेट्रोल-डीजल, महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी जैसे तमाम मुद्दों पर सरकार को कोसने का भी कोई अधिकार नहीं हैं। अंग्रेजी में एक कहावत है ’हिस्ट्री रिपीट्स इटसेल्फ’ माने इतिहास खुद को दोहराता हैं। यदि भारतीय मतदाता आज भी मतदान के लिए मिली छुट्टी पर अपने वोट का इस्तेमाल करने के बजाए, बाहर पिकनिक मनाने को अधिक महत्व देता है, तो फिर भले बन्दर से मनुष्य बना इंसान दोबारा बन्दर न बन पाए लेकिन फूटी कौड़ी से बना रुपया, एक बार फिर फूटी कौड़ी में जरूर तब्दील हो जाएगा। यदि आप अपने वोट का इस्तेमाल नहीं करेंगे, तो फिर उसी विचारधारा, नीतियों और योजनाओं का सामना करना पड़ेगा, जिनसे दुखी हो आप रोज सुबह भगवान का नाम लेने के बजाए अख़बार या न्यूज़ चैनल्स की ख़बरों को कोसने का काम करते हैं। लिहाजा जरूरी है कि हर आम और ख़ास इंसान मतदान के रोज अपने-अपने घरों से बाहर निकले और अपने मत का इस्तेमाल कर, खुद के लिए एक बेहतर नेतृत्वकर्ता का चुनाव करे। इसके दो मुख्य फायदे होंगे, पहला तो आपके पास किसी अन्य व्यक्ति को कोसने का मौका नहीं होगा और आप खुद को कभी कोसेंगे नहीं। दूसरा ये कि यदि आपने जाने-अनजाने अपने लिए किसी अच्छे प्रतिनिधि का चुनाव कर लिया तो आपकी आधी समस्याएं ऐसे ही समाप्त हो जाएंगी, क्योंकि आधी समस्याएं तो आपने अपने लिए खुद ही खड़ी की होंगी।
यदि आपको अब भी कौड़ी-दमड़ी और चुनाव-मतदान के बीच समानता का गणित समझ नहीं आया हैं तो कोई बात नहीं, आप यहां दी गई कुछ कहावतों का मजा लीजिए और छुट्टियों की तैयारी, अभी से शुरू कर दीजिए। प्राचीन भारतीय मुद्रा ने हमारी बोलचाल की भाषा में कहावतों का रूप ले लिया है। जैसे अगर घर में किसी सदस्य को कुछ नहीं देना होता है, तब कहते हैं ‘एक फूटी कौड़ी नहीं दूंगा, धेले का काम नहीं करता, चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए, पाई-पाई का हिसाब लूंगा, सोलह आने सच’ आदि आदि…

अतुल मलिकराम,
फाउंडर, पीआर 24×7

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