सरकार के एलपीजी कोटा बढ़ाने के एलान पर चुनाव आयोग नाराज

गुजरात में मतदान के पहले चरण के लिए चुनाव प्रचार की अवधि खत्म होते ही केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली ने एलान कर दिया सरकार सब्सिडी वाले सिलेंडरों की संख्या बढ़ाने के लिए तैयार है। लेकिन चंद मिनटों बाद ही अप्रत्याशित रूप से सक्रिय होते हुए चुनाव आयोग ने इसे आचार संहिता का उल्लंघन करार दिया और साथ ही इस फैसले को लागू नहीं करने का निर्देश जारी कर दिया।

सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडरों का कोटा बढ़ाने को लेकर सरकार ने अपने पत्ते तो खोल दिए लेकिन यह मामला चुनाव आचार संहिता में फंस गया है। मंगलवार को सीआइआइ के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली ने संवाददाताओं से बातचीत में सब्सिडी वाले सिलेंडर की संख्या छह से नौ करने की सरकार की तैयारी की घोषणा की। मोइली ने कहा कि इस बारे में वित्त मंत्री पी चिदंबरम से भी दो बार बातचीत हो चुकी है। मुद्दा इस फैसले को लागू करने से सरकार पर बढ़ने वाले आर्थिक दबाव को लेकर है। इससे सरकार पर नौ हजार करोड़ रुपये का सालाना बोझ पड़ेगा। अतिरिक्त वित्तीय बोझ को कम करने के लिए वित्त मंत्रालय और पेट्रोलियम मंत्रालय के बीच कुछ अतिरिक्त फार्मूले को लेकर भी विचार-विमर्श हो रहा है। ‘दैनिक जागरण’ ने एक महीने पहले ही यह खबर प्रकाशित की थी कि गुजरात चुनाव के ठीक पहले सरकार की तरफ से ऐसा एलान हो सकता है।

बहरहाल, मोइली के बयान के कुछ ही देर बाद चुनाव आयोग ने आपात बैठक की। मुख्य चुनाव आयुक्त वीएस संपत की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस कदम को रोकने के लिए पेट्रोलियम मंत्रालय को पत्र भेजने का फैसला किया गया। बता दें कि गुजरात में 13 दिसंबर को पहले चरण का चुनाव है और यहां आचार संहिता लागू है। पत्र में पेट्रोलियम मंत्री से उनके बयान पर स्पष्टीकरण मांगने के साथ कहा गया है कि सब्सिडी वाले सिलेंडर पर किसी भी तरह फैसले को तुरंत रोका जाए। बताते चलें कि सरकार ने सितंबर, 2012 में सब्सिडी वाले सिलेंडर की संख्या छह कर दी थी। एक साल में इससे ज्यादा सिलेंडर के लिए ग्राहकों को पूरी कीमत अदा करनी होगी। दिल्ली में सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर की कीमत 410 रुपये है जबकि गैर-सब्सिडी वाले घरेलू गैस सिलेंडर 931 रुपये है।

पिछले एक वर्ष में सरकार की यह तीसरी घोषणा है, जिस पर चुनाव आयोग ने रोक लगाई है। पिछले हफ्ते नकद सब्सिडी ट्रांसफर योजना को लेकर आयोग अपने गुस्से का इजहार कर चुका है। इससे पहले उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के दौरान भी सरकार ने अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने की घोषणा की थी, जिस पर चुनाव आयोग ने रोक लगा दी थी।

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