माइक्रोसॉफ्ट एज्योर से पावर्ड, रेस्पायरर लिविंग साइंसेज भारत में हवा की क्वॉलिटी पर निगरानी का काम आसान बना रहा है

हवा की क्वॉलिटी के बारे में जनजागरूकता फैलाने में मदद करने के लिए, क्लाइमेट टेक स्टार्टअप रेस्पायरर लिविंग साइंसेज ने एक डैशबोर्ड विकसित किया है। यह डैशबोर्ड बहुत कम समय में हवा की क्वॉलिटी और उसमें मौजूद प्रदूषण संबंधी आंकड़ो तक पहुंच उपलब्ध कराता है। माइक्रोसॉफ्ट एज्योर द्वारा पावर्ड, डैशबोर्ड डेटा का इस्तेमाल हवा में प्रदूषण पर नियंत्रण रखने के संबंध में नागरिकों और नीति निर्माताओं के समाधान दर्ज करने के लिए किया जा सकता है।

लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाने के उद्देश्य से, रेस्पायरर की टीम ने कई मानदंडों पर मूल्यांकन किया। इसमें हवा की गुणवत्ता भी एक मानक था। स्टार्टअप ने महसूस किया कि लोगों की दिलचस्पी अपने आसपास के माहौल की हवा की क्वॉलिटी को जानने में थी। हालांकि, हवा की क्वॉलिटी पर निगरानी रखने वाले सोल्यूशंस लगाना काफी महंगा था। इस स्थिति ने रेस्पायरर को सेंसर्स और आईओटी का इस्तेमाल करते हुए हवा की गुणवत्ता पर निगरानी रखने के लिए अफोर्डेबल प्लेटफॉर्म विकसित करने के लिए प्रेरित किया। हालांकि सेंसर्स कई बार खराब हो जाते थे। इसमें गैरजरूरी डाटा तथा शोर रेकॉर्ड होता था, जिससे कभी-कभी गलतियां हो जाती थीं।

हवा की क्वॉलिटी के आंकड़ों पर निगरानी रखने में पूर्ण रूप से सटीक होने के लिए रेस्पायरर ने माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च (एमएसआर) इंडिया के Cसेंटर फॉर सोसाईटल इम्‍पैक्‍ट थ्रू क्‍लाउड एंड आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एससीएआई) के साथ समझौता किया। प्रोग्राम के पहले समूह में शामिल चार संगठनों में स्टार्टअप भी एक है। एमएसआर ने उन्हें अपने प्लेटफॉर्म में गलती का पता लगाने वाली तकनीक एकीकृत करने में सक्षम बनाया। रेस्पायरर प्लेटफॉर्म डिपेंडेबल आईओटी नाम की तकनीक का भी इस्तेमाल करते हैं। इसे एमएसआर के शोधकर्ताओं ने विकसित किया है। यह आईओटी डिवाइसेज के अच्छी हालत में होने या न होने की भी निगरानी करते हैं। इसके लिए इन डिवाइसेज की बैटरी परफॉर्मेंस का फिंगरप्रिंट लिया जाता है।

रेस्पायरर ने मशीन लर्निंग और डेटा विजुअलाइजेशन का इस्तेमाल कर पावर बीआई से लैस यह डैश बोर्ड बनाया है। नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम ट्रैकर के हिस्से के रूप में हवा की क्वॉलिटी पर निगरानी रखने वाले 240 सरकारी मॉनिटर्स के डेटा का अध्ययन करने के लिए यह डैशबोर्ड बनाया गया। पावर बीआई डेटाबोर्ड एज्योर एसओएल सर्वे से डेटा भेजने में सक्षम हैं, जिससे प्रोसेंसिंग तेज रफ्तार से और बिना किसी रुकावट के होती है। सबसे जरूरी बात यह है कि रेस्पायरर की टीम बहुत ही कम समय में और बहुत छोटी डिवेलपमेंट टीम के साथ सभी कार्य करने में सक्षम बनती है। इससे सरकारी अधिकारी भी यह निगरानी कर सकते हैं कि उनका कोई मॉनिटिरिंग स्टेशन ऑफ लाइन तो नहीं हो गया है और उसे बहुत ही कम समय में रिपेयर करने में सक्षम बनाते हैं।

रेस्पायरर लिविंग साइंसेज के संस्थापक श्री रौनक सुतारिया ने कहा, “हवा की क्वॉलिटी की लगातार निगरानी करने के लिए अकेले दिल्ली और उसके आसपास 240 स्टेशन बनाए गए हैं। इसलिए इसमें किसी को हैरत नहीं होनी चाहिए कि यह शहर वायु प्रदूषण पर होने वाली किसी भी चर्चा में आगे रहता है। उन जगहों पर जहां डेटा मौजूद भी है, को डेटाबेस में स्टोर किया गया है, जिससे कई लोग नियमित रूप से इसे ट्रैक नहीं कर पाते या आम जनता तक इसकी पहुंच नहीं है। इस क्षेत्र में वैज्ञानिक लिहाज से ठीक और सटीक आंकड़े प्रदूषण के ट्रेंड को सार्थक ढंग से समझने में मदद मिल सकती है। इससे नागरिकों में भी जागरूकता बढ़ेगी। इससे प्रदूषण को कम करने के लिए नीतियां और समाधान तलाशने में शामिल होंगे और इस दिशा में कार्रवाई करने में भी सक्षम होंगे।”

वायु प्रदूषण पर निगरानी रखने के लिए रेस्पायरर के सोल्यूशन की लागत किसी भी अन्य नियामक वायु की गुणवत्ता पर निगरानी रखने वाले सिस्टम की कीमत के बीसवें हिस्से के बराबर आती है। यह सालाना आधार पर या दिन के अलग-अलग समय अलग-अलग शहरों में प्रदूषण के लेवल और उसके ऐतिहासिक ट्रेंड के इर्द-गिर्द आंकड़ों तक आसान पहुंच मुहया कराता है। इसमें कोई भी व्यक्ति अलग-अलग फिल्टर में से किसी भी फिल्टर का चयन करने में सक्षम हो सकेगा, जिससे उसे उसके काम की जानकारी मिल सकेगी। इसके लिए किसी डाटा साइंस के ज्ञान की जरूरत नहीं है।

रौनक ने कहा, “आमतौर पर हमें भी कोई डेटा निकालने और उसकी गहराई से पड़ताल करने में 4 से 6 महीने का समय लगता है। पावर बीआई के साथ हम बहुत ही कम समय चार हफ्ते के अंदर प्रोजेक्ट को पूरा करने में कामयाब रहे, जबकि हमारे पास केवल एक एनालिटिक्स इंजीनियर था।“

रेस्यारर का दीर्घकालीन विजन कम लागत के एयर क्वॉलिटी पर निगरानी रखने वाले सेंसर्स बनाना है, जिससे उस हवा में मौजूद प्रदूषण की गहराई से पड़ताल जा सके। भारत में वायु प्रदूषण के तर्कसंगत विश्लेषण के लिए 4,000 हजार से 8,000 जगहों के डेटा को आसान ढंग से एकत्रित करने की जरूरत पड़ेगी। स्टार्ट अप की योजना इस दूरी को अफोर्डेबल एयर क्वॉलिटी मॉनिटरिंग डिवाइस से भरने की है।

करीब 1,000 रेस्पायरर डिवाइसेज का इस्तेमाल हाउसिंग सोसाइटी, स्कूलों, इंडस्ट्रियल कंपनियों और यहां तक कि सरकारी संस्थाओं में अपने-अपने क्षेत्र में वायु की गुणवत्ता की निगरानी रखने के लिए किया जाता है। रेस्पायरर एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाने की दिशा में काम कर रहा है। इससे सभी तरह का डेटा सार्वजनिक रूप से एकीकृत प्लेटफॉर्म पर मौजूद रहेगा। जिससे लोगों को स्थानीय स्तर पर अपने आसपास के माहौल की गुणवत्ता के आंकड़े मिल सकेंगे, जिससे नागरिकों को केवल उस हवा की क्वॉलिटी के बारे में ही जानकारी नहीं मिलेगी जिसमें वह सांस ले रहे हैं, जबकि उन्‍हें पास-पड़ोस की हवा के माहौल के बारे में भी जानकारी मिल सकेगी।

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