तड़पते रहे पर किसी ने नहीं की मदद

पूरे देश में आक्रोश का ज्वार पैदा करने वाली दिल्ली गैगरेप की घटना के अकेले चश्मदीद अवींद्र पांडे के मुताबिक बस से फेंके जाने के बाद अगले दो घंटे तक न तो पुलिस ने ही उनकी मदद की और न जनता ने। बहादुर बेटी की मौत के बाद पहली बार सामने आए अवींद्र ने बताया कि 16 दिसंबर की रात हुए हादसे के बाद भी उनकी दोस्त का जीवन के प्रति रवैया सकारात्मक था और वह जीना चाहती थीं। अवींद्र के मुताबिक, घटनास्थल पर पहुंची तीन पीसीआर की गाड़ियां करीब 45 मिनट तक थानों के सीमा विवाद में ही उलझी रहीं।

अवींद्र ने एक निजी टीवी चैनल से बातचीत के दौरान बताया कि घटना के बाद लोग सड़क पर उतरे और पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए। बहुत सी बातें सामने आई, लेकिन लोग उनके अपने-अपने नजरिये से घटना को देख रहे हैं। मैं लोगों को बताना चाहता हूं कि मैंने और मेरी दोस्त ने क्या सहा। साथ ही उम्मीद जताई कि लोग इस घटना से सबक लेते हुए दूसरों की जिंदगी बचा पाएंगे। उन्होंने बताया कि छह आरोपियों ने दोनों को बस के फर्श पर लिटा दिया था।

आरोपियों ने लोहे की रॉड से उनकी पिटाई की। उनके कपड़े और अन्य सामान छीन लिए। पूरी वारदात के बाद दोनों को सुनसान इलाके में फेंक दिया। पांडे ने बताया कि बस के शीशे काले थे और उन पर पर्दे पड़े थे। इससे हम पूरी तरह फंस चुके थे। बस में सवार आरोपियों ने पहले ही पूरी योजना बना ली थी। ड्राइवर और हेल्पर के अलावा बाकी सभी यात्रियों की तरह व्यवहार कर रहे थे। हमने उन्हें किराए के 20 रुपये भी दिए थे। इसके बाद उन्होंने मेरी दोस्त से छेड़छाड़ शुरू कर दी, जिस पर हाथापाई शुरू हो गई। मैंने उनमें से तीन की पिटाई भी की। तभी बाकी आरोपी लोहे की रॉड उठा लाए और मुझे मारना शुरू कर दिया। मेरे बेहोश होने से पहले आरोपी मेरी दोस्त को मुझसे अलग ले गए।

पीड़िता के दोस्त ने बताया कि बस करीब दो घंटे तक उन्हें लेकर दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती रही। हमने शोर मचाकर लोगों को बताने की भी कोशिश की, लेकिन उन्होंने बस की लाइटें भी बंद कर दी थीं। मेरी दोस्त ने मुझे बचाने के लिए आरोपियों से मुकाबला किया। उसने 100 नंबर पर पुलिस से भी संपर्क करने की कोशिश की। तभी आरोपियों ने उससे मोबाइल छीन लिया। उन्होंने बस से फेंकने से पहले हमारे मोबाइल छीनने के अलावा कपड़े भी फाड़ दिए थे। बस से फेंकने के बाद उन्होंने हमें कुचलने की भी कोशिश की, लेकिन मैंने अपनी दोस्त को आखिरी मौके पर खींचकर बचा लिया। इसके बाद मैंने गुजर रहे लोगों को रोकने की काफी कोशिश की। करीब 25 मिनट तक किसी ने अपनी गाड़ी भी नहीं रोकी। हालांकि, कुछ लोगों ने अपनी कार, ऑटो और बाइक धीमी जरूर की, लेकिन बिना मदद किए ही आगे बढ़ गए। तभी गश्त कर रहे किसी पुलिसकर्मी ने रुककर पुलिस को फोन किया।

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