प्रणब मुखर्जी देश के 13वें राष्ट्रपति

भारत में राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी ने अपने निकटतम उम्मीदवार पीए संगमा को हरा दिया है.

पिछले चार दशकों से देश की राजनीति में सक्रिय रहे प्रणब मुखर्जी देश के तेरहवें राष्ट्रपति होंगे.

चूंकि पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद दो बार राष्ट्रपति रहे इसलिए वे इस पद पर आसीन होने वाले बारहवें व्यक्ति होंगे.

राष्ट्रपति के रूप में वे 25 जुलाई को शपथ लेंगे.

वर्तमान राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है.

उनकी जीत के बाद देश भर से उन्हें बधाइयों के संदेश मिल रहे हैं.

भारी बहुमत

नियमानुसार राष्ट्रपति चुनाव में संसद के दोनों सदनों के सदस्यों के अलावा राज्य विधानसभाओं के सदस्य भी मतदान करते हैं.

इस तरह कुल 4,896 मतदाताओं में से 776 सांसद और 4,120 विधायकों को अपने मतों का प्रयोग करना होता है.

गुरुवार को हुए मतदान में इस बार 95 प्रतिशत मतदान हुआ था.

मतगणना की शुरुआत में नियमानुसार संसद भवन में हुई मतगणना की मतपेटियाँ पहले खोली गईं.

मुलायम सिंह सहित कुल 15 सांसदों के मत विभिन्न वजहों से खारिज कर दिए गए.

शेष 748 मतों में से 527 मत प्रणब मुखर्जी तो मिले जबकि पीए संगमा को 206 मत मिले.

बाद में राज्यों की मतपेटियाँ खुलने के बाद भी प्रणब मुखर्जी की बढ़त का सिलसिला जारी रहा.

आखिर में उन्हें 5,57, 968 मतों के साथ विजयी घोषित कर दिया गया.

शुरु से पलड़ा था भारी

नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम के बीच प्रणब मुखर्जी यूपीए के अधिकृत उम्मीदवार घोषित किए गए थे.

कांग्रेस के बाद यूपीए के सबसे बड़े घटक दल तृणमूल कांग्रेस ने प्रणब मुखर्जी को समर्थन देने से इनकार कर दिया था और अपनी ओर से पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का नाम आगे किया था.

लेकिन पिछले हफ़्ते वो भी साथ आ गईं और प्रणब मुखर्जी को समर्थन देने का फ़ैसला किया.

इसके अलावा प्रणब मुखर्जी को समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी का समर्थन मिला हुआ था.

वाममोर्चे के दो घटक दलों सीपीएम और फॉर्वर्ड ब्लॉक ने प्रणब मुखर्जी को वोट दिया, जबकि सीपीआई और आरएसपी ने चुनाव में हिस्सा नहीं लिया.

प्रमुख विपक्षी गठबंधन एनडीए के दो प्रमुख घटक दलों, जनता दल यूनाइटेड और शिवसेना ने प्रणब मुखर्जी को समर्थन दिया.

दूसरी ओर पीए संगमा को प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने समर्थन देने की घोषणा की और उनके साथ एनडीए की कुछ और पार्टियाँ थीं.

हालांकि पीए संगमा को उम्मीद थी कि आदिवासी होने के नाते उन्हें यूपीए की ओर से भी बहुत से मत मिलेंगे, ज़ाहिर है कि ऐसा हुआ नहीं.

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