महाकुंभ में रविवार को कड़ी सुरक्षा के बीच शाही स्नान के लिए श्रद्धालुओं में जबरदस्त उत्साह है। सबसे पहले महानिर्वाणी अखाड़े ने स्नान किया। इससे पहले सुबह 5:15 बजे महानिर्वाणी अखाड़ा और अटल अखाड़ा ने त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान के लिए जुलूस के साथ प्रस्थान किया। जूना अखाड़े के नागा साधुओं संगम में स्नान करने के बाद बाकी 12 अखाड़ों के शाही स्नान का क्रम अभी भी जारी है। कुंभ प्रशासन के अनुसार आज तकरीबन तीन करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान किया।
अखाड़ों के साथ रथ पर सवार धर्माचार्यो, संत- महात्माओं का दर्शन करने व शाही स्नान का नजारा देखने के लिए श्रद्धालुओं का भारी भीड़ जमा है। मकर संक्रांति के बाद मौनी अमावस्या के अवसर पर पड़ने वाले इस शाही स्नान के लिए रविवार सुबह आठ बजे तक दो करोड़ से ज्यादा लोग पवित्र संगम में डुबकी लगा चुके थे।
कुंभ पर्व का प्रमुख स्नान पर्व मौनी अमावस्या पर श्रद्धालुओं की अमृत पान की आस पूरी होगी। रविवार को पड़े इस महास्नान पर्व पर करोड़ों श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाने को आतुर हैं। अमावस्या तिथि शनिवार दोपहर 2.28 बजे से लगने के कारण स्नान, दान का सिलसिला एक दिन पहले ही शुरू हो गया। रविवार को दोपहर 12.47 बजे तक अमावस्या रहने के कारण स्नान का सिलसिला पूरी रात चलता रहा।
मौनी अमावस्या पर शनि व राहु जैसे ग्रहों के एक साथ आने से श्रद्धालुओं के अमृत प्राप्ति की आस काफी बढ़ गई है। ऐसा योग 147 वर्ष बाद बना है। इसके बाद 147 वर्ष बाद ही ऐसा योग पुन: बनेगा। इस अवधि में चंद्रमा, सूर्य साथ संचार करेंगे। स्नान, दान, श्राद्ध का यह सबसे उपयुक्त काल होगा।
सुबह 6.23 तक अमृत योग :-
ज्योतिर्विद वंदना त्रिपाठी बताती हैं कि अमावस्या स्नान का मुहूर्त रविवार को दोपहर 12.47 बजे तक है। परंतु इसका अमृत योग भोर 4.21 से सुबह 6.23 बजे तक है। यह वह बेला है जो अमृत की कामना को साकार करेगी। इसमें धन के अतिरिक्त गरम कपड़ा, जौ, फल, मिष्ठान का दान करना चाहिए।
मौन रहकर करें स्नान:-
मौनी अमावस्या पर मौन रहकर स्नान करने का विशेष महत्व है। आचार्य अविनाश राय बताते हैं कि मत्स्य पुराण, श्रीमद्भागवत, मार्कंडेय पुराण मौनी अमास्वया पर मौन रखकर स्नान करने का वर्णन है। अमावस्या शुक्लपक्ष व कृष्णपक्ष का संधिकाल है। माघ की अमावस्या पर बृहस्पति का संयोग बनने से इसका महात्म्य काफी बढ़ गया है। इससे पूरे दिन संध्या के समय जैसा ही प्रभाव रहता है। ऋषियों ने संधिकाल में पूजा, ध्यान, जप करने का उपयुक्त समय बताया है। मौनव्रत रखकर मन में श्रीहरि विष्णु का जाप करते हुए स्नान करने से मन एकाग्र रहता है। साथ ही वातावरण की दूषित तरंगों का प्रभाव समाप्त हो जाता है।