नदीम के जज्बे को सलाम

born-without-arms-appear-higher-secondary-exams 2013-3-1मुंबई यह कहानी असल जिंदगी के एक हीरो की है जिसने जीवन के संघर्ष के आगे कभी घुटने नहीं टेके और फिर एक चुनौती के लिए तैयार है। मुंबई में प्रेम नगर इलाके की एक छोटी से चॉल में रहने वाले नदीम शेख के दोनों हाथ नहीं हैं लेकिन अपनी इस कमजोरी को उन्होंने कभी बैसाखी नहीं बनने दिया।

इस साल दूसरी बार हाईस्कूल की परीक्षा में बैठने वाले नदीम को पूरी उम्मीद है कि पिछले साल की तरह उन्हें इस बार हताश नहीं होना पड़ेगा। वह पैर से लिखते हैं। खास बात यह है कि पिछली साल की तरह उन्होंने इस बार भी सहायक लेने से साफ इन्कार कर दिया है। उनके अनुसार मेरी सोच को मुझसे बेहतर कोई नहीं लिख सकता। नदीम ने पिछले साल भी हाईस्कूल की परीक्षा पैर से लिखकर ही दी थी लेकिन साइकोलॉजी और फिलॉसफी के पेपर में फेल हो गए थे। जोगेश्‌र्र्वरी के इस्माइल युसूफ कॉलेज से परीक्षा दे रहे 19 वर्षीय नदीम आर्ट्स के क्षेत्र में भविष्य बनाना चाहते हैं। छोटे से घर में वह अपनी तीन बहनों, दो भाई और विधवा मां के साथ रहते हैं।

नदीम की मां ही उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं। वह बताते हैं कि पिछले साल मनमुताबिक परिणाम न आने पर काफी निराशा हुई थी लेकिन मां ने ही मेरा हौसला बढ़ाया। इस बार उन्होंने साइकोलॉजी और फिलॉसफी की जगह भूगोल और राजनीति विज्ञान विषय चुने हैं। राज्य बोर्ड के चेयरमेन लक्ष्मीकांत पांडेय के मुताबिक नदीम का साहस और संकल्प बाकी छात्रों के लिए मिसाल है। आमतौर पर बच्चे नकली प्लास्टर तक चढ़वा लेते हैं ताकि उन्हें सहायक मिल जाए लेकिन नदीम ने ऐसा नहीं किया।

 

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